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झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव को लगा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी जमानत

झारखंड के हजारीबाग जिला में वर्ष 2016 में दंगा करने और हिंसा से संबंधित एक मामले में राज्य के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. इस घटना में अनेक लोग जख्मी हो गये थे.

रांची/नयी दिल्ली : झारखंड के हजारीबाग जिला में वर्ष 2016 में दंगा करने और हिंसा से संबंधित एक मामले में राज्य के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. इस घटना में अनेक लोग जख्मी हो गये थे.

चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई करते हुए योगेंद्र साव की जमानत याचिका खारिज की. साव ने झारखंड हाइकोर्ट के 20 मई, 2020 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

इस आदेश के तहत झारखंड हाइकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि मामले की प्राथमिकता से पता चलता है कि उन्होंने अपनी तत्कालीन विधायक पत्नी निर्मला देवी के साथ मिलकर एनटीपीसी की खनन गतिविधियों में बाधा डाली थी. और इस वजह से अनेक लोग जख्मी हो गये थे.

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हाइकोर्ट ने जमानत रद्द करने संबंधी अपने आदेश में इस तथ्य का भी जिक्र किया था कि योगेंद्र साव ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 15 दिसंबर, 2017 को जमानत देते समय लगायी गयी शर्तों का उल्लंघन किया था. शीर्ष अदालत ने योगेंद्र साव द्वारा जमानत की शर्तों का उल्लंघन किये जाने के कारण पिछले साल 12 अप्रैल को उन्हें रांची की अदालत में समर्पण करने का आदेश दिया था.

झारखंड में वर्ष 2013 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में योगेंद्र साव मंत्री थे. वह दंगा करने और हिंसा के लिए भड़काने के एक दर्जन से ज्यादा मामलों में आरोपी हैं. शीर्ष अदालत ने योगेंद्र साव और उनकी पत्नी को 15 दिसंबर, 2017 को जमानत देते हुए दोनों को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने का निर्देश दिया था.

इन दोनों को अपने मामले की सुनवाई के लिए ही पुलिस संरक्षण में झारखंड आने की इजाजत थी, लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें भोपाल के पुलिस अधीक्षक को सूचित करना जरूरी था. न्यायालय ने साव और उनकी पत्नी के खिलाफ लंबित 18 मुकदमे रांची की अदालत से हजारीबाग स्थानांतरित कर दिये थे.

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हालांकि, कोर्ट ने निर्मला देवी को भोपाल की बजाय पटना में रहने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया था. झारखंड सरकार ने अपने वकील तपेश कुमार सिंह के माध्यम से शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि 15 दिसंबर, 2017 को जमानत मिलने के बाद 253 दिन में से योगेंद्र साव सिर्फ 25 दिन ही भोपाल में रहे और कई बार वह स्थानीय प्रशासन को सूचित किये बगैर ही भोपाल से बाहर चले गये थे.

Posted By : Mithilesh Jha

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