युनिवर्सिटी ग्रांटस कमीशन ने देश भर के विश्वविद्यालयों को एक शोध करने का जिम्मा सौंपा है, इसके कारण देश भर की यूनिवर्सिटी टेंशन में हैं. दरअसल यूजीसी द्वारा सुनाए गये फरमान के मुताबिक देश के विश्वविद्यालयों से कहा गया कि देश 102 पहले स्पेनिश फ्लू नामक बीमारी से कैसे निपटा, जबकि उस समय स्वास्थ्य व्यवस्था वर्तमान समय के मुकाबले उतनी सुदृढ़ नहीं थी. इसके साथ ही अब देश कोविड-19 वैश्विक महामारी से किस प्रकार लड़ रहा है. विश्वविद्यालयों से कहा गया है कि दोनों की मामलों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये. इसके पीछे यह बात भी आ रही कि क्या सरकार इस मामले में खुद को बेहतर साबित करने के लिए ऐसा करा रही है.
गुरूवार को जारी किये पत्र में आयोग ने प्रत्येक विश्वविद्यालय और कॉलेज को दो अध्ययन करने के लिए कहा है. जिसके तहत ग्रामीणों से पूछने के लिए कहा गया है कि वे कोविड -19 की समस्याओं का सामना कैसे कर रहे हैं. दूसरा शोध यह करने के लिए कहा गया हि कि भारत ने 1918 के स्पेनिश फ्लू से कैसे निपटा था. आयोग के सचिव रजनीश जैन द्वारा देश के लगभग 1000 विश्वविद्यालयों के कुलपति और प्राचार्यों और 40,000 कॉलेजों के कुलपति और प्राचार्यों को चिट्ठी भेजी गयी है. पत्र में लिखा गया है कि गांवों की रक्षा करना इस लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण हैं. इस महमारी के कारण गांवों में कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा है और किसानों ने इस महामारी लड़ने में किस प्रकार से भूमिका निभायी है, उसका भी संवेदनशील विश्लेषण करने की आवश्यकता है. विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों के प्राचार्यों से कहा गया है कि वे अपने संस्थान से सटे पांच-छह गांवों में अध्ययन करें.
यूजीसी ने शोध के लिए सवाल का प्रारूप भी तैयार किया है जिसके मुताबिक यह अध्ययन करना है कि गांव में लोग कोरोना वायरस को लेकर कितने जागरूक हैं. इस महामारी को लेकर ग्रामीणों के बीच जागरूकता का स्तर क्या है. इसके साथ ही यह भी पता लगाना है कि गांव में कोविड-19 वैश्निक महामारी से लड़ने के लिए कौन से बेहतर उपायों का प्रयोग किया. उनकी रणनीति क्या रही. साथ ही इससे उत्पन्न हुई चुनौतियों का सामना ग्रामीण किस प्रकार से कर रहे हैं. उच्च शिक्षण संस्थानों से कहा गया है कि वो 1918 में आयी स्पेनिश फ्लू महामारी का समानांतर अध्ययन करें. अपने अध्ययन में यह शामिल करें कि भारत से 1918 में महामारी को कैसे संभाला था और महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में कैसे मदद मिली. पत्र में यह नहीं बताया गया है कि 1918 के बारे में सवालों के जवाब कैसे दिए जाएं. पर संस्थानों को अध्ययन के लिए समर्पित टीमों का गठन करना है और 30 जून तक आयोग को रिपोर्ट भेजनी है.
फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर्स असोसिएशंस के अध्यक्ष राजीव रे ने फेसबुक पोस्ट में इसे लेकर अपनी बात रखी है. उन्होने लिखा है कि 1918 के स्पैनिश फ्लू के साथ अभी की तुलना करना सही नहीं है क्योंकि भारत एक औपनिवेशिक सरकार के अधीन था. अगर मौजूदा सरकार 1918 के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड नियम की तुलना में अपनी उपलब्धियों की तुलना करना चाहती है तो यह मजाक करने वाली बात होगी. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर आजादी के 72 साल भी बाद भी हम 102 साल पहले की बीमारी को काम करने का मानदंड बनाये तो यह तो समझ से परे है. इस मामले को लेकर आईआईटी बॉम्बे के एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस शोध के जरिये सरकार यह बताने का प्रयास कर रही है कि भारत ने कोरोना वायरस को लेकर बेहतर कार्य किया जबकि सच इससे उलटा है. इस तरह के एक समानांतर अध्ययन की आवश्यकता सरकार में विचारों के पूर्ण दिवालियापन को दर्शाता है.
Postd By: Pawan Singh