शीतला सप्तमी चैत्र माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी तिथि को मनायी जाती है. इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि शीतला माता का व्रत रखने से शीतल जनित सारे रोग दूर हो जाते हैं. लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को छोटी माता, चेचक, फोड़े फुंसियों से बचाव के लिए जैसी बीमारियों से पीड़ित होने से बचाने के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं.
जानें कब है शीतला सप्तमी
शीतला सप्तमी साल में दो बार मनायी जाती है. सबसे पहले, यह चैत्र महीने के सातवें दिन कृष्ण पक्ष के दौरान सप्तमी में मनाया जाता है फिर यह दूसरी बार सावन महीने में सप्तमी पर शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है. हालांकि चैत्र महीने में पड़ने वाली शीतला सप्तमी तिथि को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार शीतला सप्तमी 15 मार्च 2020, रविवार को आ रही है. इस दिन अनुराधा नक्षत्र और रवियोग का संयोग भी है जो काफी लाभप्रद होगा.
शीतला सप्तमी को पूजा की विधि
शीतला सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले जगकर ठंडे जल से स्नान किया जाता है. उसके बाद मंदिर जाकर शीतला माता की विधिवत पूजा कर उन्हे जल चढ़ाया जाता है. एक दिन पहले भिंगोकर रखी हुई चने की दाल को उन्हे चढ़ाया जाता है. इस दिन शीतला माता व्रत कथा पढ़ा और सुना जाता है. शीतला माता को ठंडे भोजन का नैवेद्य भोग में लगता है जिसे एक दिन पहले ही रात में बनाकर रख लिया जाता है. शीतला माता को चढ़ाये हुए जल को पात्र में लेकर घर आते हैं और घर के हर कोनों में छींट दिया जाता है. इससे रोगों से घर की सुरक्षा होती है.
शीतला सप्तमी के दिन क्या करें भोजन
इस व्रत में एक दिन पहले यानी चैत्र कृष्णा षष्ठी तिथि को बना हुआ भोजन किया जाता है , गर्म भोजन इस दिन वर्जित माना गया है. इसीलिए इस व्रत को बसियौरा या बसौड़ा भी बोला जाता है.