दार्जिलिंग : पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन की मांग की थी. इसके बाद भारत ने भी अमेरिका समेत विश्व के अन्य देशों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन देने का वचन दिया है. विभिन्न देशों से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की मांग बढ़ने के बाद दार्जिलिंग के सिन्कोना बागानवासियों में आशा की नयी किरण जगी है. इन दोनों दवाओं से मलेरिया की बीमारी ठीक हो जाती है. जहां हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन सिन्थेटिक है, वहीं सिन्कोना से बना कुनैन प्राकृतिक है.
विशेषज्ञों का मानना है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साइड इफेक्ट भी होते हैं, लेकिन सिन्कोना से बने कुनैन में ऐसा नहीं होता है. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से ज्यादा कारगर व गुणकारी सिन्कोना से तैयार किया गया कुनैन होता है. फिर भी कुनैन से ज्यादा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का प्रयोग लगातार किया जाता रहा है. विश्व के विभिन्न देशों द्वारा जब भारत से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की मांग की जा रही है, उसके बाद दार्जिलिंग व कालिम्पोंग जिले के 26 हजार एकड़ में लगे सिन्कोना के पेड़ चर्चा का विषय बने हुए हैं.
जानकारी के अनुसार मलेरिया की दवा से कोरोना पूरी तरह ठीक नहीं होता है. सिन्कोना से तैयार किये जाने वाले कुनैन को प्रयोग में लाया गया तो आज या कल सिन्कोना उद्योग के मजबूती से खड़ा होने की उम्मीद जगी है. सिन्कोना उद्योग को लेकर दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट ने भी काफी उत्सुकता दिखायी है. सांसद ने कई बार केंद्र व राज्य सरकार को इस बारे में पत्र भी लिखा है.
अभी देश में लॉकडाउन जारी है. आवागमन से लेकर अन्य सेवाएं ठप पड़ी है. सभी लोगों की जुबान पर केवल कोरोना की ही चर्चा है. सिन्कोना उद्योग पर भी लॉकडाउन का असर है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की मांग किये जाने के बाद सिन्कोना बागानवासियों में खुशी की लहर है.
Also Read: Coronavirus Lockdown: ममता बनर्जी ने दी चाय बागानों को खोलने की मंजूरीदूसरे विश्व युद्ध के बाद मलेरिया ने विश्व के विभिन्न देशों में कहर बरपा दिया था. उस दौरान मलेरिया को रोकने के लिए सिन्कोना की छाल से तैयार किया गया कुनैन काफी कारगर साबित हुआ था. इससे मलेरिया पर काबू पाया गया था. आज एक बार फिर पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है. कोरोनावायरस से निजात पाने के लिए दवा की खोज की जा रही है. ऐसी स्थिति में मलेरिया की दवा को आगे रखा गया है.
दार्जिलिंग के सिन्कोना बागान के नुकसान में होने की बात कही जा रही है. सिन्कोना कारखाना बंद है. जिसके कारण सिन्कोना की छाल से कुनैन सल्फेट तैयार नहीं हो रहा है. यदि तैयार किया गया होता तो आज कुनैन का भी प्रयोग किया जा सकता था. लाटपंक्चर, मंगपू, रंगपू, मन्सोग में सिन्कोना की खेती होती है. हालांकि मंगपू में सिन्कोना छाल की बिक्री का काम शुरू हो चुका है. सिन्कोना से तैयार कुनैन मलेरिया की अचूक दवा है.
सिन्कोना बागान में कार्य करनेवाले श्रमिकों ने बताया कि वर्तमान में बागान में पांच हजार श्रमिक कार्यरत हैं. जिनमें से कई रिटायर हो चुके हैं. इससे पहले सिन्कोना बागान से रिटायर कर्मियों के परिजनों को कार्य पर रखा जाता था, लेकिन विभाग की ओर से वित्तीय घाटा दिखाकर फिलहाल कर्मियों की नियुक्ति नहीं की जा रही है.