भयानक वैश्विक विपत्ति के इस दौर में कोई देश, चाहे वह कितना भी साधनसंपन्न और शक्तिशाली हो, कोरोना वायरस से अकेले लड़कर जीत हासिल नहीं कर सकता है. जब संक्रमण ने राष्ट्रों की सीमाओं की परवाह नहीं की है, तो किसी राष्ट्र को अपनी सीमाओं के भीतर ही बचाव कर पाना संभव नहीं है. हर स्तर पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सहकार की आवश्यकता है. वास्तव में यही वायरस का एकमात्र उपचार भी है. ऐसे में मित्र राष्ट्रों का एक-दूसरे के लिए दायित्व बहुत बढ़ जाता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उचित ही कहा है कि असाधारण समय में मित्र राष्ट्रों के बीच निकट सहयोग की अधिक आवश्यकता होती है. उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के लोगों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा मुहैया कराने के लिए धन्यवाद दिया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनसे सहमति जताते हुए कहा है कि ऐसी कठिन घड़ी में मित्र और निकट आते हैं. साथ ही, यह भरोसा भी जाहिर किया है कि हम सभी इस संकट से एक साथ उबर जायेंगे. इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि रहे ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो ने भी भारत से यह दवा मुहैया कराने का निवेदन किया है. उन्होंने रामकथा का हवाला देते हुए लक्ष्मण की जान बचाने के लिए हनुमान जी द्वारा हिमालय से संजीवनी लाने का उल्लेख भी किया है. इस क्रम में हमें यह भी याद करना चाहिए कि जब चीन में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ रहा था, तब भारत ने जरूरी मेडिकल सामान भेजे थे.
तब भी उसी तरह से निर्यात से जुड़े कुछ नियमों में बदलाव किया गया था, जैसा कि अमेरिका और अन्य देशों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन देने के मामले में किया गया है. आज जब हमें जरूरी चीजें चाहिए, तो चीन मदद दे रहा है. चीन और रूस द्वारा अमेरिका और यूरोपीय देशों को भी लगातार मदद भेजी जा रही है. चीन को प्रारंभ में इटली से भी सहयोग मिला था, जो बाद में बड़े पैमाने पर संक्रमण और मौतों का शिकार बना. तब चीन आगे आया. रूस और चीन तथा पश्चिमी देशों के बीच विभिन्न राजनीतिक और आर्थिक कारणों से अक्सर तनातनी की स्थिति बनी रहती है.
पर, कोरोना संकट की भयावहता ने विवादों को किनारे रख सहयोग को सबसे महत्वपूर्ण बना दिया है. कई देशों में अपने चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को भेजकर क्यूबा ने भी जता दिया है कि जिसके पास जो है, वह दूसरों को उपलब्ध कराये ताकि इंसानी मौतों का सिलसिला थमा सके. यही मनुष्यता का मूल्य भी है और वैश्वीकरण का आधार भी. प्रधानमंत्री मोदी पहले ही दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहकार का आह्वान कर चुके हैं और आर्थिक व अन्य तरह के योगदान का वादा भी कर चुके हैं. यही भावना बड़ी अर्थव्यवस्था के देशों के समूह जी-20 की बैठक में भी व्यक्त की गयी है. सावधानी के लिए हाथ नहीं छूना है, पर एक-दूसरे का हाथ छोड़ना भी नहीं है.