मो असगर खान, कांकेर : कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को हाथ धोने, सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने और चेहरे पर मास्क लगाने की हिदायत दी जा रही है. लेकिन, दिक्कत यह है कि आज भी ये चीजें गांव-कस्बों की एक बड़ी आबादी की पहुंच से दूर है. हालांकि, इन दिक्कतों के बीच छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने अपनी अनोखी पहल से सबका ध्यान खींचा है. ये आदिवासी कांकेर जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर अंतागढ़ ब्लॉक के आमाबेड़ा में पड़नेवाले कुरू व भर्री टोला में रहते हैं.
गांव में न कोई चिकित्सा सुविधा है, न ही कोई मेडिकल स्टोर. लेकिन इस गांव में कोरोना को लेकर जागरूकता दिखाई देती है. यहां लोगों को जब हाथ धोने के लिए सैनिटाइजर, साबुन व चेहरे पर लगाने के लिए मास्क नहीं मिला, तो इन्होंने देसी उपाय ढूंढ़ा. नाक और मुंह को ढंकने के लिए इन्होंने पत्तों से बने मास्क का इस्तेमाल शुरू कर दिया. जबकि, साबुन की जगह चूल्हे की राख से हाथ धो रहे हैं.
कोरोना से जंग. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में आदिवासियों ने किया देसी जुगाड़
कांकेर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर अंतागढ़ ब्लॉक के आमाबेड़ा में पड़नेवाले कुरू और भर्री टोला में रहते हैं ये लोग
इनकी देखा-देखी आसपास के गांवों के लोग भी स्वच्छता के लिए कर रहे देसी जुगाड़, सामाजिक दूरी का कर रहे पालन
एक गांव से दूसरे गांव में आवाजाही भी बंद
पूप पंचायत में कुरू और भर्री टोला जैसे कई अन्य टोले व गांव पड़ते हैं. यहां की अधिकतर आबादी दिहाड़ी मजदूरी करती है. भर्री टोला के सतीश टेकाम ने कहा : मोबाइल पर कोरोना वायरस का पता चला. साथ ही यह भी पता चला कि इस वायरस से बचने के लिए हाथ धोना होगा और चेहरे को छुपाना होगा. यहां तो कोई दुकान भी नहीं है. बजार में भी मास्क नहीं मिल रहा है. इसके बाद सामूहिक निर्णय पर हमने साल के पेड़ के पत्तों का मास्क बनाया और गांव के सभी लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. टेकाम के मुताबिक कुरू और भर्री टोला में 80 घर हैं, जहां 200 जन पत्ते का मास्क उपयोग कर रहे हैं. जबकि चूल्हे की राख से हाथ धो रहे हैं. गांववालों ने यह भी फैसला लिया है कि एक-दूसरे से दूरी बना कर रखना है. एक गांव से दूसरे गांव में आवाजाही पूरी तरह से बंद है.
लंबे समय तक पत्ते के मास्क का इस्तेमाल ठीक नहीं
लंबे समय तक पत्ते के मास्क का इस्तेमाल सही नहीं है. लेकिन, जागरूकता के लिए इन लोगों द्वारा किया जा रहा प्रयास काफी प्रशंसनीय है. मैं वहां 21 मार्च को जागरूकता के लिए गया था. हमारे दिशा-निर्देश के अलावा उनलोगों में कोरोना वायरस को लेकर देसी स्तर पर भी हर तरह की जागरूकता है.
डॉ मनोज सिंगरौल, प्रथामिक स्वास्थ्य केंद्र, आमाबेड़ा
तीन घंटे में बदल लेते हैं पत्ते के मास्क, पुराना जला देते हैं
पत्ते के मास्क को हर तीन घंटे में बदल लेते हैं. पुराने मास्क को जला देते हैं. गांव में सभी मजदूर वर्ग के लोग हैं. कोरोना के प्रकोप से आर्थिक परेशानी बढ़ गयी है. थोड़ा-बहुत अनाज था, जो खत्म हो गया है. हम कोरोना वायरस को हराने के लिए तैयार है, बस सरकार राशन-पानी का इंतजाम कर दे.
राम सिंह हिडकू, गांव के सरपंच