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MP Crisis : शक्ति परीक्षण में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार, बागी विधायकों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के दिये निर्देश

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भोपाल/नयी दिल्ली/बेंगलुरु : सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि कमलनाथ सरकार की किस्मत 16 बागी विधायकों के हाथों में है. अदालत ने कहा कि वह शक्ति परीक्षण में दखल नहीं देगी. यह विधानसभा को ही तय करना है कि किसके पास विश्वासमत है. अदालत ने कहा कि उसे यह सुनिश्चित करना है कि बागी विधायक स्वतंत्र रूप से अपने अधिकार का इस्तेमाल करें.

न्यायालय ने मध्यप्रदेश कांग्रेस के बागी विधायकों से न्यायाधीशों के चैंबर में मुलाकात करने की पेशकश को ठुकराते हुए कहा कि विधानसभा जाना या नहीं जाना उन पर (विधायकों) निर्भर है, लेकिन उन्हें बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता.

कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के इस्तीफे की वजह से मध्यप्रदेश में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है, जिससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह टिप्पणी की.

पीठ ने इन विधायकों की चैंबर में मुलाकात करने की पेशकश यह कहते हुए ठुकरा दी कि ऐसा करना उचित नहीं होगा. यही नहीं, पीठ ने रजिस्ट्रार जनरल को भी इन बागी विधायकों से मुलाकात के लिए भेजने से इन्कार कर दिया.

इसके साथ ही अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नौ विधायकों के अलावा मध्यप्रदेश कांग्रेस विधायक दल की याचिकाओं पर सुनवाई गुरुवार (19 मार्च, 2020) सुबह साढ़े 10 बजे तक के लिए स्थगित कर दी.

पीठ ने कहा, ‘संवैधानिक न्यायालय होने के नाते, हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना है और इस समय की स्थिति के अनुसार वह यह जानती है कि मध्यप्रदेश में ये 16 बागी विधायक पलड़ा किसी भी तरफ झुका सकते हैं.’

न्यायालय ने इस मामले के अधिवक्ताओं से अनुरोध किया कि वे विधायकों के विधानसभा तक निर्बाध रूप से पहुंचने और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का तरीका तैयार करने में मदद करें.

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सभी बागी विधायकों को न्यायाधीशों के चैंबर में पेश करने का प्रस्ताव रखा, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया. विपक्षी भाजपा ने 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार का तत्काल शक्ति परीक्षण कराने की मांग की है.

मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दलबदल कानून को नाकाम करने और एक निर्वाचित सरकार को गिराने के लिए सत्तारूढ़ विधायकों के इस्तीफे सुनिश्चित कराकर एक नये तरह के ‘जुगाड़’ का आविष्कार किया गया है.

अध्यक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने पीठ को बताया कि राजीव गांधी सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए दल-बदल विरोधी कानून बनाया था कि जनप्रतिनिधि अपना पक्ष बदलकर लोकप्रिय जनादेश की उपेक्षा न करें.

बेंगलुरु के एक रिसोर्ट में ठहरे मध्यप्रदेश कांग्रेस के बागी विधायकों का कहना है कि वे पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह से नहीं मिलना चाहते, जो उनसे मिलने के लगातार प्रयास कर रहे हैं.

बागियों ने अपने वीडियो संदेश में कहा, ‘हमें पता चला है कि दिग्विजय सिंह कुछ मंत्रियों और नेताओं के साथ आये हैं. वे बेवजह प्रवेश द्वार पर कह रहे हैं कि उन्हें हम से मिलना है. जबकि कोई विधायक उनसे मिलना नहीं चाहता. उन्हें यह सब नहीं करना चाहिए. सभी विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया है.’

विधायकों से मिलने की कोशिश में 18 मार्च की सुबह रिसोर्ट के पास पहुंचे दिग्विजय सिंह को पुलिस ने हिरासत में लिया था. हालांकि, थोड़े समय बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान रोहतगी ने कांग्रेस की याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाया और कहा कि एक राजनीतिक दल अपनी याचिका में बागी विधायकों से मुलाकात का अनुरोध कैसे कर सकता है.

उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि कांग्रेस चाहती है कि बागी विधायक भोपाल जायें, ताकि उन्हें लुभाया जा सके और वह खरीद-फरोख्त कर सके. बागी विधायकों ने भी पीठ से कहा कि वे संविधान के प्रावधान के अनुरूप किसी भी नतीजे का सामना करने के लिए तैयार हैं.

इन विधायकों ने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात करने से इन्कार करते हुए कहा कि उनकी ऐसी इच्छा नहीं है. बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा, ‘अध्यक्ष हमारे इस्तीफे दबाकर नहीं बैठ सकते. क्या वह कुछ इस्तीफे स्वीकार कर सकते हैं और बाकी अन्य को नहीं कर सकते हैं, क्योंकि राजनीतिक खेल चल रहा है.’

उन्होंने कहा कि इस्तीफा देना उनका संवैधानिक अधिकार है और इन इस्तीफों को स्वीकार करना अध्यक्ष का कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि इन सभी विधायकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके घोषणा की है कि उन्होंने अपनी इच्छा से यह निर्णय लिया है और हलफनामे पर भी उन्होंने ऐसा ही किया है.

इन विधायकों ने पीठ से कहा, ‘हमारा अपहरण नहीं किया गया है और हम इस संबंध में साक्ष्य के रूप में न्यायालय के समक्ष एक सीडी भी पेश कर रहे हैं. हम कांग्रेस के नेताओं से नहीं मिलना चाहते. हमें बाध्य करने के लिए कोई कानूनी सिद्धांत नहीं है.’

इससे पहले दिन में सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश कांग्रेस पार्टी ने न्यायालय से आग्रह किया कि राज्य विधानसभा में रिक्त हुए स्थानों के लिए उपचुनाव होने तक सरकार के विश्वास मत साबित करने की प्रक्रिया स्थगित की जाये. कांग्रेस ने यह भी दलील दी कि अगर उस समय तक कमलनाथ सरकार सत्ता में रहती है, तो आसमान नहीं टूटने वाला है.

कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा, ‘यदि उपचुनाव होने तक कांग्रेस सरकार को सत्ता में बने रहने दिया जाता है, तो इससे आसमान नहीं गिरने वाला है और शिवराज सिंह चौहान की सरकार को जनता पर थोपा नहीं जाना चाहिए.’

संविधान के मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष में बहस

दवे का कहना था कि राज्यपाल को सदन में शक्ति परीक्षण कराने के लिए रात में मुख्यमंत्री या अध्यक्ष को संदेश देने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अध्यक्ष सर्वेसर्वा हैं और मध्यप्रदेश के राज्यपाल उन्हें दरकिनार कर रहे हैं.’

चौहान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस तर्क का जबर्दस्त प्रतिवाद किया और कहा कि कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे, जिनमें से छह इस्तीफे स्वीकार किये जा चुके हैं, के बाद राज्य सरकार को एक दिन भी सत्ता में बने रहने नहीं देना चाहिए.

रोहतगी ने आरोप लगाया कि 1975 में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र की हत्या करने वाली पार्टी अब डॉ बीआर आंबेडकर के उच्च सिद्धांतों की दुहाई दे रही है. मध्यप्रदेश कांग्रेस विधायक दल ने मंगलवार को शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर अनुरोध किया था कि उसके बागी विधायकों से संपर्क स्थापित कराने का केंद्र और कर्नाटक की भाजपा सरकार को निर्देश दिया जाये. कांग्रेस का कहना है कि उसके विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसोर्ट में रखा गया है.

शिवराज की याचिका पर कमलनाथ सरकार से जवाब तलब

इससे पहले, 17 मार्च की सुबह न्यायालय ने शिवराज सिंह चौहान और नौ अन्य भाजपा विधायकों की याचिका पर कमलनाथ सरकार से 18 मार्च की सुबह 10:30 बजे तक जवाब मांगा था. विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 16 मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिए स्थगित किये जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नौ विधायकों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी.

भाजपा ने इस याचिका में अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधानसभा के प्रधान सचिव पर संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन करने और जान-बूझकर राज्यपाल के निर्देशों की अवहेलना करने का आरोप लगाया था. राज्यपाल लालजी टंडन ने शनिवार की रात मुख्यमंत्री को संदेश भेजा था कि विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन में विश्वास मत हासिल किया जाये, क्योंकि उनकी सरकार अब अल्पमत में है.

मध्यप्रदेश विधानसभा का ऐसा है गणित

अध्यक्ष द्वारा कांग्रेस के छह विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किये जाने के बाद 222 सदस्यीय विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या घटकर 108 रह गयी है. इनमें वे 16 बागी विधायक भी शामिल हैं, जिनके इस्तीफे अभी स्वीकार नहीं किये गये हैं. राज्य विधानसभा में इस समय भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की संख्या 107 है.

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