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Lockdown in India : यूपी में फंसे बिहार के लोगों की मदद के लिए हेल्प डेस्क स्थापित, एक फोन पर मिलेगी मदद

कोरोना वायरस के बढ़ते सक्रमण के खतरे को कम करने के उद्देश्य ये देशभर में लागू किये लॉकडाउन के कारण उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों और रास्तों में फंसे बिहार के लोगों को भूखा नहीं रहना होगा.

नयी दिल्ली/पटना : कोरोना वायरस के बढ़ते सक्रमण के खतरे को कम करने के उद्देश्य ये देशभर में लागू किये लॉकडाउन के कारण उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों और रास्तों में फंसे बिहार के लोगों को भूखा नहीं रहना होगा. एडीजी अजय आनंद ने अपने गृह राज्य बिहार के लोगों की मदद के लिये एक हेल्प डेस्क स्थापित करा दी है. इसकी निगरानी वह खुद कर रहे है. इस हेल्पलाइन पर फोन करने वालों को भोजन पहुंचाया जायेगा. बिहार के गरीब मजदूरों को राशन भी उपलब्ध कराया जायेगा.

गौर हो कि दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में काम करने वाले बिहार के हजारों प्रवासी कामगार पैदल-साइकिल से अपने घर लौटने के लिए मजबूर है. सभी को आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, मैनपुरी, एटा, कासगंज, अलीगढ़ और हाथरस से गुजरने वाले हाइवे, यमुना एक्सप्रेस वे, लखनऊ एक्सप्रेस वे और जीटी रोड से गुजरना है.

इन सबके बीच एडीजी अजय आनंद ने प्रभात खबर को बताया कि संकट की इस घड़ी में बिहार से ऐसे बहुत परिवार उत्तर प्रदेश में होंगे जो दैनिक भत्ता से परिवार का पोषण कर रहे होंगे. अब वे अचानक बेरोजगारी का दंश झेल रहे है. मेरी छोटी सी कोशिश होगी कि हम सब मिल कर उनके इस संकट में किसी काम आ सके. सभी लोगों से गुजारिश है कि अगर वे ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हो जिन्हें खाना या राशन की आवश्यकता है वह मोबाइल नंबर 7017636622 पर फोन करें. उनकी जरूरतों को पूरा किया जायेगा.

प्रवासी कामगारों के लिए रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना हुआ मुश्किल

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिये सरकार ने जब लॉकडाउन (बंद) घोषित किया तो घरेलू सहायिका के तौर पर काम करने वाली ममता ने बिहार स्थित अपने गांव नहीं जाने का फैसला किया था, लेकिन अब उसे इस पर अफसोस है. पेशे से माली भीम सिंह भी परेशान हैं, वह पाबंदी के कारण अपना वेतन नहीं ले पा रहे और उनके लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है. ये दर्द है उन प्रवासी कामगारों का जो अपनी आजीविका के लिये राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही रुक गये थे.

ममता बिहार के दरभंगा जिले स्थित अपने पैतृक गांव नहीं गयी और अब…

देश भर में बंद लागू है और उनकी शिकायत है कि उन्हें उन हाइ-प्रोफाइल सोसाइटी से दूर किया जा रहा है जहां वे काम करते थे. सरकार द्वारा 24 मार्च को घोषित किये गये बंद के बाद से ही बेहद कम खाना खाकर किसी तरह गुजारा कर रही ममता (57) को लगा था कि वह जल्द ही फिर से नोएडा की सोसाइटी में घरेलू सहायिका के तौर पर काम करने लगेगी और यही सोचकर वह बिहार के दरभंगा जिले स्थित अपने पैतृक गांव नहीं गयी.

अपनी तनख्वाह लेना भी हुआ मुश्किल : ममता

ममता की उम्मीदों पर हालांकि जल्द ही पानी फिर गया क्योंकि वह जब-जब काम पर जाने के लिये घर से बाहर निकलती पुलिस उसे रोक देती और वापस घर भेज देती. उन्होंने कहा, “मुझे डांटा गया और डंडा दिखाते हुए कहा गया कि मैं अपनी और दूसरों की जिंदगी जोखिम में डाल रही हूं.” ममता ने कहा, “मैं 1 अप्रैल का इंतजार कर रही थी और सोच रही थी कि कम से कम अपनी तनख्वाह तो ले सकूंगी, लेकिन यह भी न हो सका. मुझे वापस भेज दिया गया.”

मेरा कोई बैंक खाता भी नहीं

ममता ने कहा, “हम अपने नियोक्ताओं तक नहीं पहुंच पा रहे, न ही वे हमारा वेतन देने हमारे मुहल्ले तक आ पा रहे हैं. मेरा कोई बैंक खाता भी नहीं है.” पूछे जाने पर ड्यूटी पर तैनात एक पुलिसकर्मी ने कहा कि वे सिर्फ आदेशों का पालन कर रहे हैं और घरेलू सहायिकाएं ‘आवश्यक सेवाओं’ की सूची में शामिल नहीं हैं. उसने कहा, “हम उन्हें कैसे जाने दें? अगर वो सड़क पर घूमती मिलीं तो हमारी फजीहत होगी.”

गरीब लोगों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार : ममता

एक अन्य घरेलू सहायिका मेघा ने कहा कि जब वह अपना मासिक वेतन मांगने गयी तो उसे वापस जाने के लिये कह दिया गया. उसने कहा, “हम सभी को बीमारी का जोखिम है, लेकिन ऐसे मौकों पर भी गरीब लोगों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता है.”

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