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राज्यसभा : JDU सांसद कहकशां परवीन ने शून्यकाल में उठाया पटना एम्स का मामला

राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान जेडीयू सांसद कहकशां परवीन ने पटना एम्स से जुड़ा मुद्दा उठाया. वहीं, कांग्रेस सदस्य एमवी राजीव गौड़ा ने शून्यकाल में मांग उठाते हुए कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है. उन्होंने बताया कि एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रेस की आजादी सूचकांक के मामले में भारत का स्थान 180 देशों में 140वां हैं.

नयी दिल्ली : राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान जेडीयू सांसद कहकशां परवीन ने पटना एम्स से जुड़ा मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि वहां पर्याप्त व्यवस्था और सुविधाओं का अभाव है. इस स्थिति में बिहार के लोग दिल्ली इलाज के लिए आते हैं. इससे दिल्ली एम्स पर भी दबाव बढ़ता है.

समाजवादी पार्टी के रविप्रकाश वर्मा ने नौकरशाही में विभेद होने का दावा करते हुए सरकार से इस पर संज्ञान लेने और सुनिश्चित करने की मांग की कि पुलिस और सामान्य प्रशासन को बिना भेदभाव के निष्पक्ष तरीके से काम करना चाहिए.

बीजेपी के डीवी वत्स ने बैंकों, बीमा कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य इकाइयों में महिला कर्मचारियों को बाल देखभाल अवकाश नहीं मिलने का मुद्दा उठाया. वत्स ने मांग की कि ऐसे संस्थानों में काम करनेवाली महिलाओं को भी अन्य समान सुविधाएं मिलनी चाहिए.

कांग्रेस सदस्य ने उठाया पत्रकारों की सुरक्षा का मामला

राज्यसभा में कांग्रेस सदस्य ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अलग से एक कानून बनाये जाने की मांग की. कांग्रेस के एमवी राजीव गौड़ा ने शून्यकाल में मांग उठाते हुए कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है. उन्होंने कहा कि एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रेस की आजादी सूचकांक के मामले में भारत का स्थान 180 देशों में 140वां हैं. गौड़ा ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय कानून बनाये जाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि हाल के कुछ वर्षों में भारत पत्रकारों के लिए एक खतरनाक देश बन गया है.

सभापति एम वेंकैया नायडू बोले- अपुष्ट बयान देने से बचें

सभापति एम वेंकैया नायडू ने उनसे कहा कि उन्हें ऐसे अपुष्ट बयान नहीं देने चाहिए, क्योंकि संसद के बाहर भी यह हवाला दिया जा सकता है कि सांसद ने यह टिप्पणी की है. गौड़ा ने विशेष उल्लेख के जरिये यह विषय उठाया. उन्होंने भारतीय प्रेस परिषद की एक उप-समिति की 2015 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसमें कहा गया है कि 1990 से 80 पत्रकारों की हत्या हुई और उनमें से कई मामले अब भी अदालतों में लंबित हैं. पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अलग से कानून बनाये जाने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि समिति की रिपोर्ट कानून का आधार हो सकती है.

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