पटना : राज्य के 23 जिलों में पिछले एक साल 30 मई 2019 से 30 मई 2020 के दौरान ग्राउंड वाटर लेवल में पांच इंच से 11 फीट चार इंच तक की बढ़ोतरी हुई है. इसमें कैमूर जिले में करीब 11 फीट चार इंच, गया जिले में 10 फीट 11 इंच और जहानाबाद जिले में नौ फीट सात इंच की बढ़ोतरी हुई है. इन सभी जगहों में ग्राउंड वाटर लेवल घट रहा था. इसका कारण 2019 में मानसून आने से अब तक करीब 1150 मिमी हुई बारिश सहित 2020 में औसतन गर्मी का कम पड़ना और जल-जीवन-हरियाली के तहत जल संरक्षण के लिए किये गये काम हैं.
वहीं, राज्य सरकार के जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ाने सहित 1522 में से करीब 1200 छोटी सिंचाई परियोजनाओं की मरम्मती का काम 15 जून तक पूरा हो जायेगा. इसमें तालाब, आहर-पइन, चेकडैम, सोख्ता, बीयर आदि शामिल हैं. इसका फायदा इस मानसून के दौरान जल संरक्षण के लिए मिलेगा. इसके साथ ही वर्ष 2019-20 में करीब 1.25 करोड़ पौधे लगाये गये. जल संरक्षण में इन पौधों ने भी अपना योगदान दिया.
रेन वाटर हार्वेस्टिंग सहित अन्य योजनाओं पर हो रहा काम
सूत्रों का कहना है कि जल संरक्षण के लिए राज्य के 3688 बड़े सरकारी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के करीब 7940 यूनिट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. वहीं नौ अगस्त को बिहार पृथ्वी दिवस के अवसर पर करीब दो करोड़ 51 लाख पौधे लगाने की योजना है.
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरणविदों का कहना है कि राज्य में पिछले साल करीब 111 प्रखंडों को क्रिटिकल जोन में जाने के बाद ग्राउंड वाटर लेवल में भारी कमी हो गयी थी. इसका कारण ग्राउंड वाटर का अत्यधिक दोहन बताया गया था. क्रिटिकल जोन वाले प्रखंडों में बोरिंग की मनाही कर दी गयी थी. इसके साथ ही राज्य में जल संरक्षण के लिए बड़े पैमाने जागरूकता अभियान चलाया गया था. इन सबका फायदा भी मिला. लोगों ने बेवजह पानी का दोहन बंद किया.
ग्राउंड वाटर लेवल पर नीति बनाने का विचार
राज्य सरकार ग्राउंड वाटर लेवल को सुधारने के लिए नीति बनाने पर विचार कर रही है. इसके तहत बोरिंग करने से पहले लोगों को स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ सकती है. साथ ही वाटर प्यूरिफायर प्लांट लगाने केे लिए भी लाइसेंस लेना पड़ सकता है.
चौरों को विकसित करने की जरूरत
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के उपनिदेशक डॉ समीर कुमार सिन्हा ने राज्य सरकार के जल-जीवन-हरियाली अभियान को उपयोगी बताया. उन्होंने कहा कि राज्य में मौजूद चौरों को भी विकसित करने की जरूरत है. इससे जल संरक्षण के लिए इनका उपयोग हो सकेगा. जैवविविधता बढ़ेगी और लोगों को अाजीविका मिलेगी.