नवमी तिथि मधुमास पुनीता। सकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।
नवमी भौम वार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।
जेहि तिथि राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल जहां चलि आवहिं।।
त्रेता युग में आज के पुण्य दिवस पर प्रभु श्रीराम, जो विष्णु के अवतार थे, मनुष्य रूप में पृथ्वी का उद्धार करने के लिए अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ के घर पुत्र बनकर अवतरित हुए. माता-पिता, भाई, बंधु एवं पति-पत्नी के रिश्तों का मर्यादित होकर पालन किया.
राज्य, उसकी रक्षा, राक्षसी प्रवृत्तियों से सज्जनों, ऋषि-मुनियों का उद्धार एवं सनातनी मर्यादाओं का संरक्षण किया. अर्थात् यत्र, तत्र, सर्वत्र सनातनी मर्यादाओं को लेकर श्रीराम आगे चले. यद्यपि, वे अपने अवतार के विषय में जानते थे, तथापि उन्होंने इसे अव्यक्त रखा, ताकि जनमानस में उनकी छवि एक मर्यादित राजकुमार और कालांतर में एक सुयोग्य राजा की बनी रहे.
जिसे रामराज्य के रूप में परिभाषित किया गया. अपने जन्म रहस्य एवं कुछ कार्यों को उन्होंने अपने अनुज लक्ष्मण तक से अव्यक्त रखा, जैसे सीता हरण. उन्होंने सीता को कह दिया कि हे जानकी, मैं कुछ ऐसी लीला करने जा रहा हूं, जो हम तक ही सीमित रहे एवं इस रहस्य को लक्ष्मण भी न जान पायें. वे कहते हैं- उमा करहूं मैं यह नर लीला, तुम पावक मह करहूं निवासा. भगवान यहां पर रावण जैसे अत्याचारी का विनाश करना चाहते हैं, किंतु यह रहस्य स्वयं एवं सीता तक गोपनीय रखा.
लोक प्रसिद्ध रामराज्य के संस्थापक प्रभु श्रीराम ने आज की रिक्ता तिथि को भी अपने दिव्य आलोक से पूर्णा तिथि में परिवर्तित कर दिया. भाव यह है कि नवमी तिथि रिक्ता अर्थात खाली तिथि मानी जाती है, जिसे भगवान श्रीराम ने अपने अद्भुत कर्मों द्वारा पूर्णा तिथि सदृश बना दिया. अर्थात् वे पूर्ण थे. श्रीराम का चरित्र संसार के एक मर्यादित राजा की कहानी है.
भगवान श्रीराम न केवल विरक्त साधु, संन्यासियों के लिए, अपितु गृहस्थों के लिए भी संजीवनी के रूप में रहे हैं. एक सच्चे राजा, गृहस्थ, पति, भ्रातृ प्रेमी का क्या शुभ आचरण हो, यह उनके चरित्र से सीखने को मिलता रहा है. भगवान श्रीराम के जीवन की प्रत्येक घटना हमारे जीवन को सच्ची सीख देती है. यह एक ऐसा नाम है जो प्रत्येक भारतीय के हृदय पटल पर हर अच्छी व बुरी स्थिति में अकस्मात आ जाता है. श्रीराम का चरित्र दीप स्तंभ है, जो संपूर्ण सृष्टि को दीपदान देकर प्रकाशित करता रहेगा. यदि प्रभु के चरित्र की प्रत्येक घटना को हृदयंगम एवं आत्मसात किया जाये, तो नि:संदेह संसार सागर में बहती हुई जीवन नैया को पार करने में वह दीप स्तंभ का काम करेगी.
रामनवमी हमारा धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व है. हिंदू संस्कृति के उद्दात आदर्शों को स्मरण दिलाता हुआ यह पर्व पथभ्रष्ट मानव समाज के सामने सुख-शांति के सच्चे मार्ग को प्रस्तुत करने में समर्थ है. आज संसार में जब सर्वत्र भयावह वातावरण व्याप्त हो चुका है एवं प्रकृति का दोहन हो रहा है, उस संदर्भ में भी श्रीराम का चरित्र प्रकृति के संरक्षण का सच्चा मार्गदर्शक भी है.
वनवास काल के दौरान श्रीराम ने पंचवटी के पर्णकुटी में रहते हुए जिस प्रकार प्रकृति के साथ तादात्मय बनाकर प्रकृति का संवर्धन और दुश्प्रवृत्तियों का विनाश एवं सुप्रवृत्तियों का संरक्षण किया था, उससे हमें प्रकृति के संरक्षण की सीख भी मिलती है. सीता हरण पर विलाप करते हुए प्रकृति को पूर्ण ब्रह्म का रूप देते हुए वे कहते हैं– हे खग, हे मधुकर, हे श्रेनी, तुम देखहुं सीता मृगनयनी. अर्थात् उन्होंने दुख में भी प्रकृति को अपने साथ जोड़े रखा.
श्रीराम का जन्म समय बसंत ऋतु है. इस समय प्रकृति का नवसृजन हो रहा होता है. सर्वत्र हरियाली दृष्टिगोचर होने लगती है. इसलिए इस पर्व के पहले दिन से अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हिंदू संस्कृति के कैलेंडर का नया दिन प्रारंभ होता है. यह सृष्टि रचना का भी प्रथम दिवस माना जाता है. प्रकृति के नये होने के कारण मनुष्य में भी नयी ऊर्जा का सृजन होता है. अत: चैत्र नवरात्रि में एकाहारी रहकर शरीर शुद्धि का भी विधान है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी के दिन तक मां दुर्गा के नौ रूपों के पूजन के उपरांत यज्ञ अनुष्ठान होते हैं, जिससे जीवन नव-सृजन की ओर अग्रसित होता है.