झारखंड में प्रवासी मजदूरों को रोजगार देना बड़ी चुनौती है़ सरकार अपने स्तर से योजना बना रही है़ मजदूरों का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है़ 12 लाख से ज्यादा मजूदर दूसरे राज्यों में काम कर रहे है़ं मजदूर अपने राज्य में नौकरी की तलाश में है़ं प्रदेश लौटे हमारे प्रवासी हुनरमंद है़ं राजनीतिक दलों से लेकर समाज के दूसरे वर्गों को प्रयास करने होंगे़ प्रभात खबर के प्रमुख संवाददाता सतीश कुमार ने झामुमो के वरिष्ठ नेता व विधायक स्टीफन मरांडी से इस मुद्दे पर बातचीत की़
प्रो मरांडी ने कहा कि अभी किसानों व प्रवासी मजदूरों के लिए सबसे कठिन समय है. खेतीबारी का समय होने की वजह से सबसे ज्यादा भुखमरी की समस्या उत्पन्न होगी. जब तक धान की नयी फसल नहीं आ जाती है, तब तक इन्हें राशन पहुंचाना जरूरी है.लॉकडाउन को लेकर केंद्र सरकार ने हड़बड़ी में फैसला लिया. अगर लोगों को 10 दिन का भी समय दिया जाता, तो आज ऐसी स्थिति नहीं बनती़
प्रो मरांडी ने कहा कि झारखंड लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या काफी ज्यादा है. इन्हें हुनर के अनुरूप काम देकर ही झारखंड में रोक जा सकता है. इसके लिए सरकार को सबसे पहले प्रवासी मजदूरों का डाटा तैयार करना होगा. ब्लॉक स्तर पर इसे करना होगा. यह भी देखना होगा कि कौन स्किल्ड हैं और कौन नन स्किल्ड . इन्हें कैसे खेती व अन्य कुटीर उद्योग से जोड़ा जा सकता है. झारखंड में हंड़िया को बंद करने का अभियान भी चलाया जा सकता है, ताकि लोग रोजगार से जुड़ें और इस धंधा से तौबा कर लें.
प्रो मरांडी ने कहा कि झारखंड की भौगोलिक स्थिति के कारण यहां सालों भर खेती नहीं हो पाती है. सबसे बड़ी समस्या सिंचाई की है. यहां के लोग खरीफ की फसल करने के बाद बैठ जाते हैं. रबी की फसल की व्यवस्था नहीं होने के कारण लोग कमाई के लिए बाहर निकल जाते हैं. पूर्ववर्ती सरकार में झारखंड में मनरेगा का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण पलायन की समस्या बढ़ी. स्थानीय स्तर पर भी जैसा प्रयास होना चाहिए था, वैसा नहीं हुआ. यही वजह है कि मनरेगा यहां फेल हो गया. मजदूरी दर काम होने का भी असर पड़ा.
प्रो स्टीफन मरांडी ने कहा कि राज्य सरकार के सकारात्मक प्रयास से प्रवासी मजदूरों की घर वापसी जारी है. अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती इनको रोजगार उपलब्ध कराना है. किसी भी प्रवासी मजदूरों पर कोई धंधा थोपा नहीं जा सकता है. प्रवासी मजदूरों की इच्छा के अनुसार कुछ ऐसे कुटीर उद्योग सरकार को खड़े करने होंगे, जिससे इन्हें रोजगार मिल सके.
इसके साथ ही सरकार को उत्पादों की मार्केटिंग की भी गारंटी लेनी पड़ेगी. मार्केटिंग की व्यवस्था सही नहीं रहने पर लोग घरों में बैठ जाते हैं और पलायन के लिए मजबूर हो जाते हैं. सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि पलायन क्यों हो रहा है? ग्रामीण स्तर पर हमें ऐसी एजेंसी खड़ी करनी पड़ेगी, ताकि लोग लकड़ी, बांस, कपड़ा, रेडीमेड का प्रशिक्षण लेकर रोजगार से जुड़ सकें.