16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

‘सामाजिक दूरी’ या ‘शारीरिक दूरी’

शब्दों की अपनी एक कालावधि है. कभी कोई शब्द सदैव केलिए लुप्त नहीं होता. उसके प्रयोक्ता कम होते जाते हैं. शब्द शब्दकोश मेंजीवित नहीं रहते. वे वहां मौजूद हैं, पर समाज ही उन्हें जीवित रखता है.

रविभूषण, वरिष्ठ साहित्यकार

ravibhushan1408@gmail.com

प्रत्येक शब्द के सृजन एवं निर्माण का एक निश्चित समय है, पर उसेनिर्माता, तिथि और वर्ष से सदैव नहीं जाना जा सकता है. प्रत्येक शब्दअपने प्रयोग-व्यवहार से ही जीवित रहता है. समयानुसार शब्द-प्रयोग मेंवृद्धि और कमी का होना स्वाभाविक है. शब्द का अर्थ-संकोच और अर्थ-विस्तारभी होता रहता है. शब्दों की अपनी एक कालावधि है. कभी कोई शब्द सदैव केलिए लुप्त नहीं होता. उसके प्रयोक्ता कम होते जाते हैं. शब्द शब्दकोश मेंजीवित नहीं रहते. वे वहां मौजूद हैं, पर समाज ही उन्हें जीवित रखता है.यह भी एक तथ्य है कि समाज की स्थिति सदैव एक नहीं रहती है. सामाजिकविकास-क्रम के साथ भाषा का विकास-क्रम जुड़ा है. प्रत्येक शब्द, पद केजन्म और विकास में एक साथ जो कई तत्व काम करते हैं, उनमें प्रयोक्ता औरप्रयोक्ता की शिक्षा के साथ समाज, परिवेश और उद्देश्य, सब किसी न किसीरूप में शामिल होते हैं.

शब्द की अपनी एक संस्कृति है और शब्द-संस्कृति भी विकसित तथा परिवर्तितहोती चलती है. शब्द का अपना समय, समाज और संसार है. प्रयोक्ता के अपनेआशय और उद्देश्य भी हैं. कृषि समाज, औद्योगिक समाज और उत्तर औद्योगिकसमाज के अपने शब्द और पद हैं. इसी प्रकार समाज के विविध रूपों एवं स्तरोंके भी अपने शब्द हैं. अब लैंगिक और स्त्री विमर्श के दौर में स्त्री भाषापर विचार पर किया जाता है, पर शब्दों को लैंगिक स्तर पर विभाजित करनासदैव संभव नहीं है. आदिवासी संस्कृति गैर आदिवासी संस्कृति से भिन्न है.ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि उस समाज में अनेक ऐसे शब्द हों, जिनकेअर्थ से दूसरे समाजों में उसके अर्थ भिन्न हों.

क्या ‘सामाजिक दूरी’ एकउपयुक्त शब्द, पद है? क्या नव-उदारवादी दौर के पूर्व ऐसा कोई पद प्रचलनमें था? जिस तरह से आज कोरोना संक्रमण के संकट के दौर में यह पद सर्वत्रफैल चुका है, क्या हमें इस पद के जन्म और विकास तथा प्रचार और प्रसार कोसमझने की कोशिश नहीं करनी चाहिए? यह मानना गलत होगा कि कोरोना महामारी इसपद की जननी है. उत्तर औद्योगिक एवं नव-उदारवादी दौर की शब्दावली पर जिसगंभीरता के साथ विचार की आवश्यकता थी, वह आवश्यकता अभी तक बनी हुई है. हमशब्दार्थों से परिचित होते हैं, पर शब्दाशयों से नहीं.

ये शब्दाशय प्रकटहोने के साथ प्रच्छन्न भी होते हैं. शब्दों के अर्थों को खोलना जितनाजरूरी है, उतना ही जरूरी है उसके आशयों से भी अवगत होना. हम सब समाज मेंरहते और जीते रहे हैं, समाज के अस्तित्व के बिना न तो मनुष्य की कल्पनाकी जा सकती है, न ही भाषा की. हिंदी में रामविलास शर्मा की पुस्तक ‘भाषाऔर समाज’ (1960) के बाद भी अब तक भाषा सामाजिकी पर गंभीरता पूर्वक अधिकविचार नहीं हो सका है. पूंजीवाद व्यक्तिवाद का जन्मदाता है और इसकीविकसित अवस्थाओं में व्यक्तिवाद और अधिक बढ़ता है.‘सामाजिक दूरी’ एक उत्तर औद्योगिक और नव-उदारवादी पद है. औद्योगिक पूंजीऔर सभ्यता के दौर में यह उपस्थित नहीं था. श्रमिकों का अपना समाज था, जोउत्तर औद्योगिक दौर में कम हुआ. पूंजीवाद मनुष्य को स्वार्थी, लोलुप औरस्वकेंद्रित बनाता है. वहां ‘अन्य’ (अदर) महत्वपूर्ण नहीं है.

अल्बर्टआइंस्टीन वैज्ञानिक थे और वे समाज को सर्वाधिक मूल्यवान शब्द मानते थे,क्योंकि हम जन्म से मरण तक सब कुछ समाज से ही ग्रहण करते हैं. कईलेखक-विचारक वास्तविक जगत में ‘समाज’ की उपस्थिति नहीं देखते. उन्नीसवींसदी के लेखक ऑस्कर वाइल्ड वास्तविक जगत में ‘समाज’ को केवल एक मानसिक‘कॉन्सेप्ट’ के रूप में देखते थे. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रहीं मार्गरेटथैचर ने अस्सी के दशक में यह कहा था कि सोसायटी जैसी कोई चीज नहीं है.अस्सी के दशक से विश्व में जिन परिवर्तनों की आहटें सुनायी पड़ने लगीथीं, वे बीसवीं सदी के अंतिम दशक और इक्कीसवीं सदी के अब तक के दो दशकोंमें कहीं अधिक मुखर और तीव्र (कर्कश भी) रूप में उपस्थित हैं.

विगत तीनदशकों में भारतीय मध्यवर्ग भारतीय समाज से क्रमश: दूर होता गया है. तकनीकने सामाजिक दूरी उत्पन्न की है. बीते अप्रैल महीने में प्रतिष्ठितविद्वान नोआम चोम्स्की ने दार्शनिक स्रेको होर्वैत (लोकतंत्र के यूरोपआंदोलन 2025 के सह-संस्थापक) को दिये अपने इंटरव्यू के अंत में थैचरसिद्धांत (समाज नहीं) को तीव्र किये जाने, दुरुपयोगी सोशल मीडिया द्वाराव्यक्तियों को, विशेषत: युवाओं को अकेले, अलगाव में रह रहे प्राणियों कीबात कही है. हमलोग अब वास्तविक सामाजिक अलगाव की स्थिति में हैं.

बर्बर,वहशी और नृशंस पूंजीवाद ने जिन शब्दों का निर्माण किया है, उन पर अब अधिकसोचने-विचारने की आवश्यकता है. ‘सामाजिक दूरी’ तकनीकी विकास (?),नव-उदारवादी नीति और व्यवस्था का शब्द है. कोरोना महामारी को अपने पास नफटकने देने के लिए ‘सामाजिक दूरी’ आवश्यक है या ‘शारीरिक दूरी’? , एकव्यक्ति दूसरे व्यक्ति से दो-चार गज दूर रहे, यह शारीरिक दूरी है,सामाजिक दूरी नहीं. उपयुक्त पद ‘शारीरिक दूरी’ है, न कि ‘सामाजिक दूरी’,पर चारों ओर ‘सोशल डिस्टेसिंग’ पद का प्रयोग हो रहा है. क्या यह सही है?क्या यह सार्थक है?(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें