गोपालगंज : देर से उठने, ब्रश व नाश्ता करने. बिना हाथ धोये खाने बैठ जाने जैसी गलत आदतें अब छूटने लगी हैं. लॉकडाउन लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सिखा रहा है. इतना ही नहीं फिजूलखर्ची पर भी रोक लगी है और गत् वर्षों की अपेक्षा इस बार बदलते मौसम में बच्चे से लेकर बड़े तक बीमार भी कम ही पड़ रहे हैं. सच, लॉकडाउन ने बच्चों से लेकर बड़ों तक के जीवन जीने का तरीका बदल दिया है. समय से जगना, ब्रश व नाश्ता करना, स्नान कर लेना, भोजन करना और हर आधा-एक घंटा पर हैंडवॉश करना अब लोगों की आदत बनती जा रही है.
बड़ों को देख बच्चे भी इन आदतों को अपना रहे हैं. दूसरी ओर लॉकडाउन में रोजगार प्रभावित होने से भले ही परिवार में आमदनी कम हुई है, लेकिन सच्चाई यह है कि फिजूलखर्ची पर भी रोक लगी है. बाहर नहीं जाने से बड़े व बच्चे फिजूलखर्ची से बच रहे हैं. इससे उन्हें समझ आ रही है कि ऐसा पहले भी वे करते तो, पैसे बचा सकते थे. शिक्षक राजमंगल सिंह बताते हैं कि लॉकडाउन सिर्फ कोरोना वायरस के संक्रमण से नहीं बचा रहा, बल्कि अन्य बीमारियों से भी बचाव कर रहा है. घरों में रहने व अच्छी आदतों को अपनाने से दूसरी बीमारियां भी दूर रह रही हैं.
मम्मी-बहनों के हाथों का बना खा रहे बच्चेमम्मी आज सूजी का हलवा बना दो. नहीं मम्मी मुझे तो सैंडविच चाहिये. नहीं-नहीं इडली-डोसा बना दो. सुबह व शाम में इस तरह की फरमाइश करते कई घरों में बच्चे देखे व सुने जा रहे हैं. लॉकडाउन में बाहरी चीजें खाने को नहीं मिल रहीं. बच्चों को अब घर में मम्मी व बहनों द्वारा बनायी गयीं चीजें बहुत पसंद आ रही हैं. गृहिणी पुष्पांजलि देवी बताती हैं कि घरों में बच्चों के रहने से फिजूलखर्ची रुकी है. पैसे बच ही रहे हैं, बच्चे बाहर की चीजों को खाकर बीमार होने से भी बच रहे हैं.
काम में हाथ बंटाना सीख रहे, मिल रही खुशीलॉकडाउन से घर में बच्चों की पसंद की चीजें मिल रही हैं, तो वे भी अपनी मम्मी के कामों में हाथ बंटा रहे हैं. इससे काम आसान हो जा रहे हैं. घर व कपड़ों की सफाई से लेकर किचन तक बेटियों को मम्मी के साथ काम करते देखा जा रहा है. पिहू व जिया बताती हैं कि मम्मी के साथ काम में हाथ बंटाने से उन्हें काफी खुशी मिल रही है. साथ ही इन कामों को सीखने का मौका भी मिल रहा है.