पटना : बिहार सरकार ने अत्यधिक भीड़भाड़ वाले जेलों से करीब 4500 कैदियों को कम भीड़भाड़ वाली जेलों में भेज दिया है, लेकिन किसी भी कैदी को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा नहीं किया है. यह जानकारी एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी. यह पूछने पर कि उच्चतम न्याायलय के आदेश के बावजूद किसी भी कैदी को अंतरिम जमानत पर रिहा क्यों नहीं किया गया तो महानिरीक्षक (कारागार) मिथिलेश मिश्रा ने कहा कि कैदियों को पैरोल पर इसलिए नहीं रिहा किया गया कि वे कोरोना वायरस से पीड़ित हो सकते हैं और बाद में जेल में लौटने पर वे महामारी फैला सकते हैं.
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उच्चतम न्यायालय ने 23 मार्च को सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को निर्देश दिया था कि उच्चस्तरीय समिति का गठन करें जो ऐसे कैदियों या विचाराधीन कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत देने पर विचार करे जिन्हें सात वर्ष तक की सजा मिली हो. कोरोना वायरस के मद्देनजर जेलों में भीड़भाड़ कम करने के उद्देश्य से उच्चतम न्यायालय ने ये निर्देश जारी किए थे. मिश्रा ने कहा, ‘‘कैदियों को रिहा किए जाने के बाद यह जानना बहुत कठिन होगा कि वे कोविड-19 से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आए अथवा नहीं. वे जेल के अंदर काफी सुरक्षित हैं.”
उन्होंने कहा कि पटना के बेउर जेल से कम भीड़ वाली अन्य जेलों में कम से कम 1200 कैदियों को स्थानांतरित किया गया है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा सीतामढ़ी और छपरा के जेलों पांच-पांच सौ कैदी, मोतिहारी जेल से 350 कैदी, औरंगाबाद से 300 कैदी, मधेपुरा और बाढ़ जेल से दो-दो सौ कैदी, मुजफ्फरपुर से सौ कैदी और भभुआ से 70 कैदियों को स्थानांतरित किया गया है. उन्होंने कहा कि भीड़भाड़ वाली अन्य जेलों से एक हजार कैदियों को भी स्थानांतरित किया गया है. उन्होंने कहा कि भागलपुर और गया की जेलों से किसी भी कैदी को स्थानांतरित नहीं किया गया है क्योंकि दोनों जेलों में काफी स्थान है.
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