Chandra Grahan 2020 in India: सूर्य और चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है. विज्ञान और ज्योतिषीय नजरिए से इसका विशेष महत्व है. विज्ञान के अनुसार ग्रहण एक अनोखी खगोलीय घटना है, जबकि धार्मिक और ज्योतिष नजरिए से ग्रहण एक ऐसी घटना है जो व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव डालती है. ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार ग्रहण को अशुभ माना गया है. पहला चंद्र ग्रहण जनवरी में लग चुका है. जून और जुलाई में तीन बड़े ग्रहण लग रहे हैं. वहीं इस साल का दूसरा ग्रहण 05 जून की रात को एक बार फिर लगने वाला है. वहीं फिर 05 जुलाई को तीसरा चंद्र ग्रहण लगेगा. इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून को लगेगा. आइए जानते हैं ग्रहण का विज्ञान और पौराणिक क्या है महत्व …
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता है. पृथ्वी और चंद्रमा घूमते-घूमते एक समय पर ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक सीध में हो जाते हैं, जब पृथ्वी घूमते-घूमते सूर्य व चंद्रमा के बीच में आ जाती है. चंद्रमा की इस स्थिति में पृथ्वी की ओट में पूरी तरह छिप जाता है और उस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती है इसे चंद्र ग्रहण कहते है. वहीं, जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाती है और वह सूर्य को ढक लेता है तो इसे सूर्य ग्रहण कहते है.
पौराणिक मान्यताएं
धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन चल रहा था, उस दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद शुरू होने लगा, इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया. मोहिनी के रूप से सभी देवता और दानव उन पर मोहित हो उठे. तब भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया, लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शक पैदा हुआ. वह असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा.
देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने इस दानव को ऐसा करते हुए देख लिया. इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया. भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग किया तब तक उस दानव ने अमृत को गले तक उतार लिया था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया. इसी वजह से राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं. पूर्णिमा और अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा का ग्रास कर लेते हैं. इसे सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहते हैं. ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है. अगर किसी की कुंडली में राहु- केतु बुरे भाव में जाकर बैठ जाता है तो उसको जीवन में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इनकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सूर्य और चंद्रमा भी इसके प्रभाव से नहीं बच पाते.
सूतक काल चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण दोनों के समय लगता है. सूतक काल में किसी भी तरह का कोई शुभ काम नहीं किया जाता. यहां तक की कई मंदिरों के कपाट भी सूतक के दौरान बंद कर दिये जाते हैं. इस बार 05 जून को चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. उपच्छाया चंद्र ग्रहण होने के कारण हालांकि इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा. लेकिन बहुत से लोग हर तरह के ग्रहण को गंभीरता से लेते हैं जिस वजह से वो सूतक के नियमों का पालन भी करते हैं. सूर्य ग्रहण का सूतक ग्रहण लगने से 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है. वहीं, चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण लगने से 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है.