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कृषि पर ध्यान

यदि समुचित सुविधाएं और संसाधन मिलें, तो खेती से जुड़े कारोबार बहुत प्रगति कर सकते हैं. सरकार ने वित्तीय कमी को पूरा करने की दिशा में बड़ी पहलकदमी की है.

कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से पैदा हुए संकट से उबरने तथा अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए केंद्र सरकार ने बीस लाख करोड़ के भारी-भरकम आर्थिक पैकेज की घोषणा की है. इसमें लगभग हर सेक्टर के लिए वित्तीय आवंटन और नीतिगत सुधारों का प्रावधान किया गया है. खाद्यान्न उत्पादन करने और अनेक उद्यमों के लिए कच्चा माल मुहैया कराने के साथ बड़ी संख्या में रोजगार एवं संबंधित कारोबार के लिए हम कृषि पर निर्भर हैं. इस निर्भरता से होनेवाली आमदनी ग्रामीण क्षेत्र में विभिन्न उत्पादों के लिए मांग का आधार बनती है. बीते कुछ दशकों से विभिन्न कारणों से कृषि क्षेत्र और ग्रामीण भारत संकटग्रस्त है.

हालांकि पिछले कुछ सालों से ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और किसानों की आय बढ़ाने के लिए अनेक उपाय हुए हैं, लेकिन वर्तमान दबाव ने इस संकट को और गहरा कर दिया है और महानगरों से हो रहे कामगारों की वापसी भी एक बड़ी समस्या बन सकती है. ऐसी स्थिति में अन्य क्षेत्रों की तरह कृषि में भी निवेश और सुधार की दरकार है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भरता और स्थानीयता के सूत्र को साकार करने के लिए भी आवश्यक है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, किसान उत्पादक संस्थाओं, उद्यमियों और सहकारी समूहों के वित्तपोषण के लिए एक लाख करोड़ रुपये का आवंटन कर वित्तीय कमी को पूरा करने की दिशा में बड़ी पहलकदमी की है.

ऊपज को वाणिज्यिक स्तर पर बेचने के काम में लगे उद्यमों के लिए दस हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. मौजूदा संकट में सबसे बड़ी चुनौती वितीय उपलब्धता की है और आर्थिक गतिविधियों को गतिशील करने के लिए नगदी मुहैया कराना जरूरी है. सरकार के इस कदम से खेती और संबंधित उद्यमों को बड़ी राहत मिलेगी. यह बड़े संतोष की बात है कि मौसम के मिजाज में उतार-चढ़ाव के बावजूद ऊपज अच्छी रही है. अनुमान है कि मॉनसून भी अच्छा रहेगा. यह याद रखा जाना चाहिए कि तमाम चुनौतियों के बाद भी किसी संकट के समय किसान ने देश को अनाज और खाने-पीने की चीजों को कमी नहीं होने दी है.

आज भी हमारे भंडार भरे हैं. यदि समुचित सुविधाएं और संसाधन मिलें, तो खेती से जुड़े कारोबार बहुत प्रगति कर सकते हैं. हमें यह भी सोचना चाहिए कि जब अन्य आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हैं, कृषि उत्पादों की आपूर्ति निर्बाध जारी है, जबकि सड़क यातायात और कामगारों की उपलब्धता में तमाम बाधाएं हैं. निर्यात में भी कृषि क्षेत्र का उल्लेखनीय योगदान है. यह रेखांकित करना जरूरी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में स्थानीयता के साथ वैश्विक दृष्टि का आह्वान भी किया है. विभिन्न नियमों को हटाने से जहां अब बाजार तक किसान की पहुंच आसान हो सकती है, वहीं सरकार को कृषि निर्यात के नियमन में भी संशोधन पर विचार करना चाहिए. हमें इन घोषणाओं को साकार करने के लिए प्रयासरत होना चाहिए.

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