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बिहार एक, होली मनाने के तरीके अनेक, …पढ़ें कैसे-कैसे हैं बिहार में होली के रंग?

धूमधाम से बिहार में होली खेली गयी, Holi was celebrated in Bihar with great pomp

पटना : बिहार एक है, लेकिन होली का त्योहार मनाने के तरीके अलग-अलग हैं. होली का त्योहार बिहार में कई तरह से मनाये जाते हैं. इनमें मगध में बुढ़वा मंगल होली, समस्तीपुर में छाता पटोरी होली, मिथिला में बनगांव की होली, झुमटा होली और कुर्ता फाड़ होली काफी मशहूर है. ‘कुर्ता फाड़’ होली की बात सामने आते ही आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को आज भी लोग बरबस याद कर लेते हैं.

बिहार में कोरोना के खौफ के बीच जमकर होली खेली गयी. बच्चे, बच्चियां, बूढ़े, जवान, महिलाएं सभी लोगों ने जमकर होली खेली. इस बार होली में सूखे रंगों का प्रयोग ज्यादा देखा गया. देश में कोरोना वायरस का डर बिहार की होली के उत्साह में बाधा नहीं बना. सभी लोगों ने एक-दूसरे को रंग-अबीर-गुलाल लगा कर जमकर होली खेली. पटनाइट्स समेत पूरे बिहार के लोग होली के खुमार में डूबे नजर आये. दिनभर शहर होली के हुड़दंगियों के कब्जे में रहा. झूंड बनाकर हुड़दंगी एक-दूसरे के साथ होली खेलते और गले मिलते दिखे. इस दौरान युवा हुड़दंगी जमकर थिरकते रहे. शहर के संवेदनशील और अतिसंवेदनशील जगहों पर सुरक्षा कड़ी देखी गयी. अपने-अपने गली मोहल्लों में रंग-बिरंगे चेहरे के साथ होली के गाने पर भी थिरकते नजर आये.

लालू यादव की कुर्ता फाड़ होली

बिहार में कुर्ता फाड़ होली भी खूब देखी गयी. ग्रामीण इलाकों में कादो (कीचड़), गोबर की भी होली खेली गयी. बाद में कपड़े फाड़ कर कुर्ता फाड़ होली भी लोगों ने खेली. कुर्ता फाड़ होली खेलते हुए सभी हुड़दंगी एक-दूसरे के कपड़े फाड़ते नजर आये. कई जगहों पर हुड़दंगियों की टोली जोगीरा भी गाया. होली में गायन के साथ-साथ गालियों का भी प्रचलन है. कुर्ता फाड़ के दौरान रूठे लोगों ने खूब गालियां भी दीं. हालांकि, बाद में एक-दूसरे को मना भी लिया गया.

मिथिला के बनगांव की घुमौर होली

मिथिला के बनगांव की प्रसिद्ध घुमौर होली काफी प्रसिद्ध है. मिथिला में भी ग्रामीण होली के रंगों में सराबोर नजर आये. 18वीं शताब्दी में संत लक्ष्मीनाथ गोस्वामी द्वारा एक सूत्र में पिरोने के लिए बनगांव सहित आसपास के क्षेत्रों के शुरू की गयी होली आज भी देखने को मिलती है. कई ग्रामीण इलाकों में फाल्गुन पूर्णिमा को ही होली मनाते हैं. वहीं, मिथिलावासी एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगा कर फाग गाये. होली के दिन कुलदेवी की पूजा कर गुलाल अर्पित की गयी.

मारवाड़ी समाज की होली

मारवाड़ी परिवार में होली के सात दिन पहले से होलाष्टक शुरू हो जाता है. इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं होता. होलिका दहन में महिलाएं पारंपरिक परिधान चुन्नी ओढ़ कर ठंडी होलिका की पूजा कर पति और परिवार की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं. होलिका की भस्म घर के सभी सदस्य लगाते हैं. नवविवाहित महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं. मारवाड़ी समाज में पारंपरिक गीत गाये जाने का भी रिवाज है. पटना, भोजपुर, बक्सर, सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, चंपारण, कैमूर, रोहतास आदि कई जिलों होलिका जलने पर होली का गीत गाते हुए परिक्रमा की जाती है. वहीं, ग्रामीण इलाकों में फगुआ गाने का भी प्रचलन खूब है. एक-दूसरे के घर जाकर लोग होली के गीत गाकर बधाई भी देते हैं.

मगध में बुढ़वा होली की परंपरा

मगध में होली के अगले दिन बुढ़वा होली का रिवाज है. उसी दिन झुमटा भी निकाला जाता है. झुमटा निकालनेवाले होली गाते हुए खुशी का इजहार करते हैं. मगध में कीचड़, गोबर और मिट्टी से होली खेलने का भी खासा महत्व है. दोपहर में रंग और फिर शाम में अबीर-गुलाल लगाते हैं. मगध के नवादा, गया, औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद में बुढ़वा होली मनाने की परंपरा है. वहीं, ग्रामीण इलाकों या मोहल्लों में लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं. उसके बाद टोली बनाकर पारंपरिक गीत और जोगीरा गाते हुए पूरे गांव और मोहल्लों में घूमते हैं. इस मौके पर पारंपरिक गीत के साथ-साथ जोगीरा भी गाते हैं.

समस्तीपुर में छाता पटोरी का प्रचलन

समस्तीपुर जिले के पटोरी प्रखंड में पांच पंचायतों का एक बड़ा गांव है धमौन. यहां हरियाणा से आये यादवों (जाटों) का कुनबा रहता है. हरियाणा और बिहार की मिली-जुली संस्कृति समेटे धमौन की अनूठी ‘छाता होली’ भी काफी प्रसिद्ध है. इस दौरान बांस के बड़े-बड़े छाते तैयार किये जाते हैं. इन छातों को रंगीन कागजों से सजाया जाता है. बताया जाता है कि साल 1935 से ही यहां छाता होली मनायी जाती है. गांव में जाटों के कुल देवता निरंजन स्वामी का मंदिर भी है. कुल देवता स्वामी निरंजन मंदिर में सभी अबीर-गुलाल चढ़ाते हैं. फिर ‘धम्मर’ व ‘होली’ गाते हैं. इसके बाद एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर गले मिलते हैं. इस दौरान सभी छातों को घुमाया जाता है.

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