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Chanakya Niti : लीडरशिप की एक गलती बर्बाद कर सकती है साथ वालों की लाइफ, जानिए क्या कहती है चाणक्य की नीति…

Chanakya Niti : आम जीवन मे यह कथन काफी कहा और सुना जाता है कि दूसरों के गलतियों की सजा मैं भुगत रहा हूं.अर्थात जो गलती मैंने की ही नही उसकी सजा मैं क्यों भुगत रहा हूं.इसी पर आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में अपने सुझाव दिए हैं और बताया है कि क्यों और किस तरह के लोग दूसरों की गलतियों की सजा भुगतते हैं.आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के जरिए यह बताया है कि कई बार ऐसा भी होता है जब आपको दूसरों की गलती का खामियाजा भुगतना पड़ता है.आइये जानते हैं वो कौन लोग हैं जो जीवन में एक दूसरे की किए हुई गलतियों की सजा भुगतते हैं.

Chanakya Niti : आम जीवन मे यह कथन काफी कहा और सुना जाता है कि दूसरों के गलतियों की सजा मैं भुगत रहा हूं.अर्थात जो गलती मैंने की ही नही उसकी सजा मैं क्यों भुगत रहा हूं.इसी पर आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में अपने सुझाव दिए हैं और बताया है कि क्यों और किस तरह के लोग दूसरों की गलतियों की सजा भुगतते हैं.आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के जरिए यह बताया है कि कई बार ऐसा भी होता है जब आपको दूसरों की गलती का खामियाजा भुगतना पड़ता है.आइये जानते हैं वो कौन लोग हैं जो जीवन में एक दूसरे की किए हुई गलतियों की सजा भुगतते हैं.

Chanakya Niti Shloka :

राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।

भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।

– आचार्य चाणक्य कहते है की किसी राज्य की जनता यदि कोई गलत कार्य करती हो तो उसकी सजा राजा या नेतृत्वकर्ता को ही भुगतना पड़ता है.इसलिए राजा को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसकी जनता कोई ऐसे कार्य को अंजाम न दे.

– चाणक्य कहते हैं कि अगर राज्य का अर्थात शासन का सलाहकार या पुरोहित अगर अपने कर्तव्यों का निर्वहन नही कर पा रहा हो.और राजा को सही गलत हालातों से अवगत नही करा रहा हो तो वो ही राजा की गलतियों के जिम्मेदार होते हैं.उन्हें राजा या नेतृत्वकर्ता को उनके द्वारा किए जा रहे गलतियों से रोकना चाहिए.

– इस श्लोक के जरिए चाणक्य आगे कहते हैं कि शादी के बाद अगर किसी व्यक्ति की पत्नी गलत काम करे और अपने कर्तव्यों का पालन सही तरीके से नही कर सके तो उसकी गलतियों का परिणाम उसके पति को भुगतना पड़ता है.इसलिए उसे अपनी पत्नी का अच्छा सलाहकार व मित्र बनकर उसे गलत होने से रोकना चाहिए.

– और अंत मे चाणक्य कहते हैं कि गुरु-शिष्य के रिश्ते में अगर कोई शिष्य गलत काम करे तो उसका अंजाम गुरु को भुगतना पड़ता है.गुरु का यह फर्ज होता है कि वो अपने शिष्य को गलत मार्ग पर चलने से रोकें.और सही मार्ग पर चलने के लिए उसे प्रेरित करें.नही तो शिष्य के गलत कामों का फल गुरु को भी भुगतना पड़ता है.

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