नयी दिल्ली : पेट्रोल-डीजल के दाम में लगातार आ रही गिरावट के कारण एक बार फिर कोरोना चर्चा में है. जी हां, दरअसल लोगों का मानना है कि कोरोना की वजह से ही पेट्रोल-डीजल के दाम में गिरावट आ रही है.
आपको बता दें कि दुनियाभर में चीन पेट्रोल-डीजल खपत करने वाला सबसे बड़ा देश है. ऐसे में लोगों का अंदाजा लगाना जायज हैं. लोगों का मानना है कि कोरोना के कहर के कारण ही चीन ज्यादा मात्रा में पेट्रोल-डीजल की खपत नहीं कर पा रहा हैं, जिसके वजह से इसके दामों में लगातार गिरावट आ रही है.
लेकिन ये खबर बिल्कुल गलत है दरअसल कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में लगातार आ रही है गिरावट के कारण स्थानीय बाजार में इसका असर देखने को मिल रहा है. सोमवार को पेट्रोल के भाव आठ महीने के निचले स्तर पर आ गई. पेट्रोल की कीमत घट कर 71 रुपये प्रति लीटर से नीचे पहुंच गई हैं. वहीं डीजल का दाम 63.26 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है. हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो अगर कोरोना का असर चीन में नहीं कम हुआ तो वाकई में इसके कारण पेट्रोल-डीजल के दामों में भी गिरावट आ सकती हैं.
पेट्रोल की किमत फिलहाल 71 रुपये प्रति लीटर से नीचे पहुंच गया हैं. सऊदी अरब और रूस के बीच कच्च तेल बाजार में कीमत युद्ध छिड़ने से सोमवार को कच्चा तेल अंतराष्ट्रीय वायदा बाजार में 31 प्रतिशत तक टूट गया था.
वर्ष 1991 के खाड़ी युद्ध के कच्चे तेल की कीमतों में यह सबसे बड़ी गिरावट है. इससे भारत को वित्तीय लाभ हो सकता है क्यों कि देश पेट्रोलियम ईंधन के लिए बड़ी सीमा तक आयात पर निर्भर करता है. तेल उत्पादक और उसके सहयोगी देशों के संगठन ओपेक प्लस की शुक्रवार की बैठक में उत्पादन घटाने पर सहमति नहीं बनने से निर्यातक देशों के बीच कीमत युद्ध छिड़ गया है. 1 सोमवार को ब्रेंट कच्चा तेल भाव 31 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया.
गोल्डमैन सैश ने चेतावनी दी है कि भाव 20 डॉलर तक जा सकता है. भारत अपनी जरूरत का 84 प्रतिशत से अधिक तेल आयात करता है. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी से देश के आयात बिल में कमी आएगी और इससे खुदरा कीमतें भी कम होंगी.
हालांकि इससे पहले से दबाव में चल रही ओएनजीसी जैसी कंपनी की हालत और खराब होगी. यद्यपि विभिन्न क्षेत्रों के लिए लागत कम होने से देश की अर्थव्यवस्था को थोड़ा संबल मिलेगा जो अभी 11 वर्ष में सबसे निचली वृद्धि दर से आगे बढ़ रही है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा जारी कीमत अधिसूचना के अनुसार दिल्ली में पेट्रोल की कीमत सोमवार को 70.59 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गयी है.
जुलाई 2019 के बाद यह पेट्रोल की सबसे कम कीमत है. वहीं डीजल का दाम 63.26 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है. हालांकि ईंधन की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 27 फरवरी के बाद से नीचे आने का रूझान बना हुआ है. तब से अब तक पेट्रोल की कीमत में 1.42 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत में 1.44 रुपये प्रति लीटर कमी आ चुकी है.
इस पूरे घटनाक्रम में केवल एक ही बात हतोत्साहित करने वाली है कि डॉलर के मुकाबले रुपया 23 पैसे गिरकर 74.10 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ है. रुपये के कमजोर होने से भारत को विदेशों से समान मात्रा में सामान खरीदने के लिए अब अधिक भुगतान करना होगा. पेट्रोलियम मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना एवं आकलन प्रकोष्ठ अनुसार इस महीने में खत्म होने वाले वित्त वर्ष 2019-20 में 22.5 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर भारत को कुल लगभग 105.58 अरब डॉलर या 7.43 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ेगा.
जबकि 2018-19 में 22.65 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर भारत ने 111.9 अरब डॉलर यानी 7.83 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया था. प्रकोष्ठ ने 2019-20 के लिए भुगतान का यह अनुमान कच्चे तेल की औसत कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल और स्थानीय मुद्रा के 71 रुपये प्रति डॉलर पर रहने को आधार बनाकर लगाया था. कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की कमी से भारत का आयात बिल 2,936 करोड़ रुपये कम होता है.
इसी तरह डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में एक रुपये प्रति डॉलर का बदलाव आने से भारत के आयात बिल पर 2,729 करोड़ रुपये का अंतर पड़ता है. तेल कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि देश के आयात बिल पर अगले वित्त वर्ष की शुरुआत में अप्रैल में फर्क पड़ सकता है लेकिन वह तेल और मुद्रा बाजार में अनिश्चिता के चलते इसके बारे में कोई सही अनुमान नहीं लगा सकते हैं.
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