राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (president of india) ने सोमवार को पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई (Former CJI ranjan gogai) का नाम राज्यसभा (rajya sabha) के लिए मनोनीत किया है जिसके बाद से वो सोशल मीडिया ट्रेंड (Social media trends) में है. आपको बता दें कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है. आज हम आपको बताएंगे उन 11 लोगों के बार में जिन्हें राष्ट्रपति ने मनोनीत किया है. भारत के 46वें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई नवंबर 2019 में रिटायर हुए थे. और अब वो राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होने के बाद राज्यसभा जाएंगे या नहीं इस पर चर्चा जारी है. केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को जारी की गई अधिसूचना में पूर्व सीजेआई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया है.
इससे पहले राष्ट्रपति कोविंद ने 11 अन्य सदस्यों को 2016 और 2018 में नामित किया था. 12 सदस्यों में से केटीएस तुलसी का कार्यकाल 24 फरवरी 2020 को खत्म हो गया जिसके बाद पूर्व सीजेआई गोगोई को इस सूची में जगह दी गई है. फिलहाल इन सूची में जो 11 सांसद हैं उनका कार्यकाल 2022 और 2024 में खत्म होगा. इन सदस्यों में स्वपन दास गुप्ता, सुब्रमण्यम स्वामी, नरेंद्र जाधव, सुरेश गोपी, एमसी मैरी कॉम, संभाजीराजे छत्रपति, रूपा गांगुली, राम शकल, राकेश सिन्हा, सोनल मानसिंह और रघुनाथ मोहपात्रा शामिल हैं.
क्या आप जानते हैं कि रंजन गोगोई से पहले भी भारत के एक और मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य न्यायाधीश राज्य सभा की शोभा बढा चुके हैं. अंतर सिर्फ़ इतना है कि गोगोई जहां नामित सदस्य के तौर पर राज्यसभा के सदस्य बने हैं वहीं पहले वाले दोनों जज कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे थे. जस्टिस रंगनाथ मिश्रा सितम्बर 1990 से नवंबर 1991 तक भारत के 21वें मुख्य न्यायाधीश बनाए गए थे. मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर होने के करीब सात सालों बाद वो राज्यसभा सांसद बने थे. 1998 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मिश्रा अपने गृह प्रदेश उड़ीसा से राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए थे. रंगनाथ मिश्रा 2004 तक राज्य सभा के सदस्य थे. मिश्रा को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का पहला अध्यक्ष बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था. 1990 में मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले रंगनाथ मिश्रा को 1984 के सिख विरोधी दंगे की जांच के लिए एक सदस्यीय आयोग का चेयरमैन भी बनाया गया था.
जस्टिस बहरुल इस्लाम सुप्रीम कोर्ट के एक और जज थे जिन्होंने राज्यसभा की सदस्यता पायी थी. बहरुल इस्लाम जब सुप्रीम कोर्ट में वका करते थे तब उन्हें 1962 में पहली बार असम से कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा भेजा. उसके बाद दूसरी बार 1968 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया लेकिन इसके पहले की वो छह साल का अपना कार्यकाल पूरा कर पाते, उन्हें तब के आसाम और नागालैंड हाईकोर्ट ( आज के गुवाहाटी हाईकोर्ट ) का जज बनाया गया. जज बनते ही उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था. 1983 में सुप्रीम कोर्ट के जज से रिटायर होने के तुरंत बाद उन्हें तीसरी बार कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया था.