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लिख सकते हैं विकास की नयी इबारत

कृषि प्रधान बिहार और उद्योग-खनन आधारित झारखंड देश की आर्थिक बुनियाद को मजबूत बनने में सक्षम हैं. जरूरत है अल्पकालिक और दीर्घकालिक आधार पर समस्या समाधान के साथ विकास की नयी इबारत लिखने की.

रमापति कुमार, (सीइओ, सेंटर फॉर एनवायर्नमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट, दिल्ली)

delhi@prabhatkhabar.in

कृषि प्रधान बिहार और उद्योग-खनन आधारित झारखंड देश की आर्थिक बुनियाद को मजबूत बनने में सक्षम हैं. जरूरत है अल्पकालिक और दीर्घकालिक आधार पर समस्या समाधान के साथ विकास की नयी इबारत लिखने की.

इन दिनों सामने आ रहे ट्रेंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह समय कोविड-19 के साथ जीने और सतर्कता व सुरक्षा के साथ इसकी चुनौतियों के संग तालमेल बिठाने का है. यह समय महामारी से निपटने, जन-स्वास्थ्य को बेहतर बनाने, प्रवासी मजदूरों के लिए बेहतर रोजगार व्यवस्था और स्थानीय अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करने पर विशेष ध्यान देने का भी है.

गैर-सरकारी संस्था ‘इंडिया माइग्रेशन नाऊ’ के मुताबिक, देश के प्रवासी मजदूरों में उत्तर प्रदेश (करीब 33 प्रतिशत) के बाद बिहार की करीब 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है. आशंका है कि रिवर्स माइग्रेशन के कारण आनेवाले साल-दो साल तक इनकी बड़े शहरों में पूरी तरह वापसी नहीं होगी. ऐसे में बिहार और झारखंड जैसे राज्यों को इस पलायन को कृषि या उद्योग-धंधों में रचनात्मक तरीके से जोड़ने, सार्वजनिक स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर नये सिरे से सोचने, ग्रामीण स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को तेज करने और सार्वजनिक खर्च की समुचित व्यवस्था करने की चुनौतियों से जूझना है. वह भी तब, जब इन राज्यों के उद्योग-व्यवसाय गंभीर मंदी की चपेट में हैं. अनुमान है कि 2021 तक करीब 70 लाख करोड़ के प्रोत्साहन पैकेज की जरूरत होगी. ऐसे में सरकार को पहल करनी होगी.

अब व्यवसाय पहले जैसे नहीं रहा और ‘न्यू नॉर्मल’ के साथ सामंजस्य बिठाया जा रहा है. हालांकि, आर्थिक मोर्चे पर बेहतरी के रास्ते तैयार हो रहे हैं. जिस तरह केंद्र सरकार ने सप्लाइ-चेन से लेकर मैन्युफैक्चरिंग में उभर रहे अवसरों का लाभ उठाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स गठित किया है, बिहार व झारखंड को अपने संसाधनों, स्किल सेट, विशेषज्ञता के आधार पर वैसा ही नया रोडमैप बनाना होगा. कोरोना ने जरूरी चीजों की परिभाषा बदल दी है. चर्चा है कि मैनुफैक्चरिंग और सप्लाई-चेन में सिरमौर चीन की जगह भारत ले सकता है. क्या बिहार और झारखंड इसका फायदा उठा सकते हैं, जहां श्रमिकों की अच्छी तादाद है, मगर ‘टेक्निकल नो-हाऊ’, शोध-अनुसंधान संस्थानों की कमी और इंफ्रास्ट्रक्चर पैटर्न को लेकर समस्या है?

क्या बिहार और झारखंड बाहरी राज्यों और चीन पर निर्भरता कम करते हुए स्थानीय स्तर पर अपने बूते टेस्टिंग किट और सैनेटाइजर, वेंटिलेटर, पीपीइ किट जैसे जरूरी मेडिकल सामान का उत्पादन कर सकते हैं? राज्य सरकारों ने जिस तरह से लॉकडाउन के सराहनीय प्रशासनिक इंतजाम किये हैं, उससे उम्मीद बंधती है. राजनीतिक इच्छाशक्ति और दूरदर्शी स्थायी दृष्टिकोण के साथ सरकारी निवेश को दूरगामी लक्ष्यों के साथ लगाया जाये, तो बिहार व झारखंड विकास मार्ग पर चलने की नयी परिभाषा गढ़ सकते हैं. जैसे, एथेनाॅल के रूप में सैनेटाइजर तैयार करने के लिए बिहार के पास कृषि अवशेषों की अच्छी उपलब्धता है. खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देकर इनका रणनीतिक इस्तेमाल कर यह राज्य अग्रणी बन सकता है. झारखंड के पास एचइसी, टाटा, सेल जैसी इंडस्ट्री और सैकड़ों सहायक इकाइयां हैं, जहां मेडिकल और अन्य उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. केंद्र सरकार के नये कदम में खनन और औद्योगिक क्षेत्र में सुधार भी शामिल हैं. झारखंड सरकार को इस अवसर को पहचानने और देश व दुनिया के स्टील, एल्युमीनियम और मैन्युफैक्चरिंग गुड्स के सप्लाई-चेन में अपनी भूमिका तय करने की जरूरत है.

आज की सबसे बड़ी आवश्यकता स्वास्थ्य सुविधाओं को सभी तक पहुंचाने की है, हालांकि राज्य स्तर पर बायोटेक और मेडिकल रिसर्च को लेकर चुनौतियां हैं. इन राज्यों में वायरोलॉजी और पैंडेमिक रिसर्च संस्थानों की बुनियाद रखे जाने का यह सही समय है. बिहार और झारखंड में जिला स्तर पर कोविड परीक्षण के बुनियादी ढांचे तैयार करने और पंचायत स्तर पर सामान्य संक्रमण और बीमारियों के जांच-उपचार की स्वास्थ्य प्रणाली खड़ा करने की आवश्यकता है. इन राज्यों में ग्रामीण आबादी की अधिकता को देखते हुए पंचायतों की बड़ी भूमिका है.

हाॅर्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ का मानना है कि कोरोना वायरस के जानलेवा होने का संबंध वायु प्रदूषण और खराब पर्यावरण से भी है. ऐसे में बिहार, झारखंड और बंगाल जैसे राज्यों को अपनी नीतियों में स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों को प्राथमिकता देनी होगी, खासकर तब, जब इन राज्यों को ऊर्जा और बिजली के मामले में निर्धन माना जाता हो. इसका दोहरा फायदा होगा. एक, हवा की गुणवत्ता और पर्यावरण में सुधार होगा. दूसरे, गांव-देहात में विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा तकनीक से लॉकडाउन में खराब होनेवाले खाद्य पदार्थों, जैसे सब्जी, फल, वनोपज, दुग्ध पदार्थ को ‘सोलर चिलर’, ‘सोलर ड्रायर’ और ‘सोलर कोल्ड स्टोरेज’ के जरिये संरक्षित कर कुटीर उद्योग और लघु उद्योगों को गति दी जा सकती है. इन कार्यों से प्रवासी मजदूरों को जोड़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कायाकल्प हो सकता है. कृषि प्रधान बिहार और उद्योग-खनन आधारित झारखंड देश की आर्थिक बुनियाद को मजबूत बनने में सक्षम हैं. इन राज्यों को नवीन तकनीक से अपने संसाधनों के सही इस्तेमाल, अनिवार्य वस्तुओं पर आत्मनिर्भरता और स्वास्थ्य सेवा, आर्थिक उत्पादन और ऊर्जा अधिसंरचना के विकेंद्रीकृत ढांचे के योजना-प्रबंधन का अनुसरण करना चाहिए. जरूरत है अल्पकालिक और दीर्घकालिक आधार पर समस्या समाधान के साथ विकास की नयी इबारत लिखने की.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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