महाराष्ट्र में रेलवे एवं बस स्टैंडों पर प्रवासी कामगारों की भीड़ जमा होने की घटना का संज्ञान लेते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने इस बारे में रिपोर्ट देने और यह बताने को कहा है कि इस बारे में उसने क्या कदम उठाए हैं. मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के.के. तातेड़ की खंड़पीठ शुक्रवार को ‘सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस’ की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कोविड-19 महामारी के दौरान प्रवासी कामगारों को आ रही परेशानियों पर चिंता जताई गई है.
याचिकाकर्ता के मुताबिक जिन प्रवासी कामगारों ने महाराष्ट्र से अपने गृह राज्य जाने के लिए श्रमिक विशेष ट्रेनों और बसों की सुविधा उठाने संबंधी आवेदन दिया, उन्हें उनके आवेदनों की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसमें कहा गया कि ट्रेन या बस पर सवार होने से पहले उन्हें तंग एवं अस्वच्छ शिविरों में रखा जाता है, उन्हें भोजन तथा अन्य आवश्यक सामान भी नहीं मुहैया करवाया जाता.
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अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत को बताया कि प्रवासी कामगारों से जुड़े मुद्दों संबंधी मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है. अदालत ने इस पर कहा कि फिर भी वह चाहती है कि इस बारे में राज्य सरकार दो जून तक एक रिपोर्ट जमा करवाए. अदालत ने कहा कि इस तरह की भीड़ जमा होने दी जाती है तो यह उस लक्ष्य का विरोधाभासी होगा जिसके साथ लॉकडाउन लगाया गया है.
इधर बम्बई उच्च न्यायालय ने शहर में शराब के ठेकों पर बिक्री रोकने के बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के आदेश को खारिज करने से इनकार करते हुए कहा कि कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बीच नगर निकाय का यह आदेश नीतिगत फैसला है. नगर निकाय ने 22 मई को शराब के ठेकों पर बिक्री पर प्रतिबंध लगाते हुए घरों तक शराब पहुंचाने के लिए ई-वाणिज्य मंचों के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी थी. न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एन आर बोरकर की खंडपीठ ने बीएमसी की अधिसूचना को खारिज करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया.
महाराष्ट्र शराब व्यापारी संघ ने याचिका दायर कर राज्य सरकार को मुंबई में ठेकों पर शराब की बिक्री की अनुमति देने का निर्देश देने का अनुरोध किया था. मुंबई कोविड-19 रेड जोन है. याचिका में कहा गया था कि पुणे और नासिक जैसे शहरों में कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति मुंबई की तरह ही है, लेकिन वहां ठेकों पर शराब की बिक्री की अनुमति है. हालांकि पीठ ने कहा कि इस याचिका को नगरपालिका आयुक्त के सामने पेश करना उचित होगा और वह ही सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद उचित फैसला कर पाएंगे. अदालत ने कहा कि यह नीतिगत फैसला है. इस प्रकार के फैसले विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं. स्थिति जगह के साथ बदल सकती है.
Posted by : Amitabh Kumar