विषाणु विज्ञानी मीनल दखावे भोसले ने भारत में कोरोना वायरस की जांच की पहली किट बनाने में लगी टीम का नेतृत्व किया और वह भी ऐसे समय में जब वह गर्भावस्था के अंतिम चरण में थीं. ले के प्रयास कारगर साबित हुए और उनकी टीम ने छह हफ्ते के रिकॉर्ड समय में जांच किट तैयार कर ली. ले ने मूल्यांकन के लिए अधिकारियों को यह किट सौंपे जाने से महज एक दिन पहले बच्ची को जन्म दिया.
उन्होंने पीटीआई-भाषा से फोन पर कहा, “यह दो बच्चों को जन्म देने जैसा था.” उन्होंने कहा कि समानांतर चल रहे दो सफर में बहुत चुनौतियां थी. भोसले ने बताया, “गर्भावस्था में कुछ जटिलताएं थीं और उधर, जांच किट पर भी काम जारी था. बच्ची का जन्म सीजेरियन से हुआ.” उन्होंने कहा कि उन्हें लगा कि कोरोना वायरस से निपटने में लोगों की मदद के लिए सेवा देने का यह सही समय था. विषाणु विज्ञानी ने कहा,“मैं इस क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों से काम कर रही हूं और अगर मैं आपात स्थिति में काम नहीं करुं, जब मेरी सेवाओं की सबसे ज्यादा जरूरत हो तो इसका क्या फायदा?” भले ही भोसले गर्भावस्था के चलते दफ्तर नहीं जा पाती थीं लेकिन वह पुणे की माइलैब डिस्कवरी में इस परियोजना पर काम कर रहे 10 लोगों की टीम का मार्गदर्शन कर रही थीं.
वह बताती हैं कि इतने सालों तक साथ काम करने से टीम के साथ एक विशेष जुड़ाव हो गया था और उनके सहयोग से यह संभव हो पाया. कंपनी के सह संस्थापक श्रीकांत पटोले ने कहा कि किसी दवा की खोज की तरह ही टेस्ट किट को भी उच्चतम स्टीकता हासिल करने के लिए कई परीक्षणों से गुजरना पड़ता है. उन्होंने प्रोजेक्ट की सफलता का श्रेय भोसले को दिया.
भोसले की टीम ने जो टेस्ट किट बनाई है उससे जांच करने पर आठ घंटे के बजाय ढाई घंटे में ही कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट मिल जाएगी. मेलैब टेस्ट किट कीमत 1200 रूपया होगी जो कि सरकार द्वारा अभी तक टेस्ट किट पर खर्च की जा रही 4500 रूपये की धनराशि का करीब एक चौथाई है. भोसले कहती हैं, ‘‘ मुझे खुशी है कि मैं देश के लिए कुछ कर सकी.” शुक्रवार को देश के 130 करोड़ लोगों में से केवल 27,000 की ही कोरोना वायरस के लिए जांच हो सकी. विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े पैमाने पर जांच बहुत ज्यादा जरूरी है क्योंकि एकमात्र इससे ही संक्रमण का जल्द पता लगाकर मौतों को रोका जा सकता है.