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बिहार में शिशु मृत्यु दर में आयी कमी, 35 से घट कर 32 हुई दर

कोरोना महामारी के दौर में खुशखबरी है. स्वास्थ्य सुविधाओं और लोगों में जागरुकता का नतीजा है कि अब बिहार में शिशु मृत्यु दर में कमी आयी है तथा यह राष्ट्रीय औसत के बराबर हो गया है. राज्य में शिशु मृत्यु दर 35 से घट कर 32 हो गयी है जो राष्ट्रीय आैसत के बराबर है.

पटना : कोरोना महामारी के दौर में खुशखबरी है. स्वास्थ्य सुविधाओं और लोगों में जागरुकता का नतीजा है कि अब बिहार में शिशु मृत्यु दर में कमी आयी है तथा यह राष्ट्रीय औसत के बराबर हो गया है. राज्य में शिशु मृत्यु दर 35 से घट कर 32 हो गयी है जो राष्ट्रीय आैसत के बराबर है. अब राज्य में जीवित जन्म लेनेवाले प्रति हजार शिशुओं में से सिर्फ 32 नवजात ही अपना पहला जन्म दिन नहीं मना पाते हैं. वर्ष 2011 में राज्य की शिशु मृत्यु दर 44 थी. उस वक्त राष्ट्रीय औसत के बराबर बिहार की शिशु मृत्यु दर थी. इसके बाद शिशु मृत्यु दर में गिरावट तो आती गयी पर राष्ट्रीय स्तर तक नहीं पहुंच पायी.

शिशु मृत्यु दर में राज्य की सेहत का राज है जिससे यह पता चलता है कि जच्चा-बच्चा की देखभाल और सेवाओं में राज्य कितना सफल है . यह संख्या प्रति हजार जीवित जन्म लेनेवाले बच्चों के आधार पर निकाली जाती है. आंकड़ा यह दर्शाता है कि जीवित जन्म लेने के बाद कितने बच्चों ने अपना पहला जन्म दिन मनाया. नवजात मृत्यु दर रोकने के लिए किया गया प्रयास स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया कि नवजात मृत्यु दर को रोकने की दिशा में सेवाओं को गुणात्मक बनाया गया.

राज्य में आशा व आंगनबाड़ी सेविकाओं के माध्यम से राज्य की हर गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण कराया गया. साथ ही सभी की प्रसव पूर्व जांच सुनिश्चित की गयी. साथ ही सभी गर्भवती महिलाओं का घरों के बजाय अस्पतालों में प्रसव कार्य कराया गया. प्रसव के बाद सभी जिलों में स्थापित निकु में जन्मजात के इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी. साथ ही गर्भवती महिलाओं और नवजातों का पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित किया गया. इस कारण राज्य में अधिक संख्या में नवजात अपना पहला जन्म दिन मना रहे हैं.

वर्ष – बिहार – राष्ट्रीय औसत

2006- 60 – 57

2007- 53- 55

2008- 56- 53

2009- 52- 50

2010- 43- 47

2011- 44- 44

2012 – 43- 42

2013- 42- 40

2014- 42- 39

2015- 42-37

2016- 38- 34

2017 – 35- 33

2018 – 32- 32

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