लॉकडाउन में विभिन्न गतिविधियों को जारी रखने में डिजिटल तकनीक और इंटरनेट का बहुत बड़ा योगदान रहा है. अब हमारे देश में और दुनिया में कई जगहों पर पाबंदियां हटायी जा रही हैं तथा रोजमर्रा के जीवन को सामान्य बनाने की कवायदें की जा रही हैं, लेकिन शिक्षा संस्थानों के सुचारू रूप से चलने में अभी समय लग सकता है. लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई जारी रहे, इसके लिए हमारे देश में भी ऑनलाइन माध्यम का सहारा लिया जा रहा है. लेकिन सभी परिवारों के पास कंप्यूटर, टेलीविजन, स्मार्ट फोन और लैपटॉप जैसी जरूरी चीजें तथा इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा नहीं है.
ऐसी सुविधा नहीं रहने के कारण केरल में एक बच्ची ने आत्महत्या कर ली है. उसके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश में डिजिटल वस्तुओं तथा इंटरनेट का तेज विस्तार हो रहा है तथा डेटा दरों और स्मार्टफोन के सस्ते होने से उपभोक्ताओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. आज ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या शहरी क्षेत्र से अधिक है. किंतु यह भी सच है कि हमारे बहुत से उपभोक्ता साधारण उपयोग के लिए ही इन चीजों का इस्तेमाल करते हैं और आबादी को देखते हुए उनका अनुपात बहुत ज्यादा भी नहीं है. ऐसे में शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत को अगर डिजिटल तकनीक पर निर्भर बना दिया जायेगा, तो करोड़ों गरीब, निम्न व मध्य आयवर्गीय परिवारों के बच्चे पीछे छूट जायेंगे.
नेशनल सैंपल सर्वे की शिक्षा पर एक रिपोर्ट (2017-18) बताती है कि देश के महज 24 फीसदी पारिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है. गांवों में यह आंकड़ा 15 तथा शहरों में 42 फीसदी के आसपास है. जिन घरों में पांच से लेकर 24 साल तक की उम्र के लोग हैं, उनमें से केवल आठ फीसदी परिवारों के पास ही कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा है. इस तथ्य का विश्लेषण करें, तो सबसे गरीब 20 फीसदी परिवारों में से केवल 2.7 फीसदी के पास कंप्यूटर और 8.9 फीसदी के पास इंटरनेट उपलब्ध है.
शीर्ष के 20 फीसदी घरों में ये आंकड़े क्रमश: 27.6 तथा 50.5 फीसदी हैं. इसका मतलब यह है कि मध्य आयवर्ग के परिवारों में भी सभी के पास ऐसी सुविधा नहीं है कि उनके बच्चे ठीक से ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कर सकें. एक बड़ी समस्या बिजली के निर्बाध आपूर्ति की भी है.
इस संदर्भ में यह भी सोचा जाना चाहिए कि देश के सबसे अधिक साक्षर और संपन्न राज्यों में शुमार केरल में अगर डिजिटल विषमता की खाई ऐसी है कि एक बच्ची को जान देने की नौबत आ सकती है, तो पिछड़े राज्यों की हालत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. एक आत्महत्या यह इंगित करती है कि बहुत से बच्चे या वयस्क वैसे ही अवसाद और चिंता से ग्रस्त हैं. केंद्र और राज्य सरकारों को सुचिंतित नीति बनाकर कंप्यूटर और इंटरनेट की उपलब्धता पर ध्यान देना चाहिए.