गिरिडीह : कोडरमा सांसद अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि कोरोना मामले में झारखंड सरकार गंभीर नहीं है. यही कारण है कि कोरोना से बचाव को लेकर धरातल पर राहत कार्य नहीं हो पा रहे हैं. कोरोना से निपटने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन हुए लगभग 28 दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन न ही अब तक दूसरे राज्य में फंसे झारखंड के मजदूरों की हितों को ध्यान में रखकर कोई कदम उठाया गया है और न ही कोरोना से बचाव को लेकर सभी जिलों में संसाधन ही मुहैया कराये जा रहे हैं.
दूसरे राज्य में फंसे झारखंड के मजदूर राज्य सरकार की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं, पर न ही ठीक से राहत राशि पहुंच पायी है और न ही रहने-खाने की व्यवस्था सरकार के स्तर से हो पायी है. काफी दिनों के बाद मजदूरों को राहत राशि देने के लिए राज्य सरकार ने सहायता एप्प बनाया, पर इसमें भी कई विसंगतियां हैं. कई मजदूर ऐसे हैं जो जिस राज्य में रह रहे हैं, वहीं पर अपना आधार कार्ड बनवा लिया है. जबकि कई मजदूरों ने अपना बैंक खाता भी उसी राज्य में खुलवा लिया है. ऐसे में इन मजदूरों को भुगतान में परेशानी होगी. कई मजदूरों का बैंक खाता आधार से लिंक नहीं है.
इस कारण से भी ऐसे लोग राहत राशि से वंचित हो जायेंगे. सरकार को इस मामले पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. सरकार को यूपी व बिहार की तर्ज पर राहत कार्य चलाना चाहिए. राहत कैंप के फेक आंकड़ें दे रही है सरकार :उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार का सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा सात हजार से भी ज्यादा राहत कैंप चलाने के आंकड़ें दिये गये हैं. लेकिन ये आंकड़ें फेक हैं. इसमें भी पारदर्शिता नहीं अपनायी जा रही है. 14 अप्रैल को उन्होंने इस संबंध में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव को पत्र लिखकर राहत कैंपों की सूची मांगी थी. ताकि मजदूरों तक उस सूची को भेजकर उन्हें लाभ लेने के लिए बोला जा सके.
हालांकि सात दिनों के बाद भी राहत कैंपों की सूची उन्हें नहीं मिल सकी. इतना ही नहीं, मैंने 18 हजार मजदूरों की सूची भी मुख्यमंत्री को सौंपी है. इन मजदूरों के भी खाने की व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है. इनमें से कई मजदूर आज भी फोन कर रहे हैं. कोटा मामले में भ्रमित कर रहे हैं हेमंत सोरेन :सांसद अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि कोटा मामले में राज्य सरकार को बिना विलंब किये पहल करनी चाहिए. जिस तरह से दूसरे राज्यों ने कोटा में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को अपने राज्य में वापस लाया है, उसी तरह झारखंड राज्य के उन बच्चों को भी वापस लाने की व्यवस्था करनी चाहिए जो लोग कोटा में पढ़ रहे हैं. ऐसा न कर हेमंत सोरेन लोगों को सिर्फ भ्रमित करने और दोषारोपण करने में लगे हुए हैं.
इस मामले पर जब लोग मुख्यमंत्री से ट्विटर पर सवाल कर रहे हैं तो उन्हें भ्रमित किया जा रहा है. यदि वे कोटा से बच्चों को लाना चाहते हैं तो इसमें केंद्र सरकार से पूछने की आवश्यकता क्या है. लॉकडाउन समाप्ति पर मजदूरों को वापस लाये सरकार :लॉकडाउन की समाप्ति के बाद दूसरे राज्य में फंसे मजदूरों को सरकार खुद लाने की व्यवस्था करे. लोगों के पास खाने, रहने के पैसे नहीं है. सबसे खराब स्थिति वहां रह रही महिलाओं की है. सभी लोग वापस आने के लिए बेचैन हैं. राज्य सरकार वापस लाने की दिशा में पहल करे. झारखंड के सभी भाजपा सांसद मदद के लिए तैयार हैं.
केंद्र सरकार ने फिर 1500 करोड़ की राशि राज्य सरकार को आवंटित कर दी है. पैसे की कमी नहीं होने दी जा रही है. बावजूद सरकार की मंशा साफ नहीं है. तीन करोड़ की आबादी में तीन स्थान पर कोरोना टेस्ट की व्यवस्था की गयी है. जबकि हर प्रमंडलीय स्तर पर कोरोना टेस्ट की व्यवस्था जरूरी है. संथाल परगना में भी एक लैब खोला जाना चाहिए. ताकि टेस्ट रिपोर्ट त्वरित गति से मिल सके. संक्रमण बढ़ रहा है, लेकिन उस अनुपात में जांच की प्रक्रिया तेज नहीं की गयी है.