देश के बड़े शहरों की फैक्ट्री और कंपनियों में काम करने वाले मजदूर जिन्हें प्रवासी मजदूर कहा जाता है वे कोरोना काल में अपने घर लौट रहे हैं, लाखों मजदूर तो लौट भी चुके हैं. ऐसे में जब लॉकडाउन 4 में औद्योगिक गतिविधियों को मंजूरी दे दी गयी है, एमएसएमई के सामने मजदूरों की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी है.
गौरतलब है कि 18 मई से देश में लॉकडाउन 4 लागू हो गया है. इस लॉकडाउन के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यह अलग रंग-रूप वाला होगा. 17 तारीख को जिस तरह से केंद्र सरकार और उसके बाद राज्य सरकारों ने दिशा निर्देश जारी किये और छूट दी उसके बाद फैक्ट्रियां खुलने लगीं. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि कंपनियों में काम करने वाले अभी वहां नहीं हैं. समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार सबसे बुरी स्थिति पुणे की है, जहां के लघु और मध्यम दर्जे के फैक्ट्रियों में 4.50 मजदूर काम करते हैं, जिनमें से तीन लाख प्रवासी मजदूर हैं. इन तीन लाख मजदूरों में लगभग ढाई लाख अपने घर लौट चुके हैं, ऐसे में एमएसएमई के सामने श्रमबल की गंभीर समस्या है. समाचार एजेंसी से बात करते हुए एमएसएमई के संचालकों ने यह भी कहा है कि वे सरकार से यह मांग करेंगे कि प्रवासी मजदूरों पर हमारी निर्भरता को खत्म किया जाये. असल में इन एमएसएमई संचालकों को यह डर सता रहा है कि अगर प्रवासी मजदूर नहीं लौटे तो वे श्रमिक कहां से लायेंगे और उनकी फैक्ट्रियों का क्या होगा.
वहीं बात अगर दिल्ली की करें तो यहां भी मजदूरों की कमी सामने आ रही है. वहीं एमएसएमई के संचालकों का यह भी कहना है कि स्थिति में तब तक सुधार आना मुश्किल है जब तक कारखाना संचालन से जुड़ी पूरी शृंखला कच्चा माल, विनिर्माण, परिवहन, श्रमिक और बाजारों में काम शुरू नहीं हो जाता है.
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश में आठ करोड़ प्रवासी मजदूर हैं, जो कोरोना काल में अपना काम धंधा छोड़कर अपने देस लौट गये हैं, ऐसे में चिंता इस बात की भी है कि अगर ये लौटे नहीं तो एमएसएमई के सामने अस्तित्व बचाने का संकट होगा. झारखंड और बिहार लौटने वाले कई प्रवासी मजदूर यह बयान दे चुके हैं कि वे अब वापस नहीं जाना चाहते. उन्होंने तो यहां तक कहा कि अपने घर में हम खुश हैं, बाहर हमें कुछ हो जाता तो परिवार वाले परेशान होते, यहां कम पैसे हैं, पर सुकून है.