नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केन्द्र सरकार ने पलायन मजदूरों की मनोदशा और डर खत्म करने के लिए रणनीति तैयार की है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दस्तावेज जारी कर कहा है कि पलायन मजदूरों के साथ किसी भी तरह के भेदभाव कै बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. मंत्रालय ने साथ भी हिदायत देते हुए कहा है कि जो भी लोग ऐसा करेंगे उनपर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए.
दरअसल, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिये घोषित देशव्यापी बंदी (लॉकडाउन) के कारण प्रवासी मजदूरों को हुए सामाजिक, मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक तनाव से बाहर लाने के लिये इन मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा दिये जाने की जरूरत पर बल दिया है. मंत्रालय द्वारा जारी एक दस्तावेज में प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन के कारण हुयी वेदना का जिक्र करते हुये इन्हें इस आघात से बाहर लाने के लिये सामाजिक सुरक्षा दिये जाने को जरूरी बताया है.
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी. इसके तहत बस और रेल सहित सभी यात्री सेवायें बंद होने के कारण दिल्ली सहित विभिन्न महानगरों से प्रवासी मजदूरों ने अपने गृह राज्यों की ओर पैदल ही जाना शुरु कर दिया.
दस्तावेज में कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों के सामने भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य सुविधा, रोजी रोटी से हाथ धो बैठने की चिंता के अलावा वायरस के संक्रमण का भय भी मन में बैठ गया है. मंत्रालय ने माना कि कभी कभी उन्हें शोषण के अलावा स्थानीय समुदायों की नकारात्मक टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ा. इन परिस्थितियों के मद्देनजर इन्हें मजबूत सामाजिक सुरक्षा की दरकार है जिससे उन्हें इस दंश के कारण हुये भावनात्मक एवं मानसिक आघात से बाहर लाया जा सके.
मंत्रालय ने लॉकडाउन घोषित होने के बाद प्रवासी मजदूरों के सामने पैदा हुयी समस्याओं का जिक्र करते हुये कहा कि अपने मूल निवास स्थान पर पहुंचने के दौरान कुछ दिनों तक इन लोगों को अस्थायी आश्रय स्थलों पर रहना पड़ा. बेहद मुश्किल भरी यात्रा के अनुभवों ने इन मजदूरों को भयभीत मनोदशा में पहुंचा दिया. मंत्रालय ने कहा कि इस स्थिति से बाहर लाने के लिये इन्हें सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक सहारे की जरूरत है