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Narada Jayanti 2020: 09 मई को मनाई जाएगी नारद जयंती, जानें राजा दक्ष ने क्यों दिए थे नारद मुनि को श्राप

नारद जयती धूमधाम के साथ मनायी जाती है. नारद जयंती इस बार 09 मई 2020 दिन शनिवार के दिन पड़ रहा है. हिंदू देवी देवताओं में महर्षि नारद मुनि का एक अलग ही स्थान है. भगवान विष्णु के परम भक्त नारद एक लोक से दूसरे लोक में सूचनाएं पहुंचाते थे.

नारद जयती धूमधाम के साथ मनायी जाती है. नारद जयंती इस बार 09 मई 2020 दिन शनिवार के दिन पड़ रहा है. हिंदू देवी देवताओं में महर्षि नारद मुनि का एक अलग ही स्थान है. भगवान विष्णु के परम भक्त नारद एक लोक से दूसरे लोक में सूचनाएं पहुंचाते थे. आमतौर पर हम रामायण और महाभारत दोनों पौराणिक कथाओं में नारद मुनि की भूमिका अहम रहा है. हमेशा नारायण-नारायण करने वाले नारद मुनि को देव लोक का दूत एवं भगवान ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक माना जाता है. वे अचानक प्रकट होकर सूचना देने और पहुंचाने का कार्य करते थे.

नरद मुनि अविवाहित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष के दस हजार पुत्र थे. राजा के सभी पुत्रों को नारद मुनि ने मोक्ष की शिक्षा दी थी, जिसके कारण वे मोह माया से दूर हो गये, इसके बाद राजा दक्ष की दूसरी पत्नी पंचजनी ने भी एक हजार पुत्रों को जन्म दिया और नारद मुनि ने इन सभी को भी मोह माया से विरक्त होने का पाठ पढ़ाया, इससे सभी पुत्रों को अपने माता-पिता से भी कोई मोह माया नहीं रहा, तब राजा दक्ष ने क्रोधित होकर नारद को आजीवन अविवाहित रहने और इधर से उधर भटकते रहने का श्राप दिया था, जिसके कारण नारद मुनि का कभी विवाह नहीं हो सका.

नारद जयंती पर जानें पूजा करने की विधि

नारद जयंती के दिन भक्त पूजा-पाठ करते है, इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करने को काफी शुभ माना जाता है. स्नान करने के बाद, भक्त साफ-सुथरा वस्त्र पहन कर पूजा-अर्चना करते है. भक्तों को देवता को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल और मिठाई प्रस्तुत करनी पड़ती है. भक्त तब नारद जयंती व्रत का पालन करते हैं, क्योंकि इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है.

इस दिन भक्त उपवास करते हैं, वे दाल या अनाज का सेवन करने से खुद को बचाते हैं और केवल दूध उत्पादों और फलों का सेवन करते हैं. सभी अनुष्ठान समाप्त हो जाने के बाद, भक्त भगवान विष्णु की आरती करते हैं. इस दौरान नारद जयंती की पूर्व संध्या पर दान पुण्य करना अत्यधिक फलदायक माना जाता है. इस दौरान ब्राह्मणों को भोजन, कपड़े और पैसे दान करना चाहिए.

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