13.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कालजयी कहानी का एक शब्द

ध्वनि संगीत का गुण है और रेणु संगीतधर्मी कथाकार हैं. संगीतधर्मिता निर्मल वर्मा के यहां भी है, पर रेणु और निर्मल की संगीतधर्मिता में अंतर है. रेणु का कथा-संगीत. गांव की मिट्टी, हवा, खुशबू और लोक-जीवन से संयुक्त है.

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

ravibhushan1408@gmail.com

रेणु की जन्मशती वर्ष में हम रेणु को कुछ हटकर कैसे देखें? क्या हम उनकी कहानियों में कुछ बीज शब्दों (की-वर्ड्स‍) की तलाश कर सकते हैं? संभव है उनके सुधी पाठक-आलोचक इधर ध्यान न दें, क्योंकि हिंदी आलोचना में अब तक प्रमुख कवियों और उनकी कालजयी कविताओं के भी बीज शब्दों पर कम विचार किया गया है, फिर कहानी में बीज शब्द? हिंदी कथा आलोचना में कहानीकारों और अविस्मरणीय कहानियों के बीज शब्दों पर अभी तक कम ध्यान दिया गया है़. संभवत: विजय मोहन सिंह अकेले हिंदी कथालोचक हैं, जिन्होंने प्रसाद की कहानियों पर विचार करते हुए बीज शब्दों की बात कही है. प्रसाद उन कहानीकारों में हैं, जिनकी कहानियों से यदि ‘बीज शब्द’ एकत्र किये जायें, तो उनके माध्यम से ही उनके अंतस्थल में प्रवेश किया जा सकता है.

उनके द्वारा प्रयुक्त छाया शब्द से समझा जा सकता है. उनके बीज शब्दों की अनेकार्थी ‘छायाएं’ उनकी प्रत्येक कहानी पर प्रकारांतर से पड़ती रहती है़ ‘तीसरी कसम’ अर्थात ‘मारे गये गुलफाम’ (1956) रेणु की ही नहीं, हिंदी की भी एक कालजयी कहानी है़. फिलहाल, इस कहानी का सिर्फ एक शब्द देखें- ‘इस्स’- कहानी में यह 16 बार प्रयुक्त हुआ है- 15 बार हिरामन द्वारा और एक बार केवल एक अन्य पात्र धुन्नीराम द्वारा- ‘इस्स! तुम भी खूब हो हिरामन! इस साल कंपनी का बाघ, इस बार कंपनी की जनानी.’’

‘इस्स’ का स्थान शब्दकोश में नहीं है. यह संयुक्त शब्द है. ध्वनिमुक्त मगर समान रूप से अर्थहीन. क्या अर्थहीन शब्दों का अपना एक अर्थ नहीं है? जो शब्द शब्दकोश से बाहर हैं- भावमुक्त, अप्रचलित, सहज प्रकट और अंतर्मन से उत्पन्न, उन शब्दों का भी अपना एक अर्थ है- प्रचलित शब्दों के प्रचलित अर्थ होते हैं. ‘इस्स’ एक विविध भाव प्रवण शब्द है. लज्जा, आश्चर्य और प्रसन्नता मिश्रित. ‘तीसरी कसम’ में धीमी संगीत में बजता एक लय है. कहानी में जो वर्णित है, सुस्पष्ट है, उसे अधिक महत्व अकथित का है. अकथित सौंदर्य का.

क्या ‘इस्स’ रेणु का शब्द-मोह मात्र है या कहानी में हिरामन में विविध प्रसंगों में 15 बार के उसके द्वारा उच्चारित इस शब्द से उसके भावजगत की पहचान की जा सकती है? क्या ‘इस्स’ तीसरी कसम का बीज शब्द नहीं है? प्रिय शब्द के होने से कोई इनकार नहीं कर सकता. ध्वनि संगीत का गुण है और रेणु संगीतधर्मी कथाकार हैं. संगीतधर्मिता निर्मल वर्मा के यहां भी है, पर रेणु और निर्मल की संगीतधर्मिता में अंतर है. रेणु का कथा-संगीत उनके शब्द-संगीत से जुड़ा है. यह संगीत गांव की मिट्टी, हवा, खुशबू और लोक-जीवन से संयुक्त है. ‘इस्स’ में ‘स’ संयुक्त रूप में है.

हिरामन के अवचेतन में क्या हीराबाई से संयुक्त होने की एक सहज-सरल इच्छा से इसका कोई संबंध-भाव स्थापित किया जा सकता है? ‘इस्स’ का संबंध एक निश्चित भावदशा से है. हीराबाई को देखने और उससे बतियाने के बाद यह भावदशा बनी है. वह ‘चालीस साल का हट्टा-कट्टा, काला-कलूटा, देहाती नौजवान’ है, जिसे अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में दिलचस्पी नहीं थी.’ कहानी में पहली बार वह ‘इस्स’ तब बोलता है, जब हीराबाई ने उसका नाम जानकर कहा था-‘ तब तो मीता कहूंगी, भैया नहीं. मेरा नाम भी हीरा है.’

कविता में पंत ने बहुत पहले कहा था- बालिका मेरी मनोरम मित्र थी’, पर यहां हीराबाई हिरामन को ‘मीता’ कहती है. हिरामन उसके लिए भैया….मीत.. हिरामन… उस्ताद…गुरुजी सब है. कहानी के अंत में हीराबाई ट्रेन में सवार होते हुए हिरामन के ‘दाहिने कंधे पर’ पर हाथ रखकर उसे ‘एक गरम चादर खरीदने’ के लिए रुपये देती है. हिरामन की बोली फूटती है- ‘‘इस्स! हरदम रुपैया-पैसा! रखिये रुपैया! ..क्या करेंगे चादर?’ और इसके बाद एक बार फिर ‘इस्स’, ‘जब हीराबाई ठीक सामने वाली कोठरी में चढ़ी.’

कहानी पाठ एक कला है. आज के भावहीन, संबंध विहीन, प्रेमविहीन समय में हम रेणु की इस कहानी का पाठ कैसे करें? यह तब तक संभव नहीं है, जब तक हम हिरामन और हीराबाई के साथ न हों. क्या ‘इस्स’ एक अर्थहीन शब्द है या इसमें हिरामन के भाव-संसार और उसके कोमल, निश्छल ग्रामीण मन की एक विशेष ध्वनि भी है? ‘इस्स’ का सौंदर्य उसकी अर्थविहीनता में है. रेणु के कथा-संसार में ऐसे शब्दों की भरमार है. हिरामन जिन प्रसंगों में इसे उच्चारित करता है, उनके साथ इन्हें अलग से इसे विस्तार में भी रखा जा सकता है. हीराबाई कहानी में एक बार भी ‘इस्स’ नहीं बोलती.

कहानी में नौटंकी बाहर है. हिरामन और हीराबाई में आत्मीय भाव है. आज आत्मीयता बाहर अगर कहीं है, तो दिखावे में अधिक है. भीतर नौटंकी अधिक है. अब न ‘लोक’ है, न उसका संगीत. ‘इस्स’ का संबंध निश्छलता से, प्रसन्नता से है. यह व्यवहार जगत का शब्द नहीं है. अर्थहीन होने पर भी बेहद अर्थवान और मूल्यवान है.

भावकोश में विद्यमान और शब्दकोश से दूर. कहानी में यह अकेला बहुप्रयुक्त शब्द है. शब्द-विशेष की रचना में आवृत्ति, पुनरावृत्ति का अपना महत्व है. यह अकारण नहीं, सकारण है. यह कथाकार का मात्र शब्द-प्रेम नहीं है. इसके अर्थ, मर्म और सौंदर्य को समझने के लिए पाठक को हिरामन के भाव-जगत में प्रवेश करना होगा. ‘जै मैया सरोसती, अरजी करत बानी;/ हमरा पर होखू सहाई हे मैया, हमरा पर होखू सहाई.’’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें