13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

संकल्प और संयम

चीन की कथनी और करनी में बड़ा अंतर होता है. वह अपने वर्चस्व के विस्तार के लिए अलग-अलग पैंतरे चलने में माहिर है.

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना के हमले में बीस भारतीय सैनिकों के बलिदान भारत-चीन संबंधों में एक निर्णायक मोड़ है. भारत को भरोसे के बदले एक बार फिर धोखा मिला है. कुछ दिन पहले दोनों देशों ने तनाव कम करने के लिए गलवान घाटी से टुकड़ियों को पीछे हटाने तथा विवादों को बातचीत के जरिये सुलझाने का फैसला किया था. लेकिन चीन ने वादा नहीं निभाया और उसने अतिक्रमण हटाने के बजाय भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया. रणनीतिक और कूटनीतिक मामलों के जानकार लगातार आगाह करते रहे हैं कि चीन की कथनी और करनी में बड़ा अंतर होता है. वह अपने वर्चस्व के विस्तार के लिए अलग-अलग पैंतरे चलने में माहिर है.

कुछ हफ्तों से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों के जमावड़े और साजो-सामान जुटाने के बरक्स भारत ने भी उस क्षेत्र में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी थी और हथियारों की तैनाती भी कर दी थी. किसी भी संभावित स्थिति से निपटने की तैयारी का ही नतीजा है कि बिना आधुनिक हथियारों के हुई झड़प में हमारे बहादुर जवानों ने चीनी टुकड़ियों को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया है. सूचनाओं और तथ्यों को छुपाने में माहिर चीन बड़ी तादाद में अपने सैनिकों के हताहत होने की बात स्वीकार करने से कतरा रहा है. जब दो शक्तिशाली देशों के बीच गंभीर सीमा-विवाद हों तथा दोनों ओर की सेनाएं एक-दूसरे के सामने खड़ी हों, तो ऐसी घटनाओं की आशंका हमेशा ही बनी रहती है, जो स्थिति को बड़े युद्ध की ओर धकेल दें.

यह भी एक तथ्य है कि अब से पहले कई दशक पूर्व वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ऐसी घटनाएं घटी थीं, जिनमें सैनिकों की जान गयी थी, लेकिन चीन हजारों किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर लगातार अतिक्रमण व घुसपैठ करता रहा है. निश्चित रूप से गलवान घाटी की घटना राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ सामरिक प्रश्न है, परंतु लेकिन इस पूरे प्रकरण को यहीं तक सीमित रखना ठीक नहीं होगा. पिछले महीने से जारी घटनाएं भारत पर दबाव बढ़ाने की चीनी रक्षा व विदेश नीति का हिस्सा हैं. वह भारत को सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कें, भवन जैसे निर्माण कार्यों से तो रोकना ही चाहता है, उसका इरादा भारत को दक्षिण एशिया की हद में सीमित कर देने का भी है, ताकि वैश्विक परिदृश्य में भारत का महत्व न बढ़े.

इसी वजह से वह पाकिस्तान को समर्थन देने के साथ अब नेपाल को भी भारत के विरुद्ध उकसाने की कोशिश कर रहा है. वह पड़ोसी देशों में निवेश व व्यापार के जरिये भी भारत के प्रभाव को कमतर करने की कवायद कर रहा है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के बढ़ते सहयोग को भी कुंद करना चाहता है. ऐसे में भारत के सामने सामरिक मुस्तैदी के साथ कूटनीतिक स्तर पर भी चीन की चाल को मात देने की तैयारी करनी चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें