पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (Former CJI) रंजन गोगोई (Ranjan gogai) एक बार फिर से सुर्खियों में हैं. दरअसल, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President of india) ने सोमवार को गोगोई का नाम राज्यसभा (Rajya sabha) के लिए मनोनीत किया है जिसके बाद से वो सोशल मीडिया ट्रेंड (social media trend) में हैं. पूर्व सीजेआई गोगोई सुप्रीम कोर्ट में बैठे 25 न्यायाधीशों में से उन 11 न्यायाधीशों में शामिल रहे जिन्होंने अदालत की वेबसाइट पर अपनी संपत्ति का विवरण दिया था. उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप भी लगा जो भारतीय न्यायपालिका में अपनी तरह का एक अभूतपूर्व मामला है. वो अपने कार्यकाल के दौरान कई अहम फ़ैसले सुनाने के लिए चर्चा में रहे हैं. आइये आज आपको बताते हैं उनके कुछ अहम फैसलों के बारे में…
राम मंदिर पर फैसला
पिछले कई वर्षों से भारत में देश में जिस फैसले का सबसे ज्यादा बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था, वो था अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद. सीजेआई रंजन गोगोई के कार्यकाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना आखिरी फैसला सुनाया जो हिंदुओं के पक्ष में गया. इसके साथ ही भारत में दो धर्म-समुदायों के बीच वर्षों से चल रहे जमीन के मालिकाना हक की कानूनी लड़ाई का खात्मा हुआ. जस्टिस गोगोई ने ये फैसला पिछले साल अपने रिटायर होने से ठीक तीन दिन पहले सुनाया था. इसे एक एतिहासिक फैसला माना गया. यह इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई रही थी.
असम में एनआरसी पर अपनाया था सख्त रुख
रंजन गोगोई ने उस बेंच का नेतृत्व किया, जिसने यह सुनिश्चित किया कि असम में एनआरसी की प्रक्रिया निर्धारित समय सीमा में पूरी हो जाए. पब्लिक फोरम में आकर उन्होंने एनआरसी की प्रक्रिया का बचाव करते हुए उसे सही बताया था. गोगोई एक ऐसे मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी याद किए जाएंगे जो सुप्रीम कोर्ट की पवित्रता की रक्षा करने के लिए अपनों के खिलाफ भी आवाज उठाने में पीछे नहीं रहे. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक कामकाज का विरोध करने के लिए तीन अन्य वरिष्ठ जजों के साथ प्रेस कांफ्रेंस की थी.
लोकायुक्त की नियुक्ति
जस्टिस गोगोई का 16 दिसंबर 2015 को दिया गया एक आदेश उन्हें इतिहास में खास मुकाम पर दर्ज कराता है. देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए किसी राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था. जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस वीरेन्द्र सिंह को यूपी का लोकायुक्त नियुक्त करने का आदेश जारी किया था. गोगोई ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का नाकाम रहना बेहद अफसोसजनक और आश्चर्यचकित करने वाला है.
तीन तलाक पर अध्यादेश
मोदी सरकार तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने के लिए एक अध्यादेश लेकर आई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने याचिकाओं को खरिज कर दिया था. इससे पहले, साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अवैध करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार मुस्लिम महिलाएं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2017 लेकर आई थी. ये विधेयक लोकसभा में तो पारित हो गया लेकिन राज्यसभा में अटक गया. तब विपक्ष ने तीन तलाक पर कुछ संशोधनों की मांग की थी जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में सहमति नहीं बन पाई थी. इसके बाद सरकार अध्यादेश लाई, जिसे चुनौती देने वाले सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं पाए. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में में तीन तलाक कानून राज्यसभा से भी पारित हो गया.
सबरीमला मंदिर मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर, 2018 के अपने फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश का हक दिया था. लेकिन इस फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में 60 पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं थी. इन याचिकाओं पर सुनवाई और फैसले की समीक्षा के लिए तीन जजों की जो बेंच बनी थी, जस्टिस गोगोई उस बेंच के प्रमुख थे. तब जस्टिस गोगोई की बेंच ने इस मामले को सात जजों की बेंच के पास भेज दिया था ताकि फैसले से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी गौर किया जा सके.
राफेल डील को चुनौती देने का मामला
जस्टिस गोगोई उस बेंच में भी शामिल थे, जिसने राफेल सौदे की जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को दो बार खारिज कर दिया था. भारत और फ्रांस के बीच रफ़ाल विमान की खरीद के लिए हुए सौदे पर विपक्षी कांग्रेस ने सवाल उठाए थे और इसमें कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था कि सौदे को लेकर किसी जांच की जरूरत नहीं है, क्योंकि समीक्षा याचिका में कोई दम नहीं है. दूसरी ओर कांग्रेस का कहना था कि ये सौदा एक घोटाला है और संयुक्त संसदीय समिति को इसका संज्ञान लेना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत न्यायमूर्ति को कोर्ट में तलब किया
रंजन गोगोई के कार्यकाल की एक और ऐतिहासिक घटना 11 दिसंबर 2016 की है. इसमें केरल के चर्चित सौम्या हत्याकांड के फैसले पर ब्लॉग में टिप्पणी करने पर जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत न्यायमूर्ति मार्कडेय काटजू को अदालत में तलब कर लिया था. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई सेवानिवृत न्यायमूर्ति सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ हो और उसने बहस की हो. इतना ही नहीं बहस के बाद शीर्ष अदालत उसको अवमानना का नोटिस जारी कर दे.
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का मामला
पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने और जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट, टेलीफ़ोन, संचार और अन्य पाबंदियों के ख़िलाफ़ विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. तब सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने था कहा कि ‘कृपया समझने की कोशिश करें, यह एक बड़ी ज़िम्मेदारी है. सुनवाई के क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात बहाल करने के लिए कहा. तब चीफ जस्टिस गोगोई ने यह भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो वो स्वयं जम्मू-कश्मीर जा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि राष्ट्र हित में स्कूल, अस्पताल और जन परिवहन को सुचारू रूप से काम करना चाहिए.
रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को असम में हुआ था. गोगोई पूर्वोत्तर बारत के पहले व्यक्ति बने जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया. उनके पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे.रंजन गोगोई ने 1978 में बतौर एडवोकेट अपने कार्यकाल की शुरुआत की थी. अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने गुवाहाटी होईकोर्ट में वकालत की. 28 फरवरी 2001 को गुवाहटी हाईकोर्ट में उन्हें स्थायी न्यायमूर्ति के तौर पर नियुक्त किया गया. वह 12 फरवरी 2011 को पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस बने. फिर प्रमोशन के बाद वह 23 अप्रैल, 2012 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बने. तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के रियाटर होने के बाद गोगोई को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का पद मिला था. वो 17 नवंबर 2019 को रिटायर हुए. उन्होंने अपने एक महीने की समयसीमा से काफी पहले ही 5 कृष्णा मेनन मार्ग पर मिले अपने सरकारी घर को खाली करके एक मिसाल पेश की थी.