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लॉकडाउन में कुम्हारों का कारोबार प्रभावित, नहीं बिक रहे मिट्टी के बर्तन, खाने के पड़े लाले

इटखोरी : लॉकडाउन ने कुम्हारों के कारोबार को भी बुरी तरह प्रभावित किया है. वैवाहिक समारोह समेत अन्य धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के आयोजन नहीं होने के कारण मिट्टी के बने बर्तनों की बिक्री नहीं हुई, जिससे इनके समक्ष रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. जिस उम्मीद के साथ मिट्टी का बरतन बनाये थे उसपर पानी फिर गया.

इटखोरी : लॉकडाउन ने कुम्हारों के कारोबार को भी बुरी तरह प्रभावित किया है. वैवाहिक समारोह समेत अन्य धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के आयोजन नहीं होने के कारण मिट्टी के बने बर्तनों की बिक्री नहीं हुई, जिससे इनके समक्ष रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. जिस उम्मीद के साथ मिट्टी का बरतन बनाये थे उसपर पानी फिर गया.

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मिट्टी के बने बरतन भंडार घर की शोभा बढ़ा रहे हैं. सारा मेहनत बेकार हो गया है. इसबार हाट बाजार नहीं लगने के कारण गर्मी में सुराही और घड़ों की भी बिक्री नहीं हुई. कुम्हारों को हजारों रुपये की कमाई का नुकसान हुआ है. बीस दिन बाद बरसात का मौसम आने वाला है, सारा बरतन रखा रह जायेगा.

क्या कहती हैं महिला कुम्हार

कड़ी मेहनत से मिट्टी का बरतन बनाने वाली कुम्हार समुदाय की महिलाएं काफी निराश है. गीता देवी ने कहा कि प्रत्येक साल लगन के मौके पर बीस पच्चीस हजार रुपये का मिट्टी का बरतन समेत अन्य सामान बेचती थी लेकिन इस साल बोहनी भी नहीं हुई है. लॉकडाउन के कारण धंधा बंद हो गया है, मिट्टी का सारा सामान घर में पड़ा हुआ है. पति ठेला पर गुपचुप बेचते थे, वह भी बंद है. हमलोगों की कमाई पूरी तरह बंद हो गयी है.

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संजू देवी ने कहा कि मैं प्रत्येक वर्ष बीस हजार रुपये का कलश, ढकनी, घड़ा बेचती थी, इस साल काफी नुकसान हुआ है. रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. घर में जमा पूंजी खर्च कर भोजन का जुगाड़ करना पड़ रहा है. सरकार भी कुम्हारों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. लगन के दिनों में जो कमाई होती थी उसी से गुजारा होता था, लेकिन इस बार तो मेहनत भी बेकार हो गयी.

Posted By : Amlesh Nandan Sinha.

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