जयपाल सिंह मुंडा-सिल्वानुस डुंगडुंग जीत चुके हैं गोल्ड मेडल
रांची : पहला ओलिंपिक गेम्स 1896 में एथेंस में हुआ था़ इसी की याद में हर वर्ष 23 जून को अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मुख्य मकसद खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर वर्ग, आयु के लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना है. इस गेम्स का आयोजन हर चार वर्ष पर होता है़ यह सबसे बड़ी प्रतियोगिता है़ इसमें 200 से ज्यादा देश हिस्सा लेते हैं. भारत ने पहली बार वर्ष 1900 में ओलिंपिक में हिस्सा लिया था़ इसमें भारतीय हॉकी टीम ने भारत के लिए सबसे ज्यादा गोल्ड मेडल जीता है. भारतीय हॉकी टीम ने वर्ष 1928 से 1956 तक ओलिंपिक में लगातार छह गोल्ड मेडल जीते थे़ सबसे खास बात यह है कि 1928 में जो भारतीय हॉकी टीम गोल्ड मेडल जीती थी, उसके कप्तान थे झारखंड के जयपाल सिंह मुंडा़ हालांकि अजीब बात है कि अपनी कड़ी मेहनत से टीम को फाइनल तक पहुंचाने वाले कप्तान जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम के आस-पास कहीं नहीं थे़ उनकी गैरमौजूदगी में भारत ने नीदरलैंड को 3-0 से पराजित कर गोल्ड मेडल जीता था.
सिल्वानुस डुंगडुंग ने भी बनाया इतिहास
मास्को 1980 में स्पेन के खिलाफ ओलिंपिक हॉकी फाइनल में गोल्डन गोल करनेवाले सिल्वानुस डुंगडुंग ने झारखंड का नाम गर्व से ऊंचा किया है़ वह ओलिंपिक की तैयारी कर रहे खिलाड़ियों को हमेशा कड़ी मेहनत के लिए प्रेरित करते हैं. वह कहते हैं कि ओलिंपिक तक पहुंचने के लिए कोच को काफी मेहनत करने की जरूरत होती है. कोच खिलाड़ियों को आगे बढ़ा सकता है. कोच को खेल की तकनीक से लेकर खेलने का तरीका आदि बताकर हर छोटी-छोटी चीजों का ध्यान रखना होता है़ हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह ओलिंपिक मेडल जीते़, लेकिन इसके लिए कड़ी मेहनत जरूरी है़
बास्केटबॉल और हैंडबॉल में ओलिंपिक खेल चुके हैं हरभजन
ओलिंपिक उच्च स्तर का खेल है, जो काफी कठिन है. वहां तक पहुंचने में कई स्तर से क्वालीफाई करना पड़ता है. दुनिया के बेस्ट खिलाड़ियों के बीच टफ कंपीटिशन होता है. यह कहना है हरभजन सिंह का़ वह 1980 मास्को ओलिंपिक में बास्केटबॉल और हैंडबॉल इवेंट में अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं. हरभजन सिंह कहते हैं कि ओलिंपिक का वातावरण काफी मैत्री पूर्ण रहता है. पिछले ओलिंपिक में मेडल जीतने वाले खिलाड़ी हमेशा सकारात्मक सोच के साथ ही आगे बढ़ते हैं. ओलिंपिक हमारे लिए सपने जैसा था. जहां रहना, खाना-पीना सब कुछ अलग रहा. ओलिंपिक चार साल में एक बार होता है. ऐसे में खिलाड़ियों को चार साल पहले से ही तैयारी करनी होती है क्योंकि यह काफी संघर्षपूर्ण प्रतियोगिता होती है. इसलिए उसकी तैयारी अपने लक्ष्य को लेकर शुरू करनी होती है. उम्मीद करते हैं कि झारखंड के और भी खिलाड़ी ओलिंपिक में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करेंगे.
निक्की प्रधान ने हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया
हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान की अंतरराष्ट्रीय करियर 2015 में ही शुरू हुई थी़ और अगले वर्ष 2016 में रियो ओलिंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल होने का मौका मिल गया़ वह ओलिंपिक खेलने वाली झारखंड की महिला हॉकी खिलाड़ी बनी़ ओलिंपिक तक का सफर साझा करते हुए निक्की ने बताया : ओलिंपिक तक पहुंचना गर्व की बात है. इसके लिए मैंने काफी कड़ी मेहनत की थी़ प्रतिदिन सुबह-शाम छह से सात घंटे की प्रैक्टिस़ इसी कड़ी मेहनत ने खेलने का मौका दिया. ओलिंपिक में वर्ल्ड के बेस्ट खिलाड़ियों से मिलना और उनकी तैयारी के बारे में जानना भी काफी फायदेमंद रहा़ वह कहती हैं कि इस बार की ओलिंपिक के लिए भी कड़ी मेहनत कर रही थीं, लेकिन कोविड-19 के कारण ओलिंपिक टल जाने से थोड़ी निराशा हुई. हालांकि आगे की तैयारी के लिए और समय मिल गया है.
एथेंस ओलिंपिक में रीना ने साधा निशाना
एथेंस ओलिंपिक 2004 में रांची की रीना कुमारी को निशाना साधने का मौका मिला़ वह प्री-क्वार्टर तक पहुंची थी़ उन्होंने तीरंदाजी में अपना बेस्ट देने की पूरी कोशिश की. हालांकि मेडल जीतने में कामयाबी नहीं मिल पायी़ ओलिंपिक का अनुभव साझा करते हुए रीना बताती हैं : ओलिंपिक में खेलना काफी कठिन होता है. बेहतरीन खिलाड़ियों के बीच अपना बेस्ट देने का पूरा दबाव रहता है़ हर खिलाड़ी कोशिश करता है कि वह अपना सबसे बेहतरीन खेल दिखाये़ हर खिलाड़ी का सपना ओलिंपिक में मेडल जीतने का होता है और वहां तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. रीना ने कहा कि कोविड-19 के कारण ओलिंपिक टालने से खिलाड़ियों पर सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक असर भी पड़ा है.
ओलिंपिक में झारखंड के आठ खिलाड़ी
ओलिंपिक में झारखंड की ओर से अब तक आठ खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया है. इनमें पांच खिलाड़ी हॉकी से, दो खिलाड़ी तीरंदाजी और एक खिलाड़ी बास्केटबॉल से शामिल हैं. जयपाल सिंह मुंडा झारखंड के पहले हॉकी ओलिंपियन रहे हैं. उनकी कप्तानी में भारत ने 1928 एम्सटर्डम ओलिंपिक में हॉकी में पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया था. इस ओलिंपिक में जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में भारत ने 17 मैच खेले और 16 मैचों में उसने जीत दर्ज की, जबकि एक मैच ड्रॉ रहा था. 1972 म्यूनिख ओलिंपिक में झारखंड के माइकल किंडो ने हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया था़ इस वर्ष टीम ने कांस्य पदक जीता था.
भारत ने हॉकी में आखिरी गोल्ड 1980 मास्को ओलिंपिक में जीता. इस टीम में झारखंड के ध्यानचंद अवॉर्डी सिल्वानुस डुंगडुंग शामिल थे. सिल्वानुस ने फाइनल में आखिरी गोल कर भारत को स्पेन पर 4-3 की जीत दिलायी थी. 1980 मास्को ओलिंपिक में ही झारखंड के बास्केटबॉल खिलाड़ी हरभजन सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व किया. झारखंड के चौथे हॉकी ओलिंपियन मनोहर टोपनो हैं, जिन्होंने 1984 लॉस एंजिलिस ओलिंपिक में टीम का प्रतिनिधित्व किया.
तीरंदाजी में झारखंड की ओर से अब तक दो खिलाड़ियों ने ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. इनमें रीना कुमारी और दीपिका कुमारी शामिल हैं. 2004 एथेंस ओलिंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में रीना कुमारी 15वें स्थान पर रहीं, जबकि टीम इवेंट में आठवां स्थान हासिल किया. अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित दीपिका कुमारी ने 2012 में लंदन ओलिंपिक में हिस्सा लिया. व्यक्तिगत स्पर्धा में पहले राउंड में ही बाहर हो गयी़ टीम इवेंट में आठवें स्थान पर रही. झारखंड की हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान ने 2016 में रियो ओलिंपिक (ब्राजील) में भारत की ओर से हिस्सा लिया था.