आज भारत समेत दुनिया की बड़ी और उभरती अर्थव्यवस्थाएं संकटग्रस्त हैं.ऐसी स्थिति में भविष्य की आर्थिकी के स्वरूप में बदलाव निश्चित है. उसकेआधार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भरता का सूत्र देश कोदिया है और इसे साकार करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारतअभियान का आरंभ किया गया है. वैसे अनेक मामलों, मसलन- खाद्यान्न व अन्यकृषि उत्पाद, कपड़ा, चमड़ा, रोजमर्रा इस्तेमाल होनेवाली कई चीजों,इलेक्ट्रिक सामानों आदि, में हम पहले से ही आत्मनिर्भर हैं और इनकानिर्यात भी करते हैं तथा तकनीक, ऊर्जा, शोधन, संवर्धन आदि क्षेत्र में भीहमने बहुत विकास किया है. अनेक स्तरों पर ज्ञान-विज्ञान औरइंफ्रास्ट्रक्चर में देश उल्लेखनीय प्रगति भी हासिल कर चुका है. इसकेबावजूद हम दुनिया के बड़े आयातक देशों में भी शामिल हैं, जिसकी वजह सेहमें व्यापक व्यापार घाटा होता है.
हमारी विकास यात्रा में सकल घरेलूउत्पादन में तो लगातार बढ़ोतरी होती रही है, लेकिन प्रति व्यक्ति उत्पादनमें हम दुनिया के कई देशों से पीछे हैं. इस वजह से आर्थिक विषमता भी हैऔर विकास का विस्तार भी असमान है. संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउनने इस तथ्य को उजागर कर दिया है कि प्रति व्यक्ति उत्पादन और आय बढ़ानाबहुत जरूरी है. आत्मनिर्भरता का सीधा अर्थ है कि हम अपनी आवश्यकता कीपूर्ति भरसक अपने उत्पादन से करने की कोशिश करें. इस संदर्भ मेंस्थानीयता का आयाम बहुत महत्वपूर्ण है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने अपनेसंबोधन में रेखांकित किया है.
आज जो हम पूरे देश में शहरों से गांवों तथाधनी क्षेत्रों से पिछड़े इलाकों में वापस जाते कामगारों का काफिला देखरहे हैं, उसकी जड़ में स्थानीय स्तर पर उत्पादन की विषमता और स्वालंबन काअभाव है. इसी कारण पलायन होता है तथा विकास का स्तर अस्थिर और असमान बनारहता है. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े तो उत्साहवर्धक होते हैं,किंतु जब हम उनका क्षेत्रवार वितरण देखते हैं, तब निराशाजनक तस्वीर उभरतीहै. वर्तमान में उलटे पलायन का दर्द उसी का एक दुखद हिस्सा है. इसका एकपहलू यह भी है कि यदि हमने उत्पादन की मौजूदा व्यवस्था में बदलाव नहींकिया, तो न तो गांवों में चैन होगा और न ही शहरों की रफ्तार हासिल होसकेगी.
ऐसे में ग्रामीण रोजगार, उद्यम और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए नीतिगतऔर वित्तीय पहल कर सरकार ने आत्मनिर्भरता के लिए संरचनात्मक आधार उपलब्धकराया है. छोटे और मझोले उद्यमों को प्राथमिकता देकर रोजगार और आमदनी केमोर्चे पर कामयाबी हासिल की जा सकती है. स्थानीय उत्पादन और उपभोग कोबढ़ावा देकर हम बड़े पैमाने पर संसाधन जुटा सकते हैं, जो न केवल विकास केलिए उपयुक्त होंगे, बल्कि उनसे सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों को भीपोषित किया जा सकता है, जिनकी बड़ी जरूरत है. संसाधनों की कमी के कारण हीइन योजनाओं को फलीभूत करने में मुश्किलें आती हैं.