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कोरोना से जंग: नीम की पत्तियों से खुद बनाएं सैनिटाइजर, जानिए कैसे करेगा फायदा

लोग घरों में नीम की पत्तियां डंठल सहित रखते थे. इससे घर सैनिटाइज होता था. नीम की पत्तियां पीसकर गिलास के गिलास पीते भी थे, जिससे लोग निरोग रहते थे

नालंदा. बिहार के नालंदा जिले में कोरोना वायरस से बचाव के लिए लोग प्राकृतिक सैनिटाइजर के रूप में नीम व उसकी पत्तियां का प्रयोग कर रहे हैं. पहले चैत माह में नीम की पत्तियों का उपयोग गांव-घर में करने की परंपरा थी. लोग घरों में नीम की पत्तियां डंठल सहित रखते थे. इससे घर सैनिटाइज होता था. नीम की पत्तियां पीसकर गिलास के गिलास पीते भी थे, जिससे लोग निरोग रहते थे. नीम प्राकृतिक सैनिटाइजर है, जो वातावरण को सैनिटाइज करने की क्षमता रखता है. पर्यावरण प्रेमी और पीपल, नीम, तुलसी के संस्थापक डॉ धर्मेंद्र कुमार बताते हैं कि जब से मनुष्य के रहन-सहन में परिवर्तन और शहरीकरण का भाव मन में आया है, तब से धीरे-धीरे लोग प्रकृति से दूर होते चले जा रहे हैं.

उसी का नतीजा है ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण-जलवायु में परिवर्तन. असमय वर्षा-गर्मी-सर्दी होना यह सब प्रकृति के साथ खिलवाड़ का परिणाम है. वे कहते हैं चैत माह में पतझड़ के बाद नीम के पेड़ों पर छोटी-छोटी, नयी-नयी पत्तियां उगती हैं. पहले उन पत्तों को चबाकर या पीसकर उनका रस (जूस) निकाल कर कुछ दिन तक घर-घर में सेवन किया जाता था. इसके सेवन से शरीर में फोड़ा, फुंसी, घाव आदि के संक्रमण से बचाव होता था. नीम की पत्तियां और जूस के सेवन से कई प्रकार के वायरस और बीमारियों से बचाव होता था. इसके रस को पानी में मिलाकर हाथ-पैर धोने और स्नान करने से शरीर पर की गंदगी दूर होती है. इतना ही नहीं इससे तरह-तरह के वायरस भी मर जाते हैं.

पांच तत्वों से बने शरीर को सैनिटाइज करने के लिए पांच पौधों का होना जरूरी है. ये हैं नीम, पीपल, बरगद, पाकड़, जामुन. नीम की पत्तियों को पानी में खौला कर उसे ठंडा कर हाथ-पैर धोए और स्नान करें. कोरोना वायरस जैसे प्रकोप से बचने के लिए प्रकृति के शरण में रहें. काम धाम छोड़कर चुपचाप अपने घरों में रहें. गिलोय, हल्दी, अदरक, नीम, गोलकी, लौंग, तुलसी के पत्ते का काढ़ा नियमित रूप से सपरिवार सेवन करें. इससे केवल कोरोना के वायरस ही नहीं, बल्कि मिजिल्स, स्मॉल पॉक्स, इनफ्लुएंजा आदि के वायरस से बचा जा सकता है. हालांकि कोरोना से बचने का सर्वोत्तम इलाज लॉकडाउन का पालन करना है.

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