know why scientists afraid of ulkapind comes towards Earth वाशिंगटन : कोरोना वायरस के डर के साथ साथ दुनिया के लोगों को विशाल उल्कापिंड का धरती से टकराने का डर सता रहा था, जो अब खत्म हो गया है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के सेंटर फॉर नियर अर्थ स्टडीज के मुताबिक, इस उल्कापिंड का नाम 1998 OR2 है. इस्टर्न टाइम के अनुसार ये बुधवार सुबह 5:56 मिनट पर और भारतीय समयानुसार दोपहर 3.30 बजे के आसपास पृथ्वी के करीब से होकर गुजर गया. कोरोना महामारी के संकट के बीच लोगों के मन में बार-बार ये सवाल आ रहा था कि क्या इस उल्का पिंड से धरती को कोई नुकसान होगा. हालांकि, वैज्ञानिकों ने उम्मीद जतायी थी कि यह धरती से टकरायेगा नहीं. अत: लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है. अगली बार ये उल्का पिंड सन् 2079 में धरती के पास से गुजरेगा, उस वक्त चांद से इसकी दूरी केवल चंद्र दूरी से लगभग चार गुना होगी.
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इस उल्कापिंड का नाम 1998 OR2 है. बुधवार को यह घरती के बेहद करीब से गुजरा. ऐसे में वैज्ञानिकों को सिर्फ एक ही डर सता रहा था कि अगर यह उल्कापिंड अपना थोड़ा-सा भी स्थान परिवर्तन करता है, तो पृथ्वी पर बड़ा संकट आ सकता थे. ऐसे में भारत समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक इस उल्कापिंड की दिशा पर गहरी नजर बनाए हुए थे.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सेंटर फॉर नियर-अर्थ स्टडीज की मानें तो अनुसार, इसी बुधवार यानि 29 अप्रैल को सुबह 5:56 बजे उल्कापिंड के पृथ्वी के पास से होकर गुजरेगा. वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह साइज में इतना बड़ा है कि पृथ्वी को आसानी से तबाह कर सकता है. इस उल्कापिंड का नाम 1998 OR2 है. वैज्ञानिकों को डर बस इस बात का सता रहा था कि इसके राह में हल्का सा भी परिवर्तन आया तो इसका प्रभाव पूरे विश्व को भुगतना पड़ सकता है. जिसके कारण भारत समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक इस पर नजर बनाए हुए थे.
आपको बता दें कि हर सौ साल में उल्कापिंड के धरती से टकराने की 50 हजार संभावनाएं होती हैं. हालांकि, वैज्ञानिकों के अनुसार उल्कापिंड जैसे ही पृथ्वी के पास आता है तो जल जाता है. आज तक के इतिहास में बहुत कम मामला ऐसा है जब इतना बड़ा उल्कापिंड धरती से टकराया हो. धरती पर ये उल्कापिंड कई छोटे-छोटे टुकड़े में गिरते है. जिनसे किसी प्रकार का कोई नुकसान आज तक नहीं हुआ है. जैसा कि ज्ञात हो इसके बारे में वैज्ञानिकों ने करीब एक महीने पहले ही बताया था कि यह पृथ्वी के बेहद करीब से होकर गुजरा है.
सोशल मीडिया में इस खबर के बाद से ऐसी चर्चाएं चल रही थी कि दुनिया 29 अप्रैल को समाप्त होने वाली है. और मौसम में परिवर्त्तन उसी के वजह से हो रहा था. लेकिन, आपको बता दें कि वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि नहीं की है अत: ऐसी चर्चाओं को विराम लगाएं. ये फिजूल की बातें है.
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आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में ‘टूटते हुए तारे’ अथवा ‘लूका’ कहते हैं. उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं. प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है.