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बहिष्कार की राह आसान नहीं

हमें धीरे-धीरे चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी होगी. इसके लिए सबसे पहली शर्त होगी कि हमें सस्ते और टिकाऊ विकल्प उपलब्ध कराने होंगे.

आशुतोष चतुर्वेदी, प्रधान संपादक, प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद पूरा देश उद्वेलित हैं. लोगों में चीन के खिलाफ भारी गुस्सा है. यह स्वाभाविक है. देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए हैं. चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग जोर-शोर से उठी है. गुजरात के अहमदाबाद से ऐसी भी तस्वीरें आयीं हैं, जिनमें चीन में निर्मित टीवी को बालकनी से फेक कर तोड़ दिया गया. पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में व्यापारियों ने मशहूर हांगकांग मार्केट का नाम बदलने का फैसला किया है. दिल्ली में कॉन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने भारतीय सामान-हमारा अभिमान नामक मुहिम की शुरुआत की है. उन्होंने 500 चीनी सामानों की सूची भी तैयार की है, जिनके बहिष्कार का निर्णय लिया गया है. फिल्मी सितारों से भी अपील की गयी है कि वे चीनी सामानों के विज्ञापन न करें.

ऐसी भी खबर आयी कि भारतीय रेलवे ने चीन की कंपनी को दिया गया 470 करोड़ का ठेका रद्द कर दिया है. डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन इंस्‍टीट्यूट ऑफ सिग्नल एंड कम्‍युनिकेशंस ग्रुप कंपनी लिमिटेड को ठेका दिया गया था. एक और खबर आयी कि सरकार ने बीएसएनएल और एमटीएनएल को आदेश दिया है कि 4-जी के लिए चीनी उपकरणों का इस्तेमाल तत्काल प्रभाव से रोक दें. तनाव के मद्देनजर चीनी मोबाइल कंपनी ओपो को भारत में ऑनलाइन लांचिंग का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा है.

आमिर खान की सुपरहिट लिए फिल्म 3 इडियट्स के किरदार सोनम वांगचुक ने चीन को सबक सिखाने के लिए बुलेट नहीं वॉलेट की मुहिम छेड़ी है. वांगचुक लद्दाख से हैं और उन्होंने चीन के सभी सामान का बहिष्कार करने की अपील की है. उन्होंने प्रभात खबर से भी बात की, साथ ही कई वीडियो संदेश भी जारी किये हैं, जिनमें वे कह रहे हैं कि चीन के खिलाफ युद्ध भारतीय सेना के अलावा चीनी कंपनियों के बहिष्कार से भी जीता जा सकता है. एक वीडियो में वांगचुक ने कहा है कि अपने बटुए की ताकत का इस्तेमाल करें. चीन में बने सामानों, सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर का बहिष्कार करें. उनका संदेश सोशल मीडिया में खासा चर्चा में है.

जवानों की शहादत से भारतीयों में उबाल है, लेकिन इस उत्तेजना में हम आपा न खोएं. चीन के साथ हमारा संघर्ष 1962 से चला आ रहा है. परिस्थितियों पर नजर डालें, तो चीन ने पिछले कई वर्षों में जिस तरह भारत में पांव पसारे हैं, उससे उसे बाहर करना नामुमकिन तो नहीं, लेकिन मुश्किल जरूर है. यह जानना बेहद जरूरी है कि चीन ने भारत में कितने पांव पसार लिये हैं? भारत के रसोई घर, बेडरूम और ऑफिस, सभी स्थानों पर चीन किसी-न-किसी रूप में मौजूद है.

शाओमी, वीवो, ओपो से लेकर टीवी, फ्रिज बनाने वाली कंपनी हायर और कार निर्माता एमजी मोटर्स तक सभी चीनी कंपनियां हैं. चीन मुख्य रूप से भारत को विभिन्न उद्योगों में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी, टेलिकॉम उपकरण, बिजली से जुड़े उपकरण, दवा उद्योग में इस्तेमाल होने वाले बल्क दवाएं और कई तरह के केमिकल्स भारत को निर्यात करता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा निर्माता है, लेकिन दवा के निर्माण के लिए 70 फीसदी थोक दवा, जिन्हें तकनीकी भाषा में एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इंग्रेडिएंट्स कहते हैं, उनका आयात चीन से होता है.

अगर चीनी आयात पर कोई असर पड़ा, तो 39 अरब डॉलर के दवा उद्योग को झटका लगेगा. ऑटो उद्योग 27 फीसदी पार्टस चीन से आयात करता है. इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक उद्योग 43 फीसदी और वस्त्र उद्योग 27 फीसदी माल चीन से आयात करता है. दो चीनी कंपनियों- जेडटीई और हुवाई ने भारतीय टेलिकॉम कंपनियों को 15 अरब डॉलर मूल्य और उनकी कुल जरूरत के 40 फीसदी उपकरण सप्लाई किये हैं. भारत की सोलर परियोजनाओं में 78 फीसदी उपकरण चीन निर्मित हैं.

देश में स्थापित 61,371 मेगावाट क्षमता के बिजली संयंत्र चीन में बने उपकरणों पर चल रहे हैं. लगभग 75 फीसदी मोबाइल फोन बाजार पर चीनी कंपनियों का कब्जा है. आप अपने घर-परिवार में देखिए, अधिकांश मोबाइल चीनी कंपनियों के मिलेंगे. ओपो, वीवो, शाओमी, रीयल मी, वन प्लस वन जैसे चीनी मोबाइल का भारतीय बाजार पर कब्जा है. भारत में बिकने वाले हर दस में से आठ स्मार्टफोन चीनी कंपनियों के हैं. भारत में स्मार्टफोन बनाने वाली पांच शीर्ष कंपनियों में चार चीन की हैं.

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता है. यह सही है कि इसमें चीनी कंपनियां भी शामिल हैं, लेकिन हम मोबाइल सीधे चीन से आयात नहीं करते हैं. मेक इन इंडिया के तहत चीनी कंपनियां उनका निर्माण भारत में करती हैं. यह सेक्टर सात लाख लोगों को रोजगार देता है. चीनी कंपनी शाओमी के भारत में प्रमुख मनु कुमार जैन ने हाल में मीडिया से बातचीत में कहा कि उनकी कंपनी किसी अन्य ब्रांड से ज्यादा भारतीय हैं और उनके उत्पाद भारत में निर्मित हैं. उनका दावा है कि कंपनी भारत में लगभग 50 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध कराती है.

भारत और चीन के बीच कारोबार की स्थिति पर भी नजर डालनी जरूरी है. सन् 2000 में भारत और चीन के बीच कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था. अब चीन अमेरिका को पीछे छोड़ कर भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बन गया है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सन् 2018 में दोनों देशों के बीच कारोबार 89.71 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया, पर व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में था यानी भारत से कम निर्यात हुआ और चीन से आयात में भारी बढ़ोतरी हुई.

भारत ने जो सामान निर्यात किया, उसकी कीमत केवल 13.33 अरब डॉलर थी, जबकि चीन से 76.38 अरब डॉलर का आयात हुआ यानी 63.05 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था. इसी तरह 2019 में चीन से 70.31 अरब डाॅलर का आयात हुआ, जबकि 16.75 अरब डाॅलर के उत्पाद निर्यात किये गये. इसका मतलब है कि चीन ने भारत के मुकाबले चार गुने से भी अधिक का सामान बेचा. चीन ने भारत में ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया, सोशल मीडिया और लॉजिस्टिक्स में चीनी कंपनियों ने भारी निवेश कर रखा है.

ऐसे में अचानक क्या हम चीन पर अपनी निर्भरता समाप्त कर सकते हैं? इसका जवाब है, नहीं. इसके लिए लंबी मुहिम चलानी होगी और धीरे-धीरे हमें चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी होगी. इसके लिए सबसे पहली शर्त होगी कि हमें सस्ते और टिकाऊ विकल्प उपलब्ध कराने होंगे. पीएम नरेंद्र मोदी ने लोकल के लिए वोकल के तहत भारत में बनी वस्तुओं की बढ़ावा देने का अभियान छेड़ा है. इसको लगातार मजबूत करना होगा, तभी भारत आत्मनिर्भर बन सकेगा.

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