13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

रुपये की गिरती कीमत

डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया इस हफ्ते 77 के करीब जा पहुंचा. बढ़ती आशंकाओं के मद्देनजर अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 80 के आंकड़े को भी पार सकती है.

डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया इस हफ्ते 77 के करीब जा पहुंचा. बढ़ती आशंकाओं के मद्देनजर अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 80 के आंकड़े को भी पार सकती है. साल की शुरुआत से अब तक रुपया सात प्रतिशत से अधिक की गिरावट का सामना कर चुका है. इसकी प्रमुख वजह है कि विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय पूंजी बाजार से पिछले महीने एक लाख करोड़ रुपये निकाल लिये गये. हालांकि, इस महीने बिक्री थम गयी है.

कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण आर्थिक मोर्चे पर चिंताएं सबसे अधिक बढ़ रही हैं. मौजूदा वक्त में बाजार जोखिम उठाने से बच रहा है, जिससे निवेशकों का रुझान डॉलर आधारित संपत्तियों में धन रखने की ओर हुआ है. नतीजतन, अन्य वैश्विक मुद्राओं की अपेक्षा डॉलर मजबूत हो रहा है. इक्विटी बिकवाली भारतीय मुद्रा के आगे सबसे गंभीर समस्या है. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) के पास भारतीय इक्विटी का 378 बिलियन डॉलर यानी कि 2,900,000 करोड़ रुपये का मालिकाना है. पूंजी का भारत से बाहर जाना, रुपये पर दबाव का कारण बन रहा है.

ब्लूमबर्ग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा साल के मध्य तक भारतीय मुद्रा छह प्रतिशत तक और लुढ़क सकती है. हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में आयी गिरावट से रुपये को कुछ राहत मिलने के आसार हैं. लेकिन, जोखिम बढ़ने पर पूंजी बाजार से निकासी का प्रभाव अधिक गहरा होगा. निर्यात से अधिक आयात में गिरावट आने से चालू खाता घाटा कम होने की संभावना है. रुपये को संभालने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने इससे पहले कई अहम फैसले लिये हैं. आगे अगर उतार-चढ़ाव की स्थिति जारी रहती है, तो पूंजी बाजार में निकासी की गति तेज हो सकती है. ऐसे हालात में आरबीआइ की आगे की कार्यप्रणाली बहुत महत्वपूर्ण होगी. चूंकि, दुनिया की सबसे तरल मुद्रा के लिए निवेशकों ने जोखिम भरी संपत्तियों से मुंह मोड़ लिया है, लिहाजा अन्य मुद्राओं की अपेक्षा डॉलर तेजी से मजबूत हो रहा है.

हालांकि, वैश्विक महामारी और फिर देशव्यापी लॉकडाउन के बाद उम्मीद है कि आरबीआइ शायद ही कोई बड़ा हस्तक्षेप करे, क्योंकि वह अपने रिजर्व को खत्म करने का जोखिम मोल नहीं लेगा. हालांकि, इस मामले में आरबीआइ सतर्क है, जिससे अवमूल्यन की गति धीमी पड़ने की संभावना है. लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को गति पकड़ने में समय लग सकता है, इसलिए आगे सरकार की भी भूमिका अहम होगी. निर्यात केंद्रित क्षेत्रों की वृद्धि के लिए नीतिगत स्तर की बाधाओं को दूर करना आवश्यक है. साथ ही आयात पर निर्भरता घटाने और मित्रवत नीतियों से विदेशी निवेश को आकर्षित करने जैसी पहल से लगातार कमजोर होते रुपये की समस्या का प्रभावी हल निकाला जा सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें