जयपुर : भारत ने कभी ऐसे हालात का सामना नहीं किया. कोरोना वायरस की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन है. केंद्र और राज्य सरकारें बार-बार अपील कर रही हैं कि आप जहां हैं, वहीं रहें. आपकी जरूरत का हर सामान उपलब्ध होगा. यदि आप अपने घरों से बाहर निकले, तो कोरोना वायरस को फैलने में मदद करेंगे. इससे भारी संख्या में लोग बीमार पड़ेंगे और उनको इलाज उपलब्ध कराना मुश्किल हो जायेगा. चीन, इटली और अमेरिका जैसे हालात हो जायेंगे. लेकिन, लोगों की अपनी समस्या है. उनके पास काम नहीं है. पैसे नहीं हैं. मकान मालिक घर से निकाल रहा है. खाने को कुछ नहीं है. इसलिए लोग अपने घरों की ओर पलायन कर रहे हैं.
शनिवार को दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल पर मौजूद प्रवासियों की भीड़ ने पूरे देश को विचलित कर दिया था. पूरे देश का मीडिया उसका लाइव कवरेज कर रहा था, लेकिन कई और इलाके हैं, जहां मीडिया पहुंचता ही नहीं. ऐसी एक जगह है रतनपुर. राजस्थान और गुजरात को जोड़ने वाला बॉर्डर है रतनपुर. लॉकडाउन की घोषणा के बाद से लगातार कई दिनों से यहां हजारों लोग जुटते हैं. अपनी हैसियत के हिसाब से अलग-अलग वाहनों में सवार होकर राजस्थान के अपने गांवों को जा रहे हैं.
रोजगार की तलाश में ये लोग गुजरात और महाराष्ट्र जाते हैं. अब जबकि रोजगार चौपट हो गया, तो वहां रहकर करेंगे क्या? कमायेंगे नहीं, तो खायेंगे क्या? और फिर दिहाड़ी मजदूरों को सरकार की किस योजना का लाभ मिलना है, जिसका वे इंतजार करें. सरकार घोषणाएं तो कर रही हैं, लेकिन उसका लाभ इन लोगों तक पहुंच भी पा रहा है या नहीं, इसको देखने वाला कोई नहीं है. यही वजह है कि इन मजदूरों की चिंता बढ़ गयी और सभी लोग अपने-अपने घर लौटने लगे. इनका कहना है कि दिन भर कमाते हैं, तो रात और अगली सुबह के भोजन का इंतजाम होता है. जब कमायेंगे ही नहीं, तो खायेंगे कैसे. भूख से मरने से तो बेहतर है कि अपनों के बीच बीमारी से ही मर जायें.
ऐसा नहीं है कि अपने घरों को लौटने वालों में सिर्फ मजदूर वर्ग के ही लोग हैं. कुछ नौकरीपेशा लोग हैं, तो कुछ छात्र भी हैं. छात्रों से कह दिया गया कि वे हॉस्टल या पीजी खाली करके चले जायें. उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है. वहीं, कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो सोचते हैं कि जान है तो जहान है. क्यों न घर पर ही रहें. ट्रेनें और बसें बंद हैं. लेकिन, मजबूरी में जहां-तहां फंसे लोगों की जिद है कि वे अपने घर पहुंचकर रहेंगे. गाड़ी मिली तो ठीक, नहीं तो पैदल ही चले जायेंगे. यही वजह है कि लोग रिक्शा में, टेंपो में, ट्रॉला में सवार होकर रतनपुर बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं.
लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र और गुजरात से आने वाले राजस्थान के लोगों को यहीं रोका जा रहा है. पहले स्वास्थ्य से जुड़े कुछ सवालों के साथ लिस्टिंग होती है और फिर मेडिकल की टीमें चेकअप करती हैं. अंतिम जांच के बाद मेडिकल स्टाफ हाथ पर सील लगा देते हैं तो उस व्यक्ति को आगे की यात्रा की अनुमति मिल जाती है. वैसे लगभग सभी लोगों को यात्रा की अनुमति यहां से मिल ही जाती है. लोगों को आगे बढ़ने की अनुमति देने के साथ यह भी निर्देश दिया जाता है कि वे अगले 14 दिन अपने घर में ही रहें. यानी क्वारेंटाइन अर्थात् होम आइसोलोशन में रहें. यह भी बताया जा रहा है कि अगर सर्दी-जुकाम, खांसी और बुखार हो, तो तुरंत हॉस्पिटल में जाकर डॉक्टर से चेकअप करवायें.
काफी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी बाइक से ही अपने घरों को निकल पड़े हैं. पैदल और बाइक से यात्रा करने वाले ये लोग जब सफर में थक जाते हैं, तो हाइ-वे पर ही सो जाते हैं. डिवाइडर पर गमछा या चादर बिछायी और सो गये. आखिर इतने लंबे सफर में थोड़ा आराम भी तो जरूरी है. इस मुश्किल घड़ी में डॉक्टरों की बड़ी टीम दिन-रात काम कर रही है. मेडिकल टीम की मानें, तो हर दिन 15 से 20 हजार लोग रतनपुर बॉर्डर के रास्ते राजस्थान में प्रवेश कर रहे हैं. उनकी टीम एक सप्ताह से (22 मार्च, 2020 से) यहां तैनात है. लोगों के घर जाने की जिद के आगे प्रशासन ने भी घुटने टेक दिये हैं. ऐसे लोगों के लिए छोटी-बड़ी 100 से ज्यादा गाड़ियों के इंतजाम किये गये हैं.