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इस युद्ध में विश्व जीतेगा भारत

आपदा का समय किसी समाज और नेतृत्व के लिए परीक्षा के समान होता है, या तो वह ध्वस्त होकर काल की यवनिका के पीछे तिरोहित हो जाता है अथवा वीरोचित संग्राम कर काल के कपाल पर अपना विजय गान अंकित करता है.

तरुण विजय

वरिष्ठ नेता, भाजपा

tarunvijay55555@gmail.com

आपदा का समय किसी समाज और नेतृत्व के लिए परीक्षा के समान होता है, या तो वह ध्वस्त होकर काल की यवनिका के पीछे तिरोहित हो जाता है अथवा वीरोचित संग्राम कर काल के कपाल पर अपना विजय गान अंकित करता है. आज के संदर्भ में कहें, तो या तो वह इटली के प्रधानमंत्री की तरह सार्वजनिक पराजय स्वीकार कर बैठ जाता है या भारत के नरेंद्र मोदी की तरह लड़ता है. सबको हिम्मत के साथ युद्ध के लिए प्रेरित करता है और विजय का विश्वास तैयार करता है. अभी तक जो स्थिति है, वह आशा का संचार करती है. ट्विटर और सोशल मीडिया पर एक वर्ग सक्रिय होकर हर तरह के अच्छे व कम अच्छे अनुभवों को साझा कर रहा है, तो गरीब और निम्न आय वर्ग की करुणाजनक त्रासदी भी छन-छन कर सामने आ रही है.

भारत के पास वह सब है, जो इस युद्ध में जीतने के लिए जरूरी है. हमारी सनातन जीवन पद्धति ने इससे बड़े तूफानों और आक्रमणों को परास्त किया है. अब पुनः उसको अपनाने की आवश्यकता है. अरुणाचल से लद्दाख और अंडमान से कच्छ तक जो विराट एकजुटता दिख रही है, वह विश्वास दिलाती है कि भारत इस युद्ध में न केवल विजयी होगा, बल्कि यह विजय उसके नैतिक नेतृत्व को स्थापित करेगी, जो चीन और अमेरिका से बड़ा तथा दीर्घकालिक होगा. हमारी बहुलता, हमारा लोकतंत्र, हमारी अतुलनीय वैचारिक स्वतंत्रता और मूलतः हमारे देश में धर्म के प्रति गहरी आस्था हमें शेष समस्त विश्व से पृथक एक उच्चासन पर स्थापित करती है, जो मिसाइलों और घातक विषाणु युद्ध के रचयिताओं से बड़ा है.

बात अरुणाचल से शुरू करते हैं. यह बात बहुत कम लोग महसूस कर पाते होंगे कि अरुणाचल प्रदेश 1962 के बाद आज दूसरे युद्ध में सन्नद्ध है. दूसरा युद्ध है चीन से आये वायरस के साथ. अरुणाचल सारे देश में सबक सीखने लायक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है. दिल्ली से नाहरलगुन तक 2104 किलोमीटर की दूरी तय करनेवाली रेलगाड़ी उत्तर-पूर्वी राज्यों के रंगारंग वस्त्रों में यात्रा कर रहे भारतीयों से परिचित कराती है.

यह रेलगाड़ी इतने सुंदर प्रदेशों से गुजरती है कि लगता है भारत सच में देवताओं का ही देश है. यह सूर्योदय की भूमि है और यहां के मुख्यमंत्री पेमा खांडू से मैंने हंसकर कहा कि आप तो सारे भारत को जगाते हैं. उन्होंने कोरोना के विरुद्ध युद्ध की तैयारी में जिस तरह से अपने आप को झोंक दिया है, वह हम सबके लिए खुशी और प्रेरणा की बात है. प्रदेश के सभी सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का विशेष उपयोग किया जा रहा है.

समन्वित रोग निगरानी विभाग के सैकड़ों अधिकारी स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकर्ताओं की तरह ब्लाॅक और ग्रामीण स्तर तक जा रहे हैं, तथा सभी जिलों में आइसोलेशन और स्वयं प्रेरित एकांत की अरुणाचलीय जनजातीय पद्धति से जो व्यवस्था की गयी है, वह बड़ी रोचक और सुंदर दिखती है. लेकिन, अरुणाचल हो या गुजरात, आज यह देखने का समय नहीं है कि सरकार किसकी है, कौन व्यक्ति कुर्सी पर बैठा है और कौन दल सत्ता में है. हर प्रदेश ने अपने-अपने क्षेत्र मे कोरोना के खिलाफ बहुत अच्छे उदाहरण प्रस्तुत किया है. आप पटना में ही देखें, तो स्टेशन के पास प्रसिद्ध महावीर मंदिर है. वहां के संचालक कुणाल किशोर ने मंदिर की ओर से मुख्यमंत्री को कोरोना कोष हेतु एक करोड़ रुपये दिया है.

लखनऊ में बैठे संन्यासी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने गरीब दिहाड़ी मजदूरों की आय पर कोरोना के कारण होनेवाले प्रभाव से उन्हें बचाने के लिए आर्थिक राहत सीधे खातों में देने की घोषणा की है. इसी प्रकार उत्तराखंड से लेकर हिमाचल, कश्मीर, लद्दाख और केरल तक विभिन्न मुख्यमंत्रियों तथा सरकारों ने अपने-अपने क्षेत्र में भरसक प्रयास किया है. सरकारों के अलावा अनेक नागरिक स्वयंसेवी संगठन, संघ एवं मठ भी जुटे हैं. पशुओं के लिए चारे और भोजन के व्यवस्था करनेवाले भी अनेक हैं.

यह है कोरोना वायरस के प्रकोप का सकारात्मक परिणाम. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्यंत संवेदनाओं से भरे उद्बोधनों से आपदा के इस माहौल में बेखौफ घूम रहे लोगों को अपने स्तर पर हर सावधानी बरतने हेतु प्रेरित किया. कोरोना के बाद भारत ही नहीं, शेष विश्व वैसा ही रहेगा, जैसा पहले था. जिसके पास विचार का बल, नवनीत का संदेश होगा, वही जीतेगा. अतिवादी अहंकारी पशुबल के सामने भारत अपनी सकारात्मक शक्ति से विश्व क्षितिज पर नयी पहचान बनायेगा, यह नियति का संकेत है. राष्ट्रकवि दिनकर के शब्दों में, ‘एक हाथ में कमल एक में धर्मदीप्त विज्ञान/ लेकर उठने वाला है धरती पर हिंदुस्तान…’ (यह लेखक का निजी विचार है)

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