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Yogini Ekadashi: आज है योगिनी एकादशी, जानिए इस व्रत को रखने पर क्यों मिलता है 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य

Yogini Ekadashi Vrat Katha: आज (17 जून) योगिनी एकादशी है, आषाढ़ के महीने में पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व होता है. मान्यताएं है कि जब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से आषाढ़ कृष्ण एकादशी का महत्व पूछा था. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से लोगों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन व्रत रखने से भक्तों के ऊपर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है. ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी पर व्रत रखने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है.

Yogini Ekadashi Vrat Katha: आज (17 जून) योगिनी एकादशी है, आषाढ़ के महीने में पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व होता है. मान्यताएं है कि जब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से आषाढ़ कृष्ण एकादशी का महत्व पूछा था. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से लोगों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन व्रत रखने से भक्तों के ऊपर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है. ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी पर व्रत रखने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है.

योगिनी एकादशी कथा

भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को बताते हैं कि स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था. वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था. हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था. हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी. एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा.

इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा. अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया. सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा था. यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया. हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ उपस्थित हुआ. राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर शिवजी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा.’

कुबेर के श्राप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया. भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया. उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई. मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा. विचरण करते हुए एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया. उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले कि तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई.

हेम माली ने सारा वृत्तांत कह सुनाया. यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूं. यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे. हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा.

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