कोरोना का कहर तो इस बार की होली में दिख ही रहा है. बाजार नरम पड़ गया, लोग पूर्व की तरह होली खेलने से कतरा रहे हैं. ऐसे में एक और अफवाह सोशल मीडिया में छा गयी है. दरअसल कुछ ही देर में हालिका दहन होना है.
ऐसे में देश के कई हिस्सों से खबर आ रही है कि इस बार होलीका में कपूर, चिरायता, नीम और गिलोय जैसे सामग्री को भी जलाया जाएगा. जिससे होली में कोरोना के कहर से मुक्ति मिलेगी.
कुछ लोगों की मानें तो कोरोना के कहर से बचना के ये सबसे सटीक उपाय है. उनका मानना है कि इन सामग्रियों के जलाने से वातावरण की शुद्धि होगी. होलिका दहन वाले स्थान के आसपास ऐसा करने से वहां मौजूद सभी तरह के वायरस नष्ट हो जाएंगे.
लेकिन कुछ स्वास्थ्य चिकित्सकों ने इसे सिरे से नकारते हुए कहा कि, यह खबर बिल्कुल गलत हैं. चिरयता शरीर के अंदर ही जाकर शरीर में फैले किटाणुओं को नष्ट करता है, जलाने से नहीं. कपूर जलाने से वातावरण की शुद्धि वाली खबर भी बहुत हद तक गलत है.
इसके अलावा झारखंड आयुष की डॉक्टर वर्तिका की मानें तो जिस तरह पेस्ट-कंट्रोल करके जीवाणुओं को घरों से भगाया जाता है उसी तरह, आयुर्वेद में भी धूपन-करम नाम की प्रक्रिया होती है जिसके करने से वातावरण शुद्ध होता है. यह हवण के रूप में किया जाता है. इसमें नीम, चिरायता, कपूर जैसे सामग्रियों को इस्तेमाल कर वातावरण को शुद्ध किया जाता हैं.
होली के मूड में देश रंग चुका है. कल रंगों का त्योहार होली मनाया जायेगा. उससे पहले अभी कुछ ही देर में होलिकादहन होना हैं. होली में जितना महत्व रंगों का है, उतना ही होलिकादहन का है. इसको कर शहर के लगभग सभी इलाकों में सार्वजनिक स्थल पर होलिका इकट्ठा की गयी है. इसका शुभ मुहूर्त रात 11 बज कर 26 मिनट पर है. पंडित डॉ श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि इस दिन पूर्णिमा तिथि होने से चंद्रमा का प्रभाव ज्यादा बन रहा है. इस दिन भद्रा का वास पृथ्वी पर रहेगा. लेकिन भद्राकाल रविवार की रात्रि 1.40 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12.32 तक रहेगा. वहीं, शाम को प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्राकाल नहीं होने से होलिका दहन शुभ फल देने वाला रहेगा.
अनाज से हवन करने की परंपरा : पंडित त्रिपाठी के मुताबिक होलिका दहन का दिन इच्छित कामनाओं की पूर्ति करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है. होलिका शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ भूना हुआ अनाज होता है. होलिका दहन में अनाज से हवन करने की परंपरा है. चौक-चौराहों पर इकट्ठी लकड़ियों में अगजा प्रज्वलित कर जल, चावल, फूल, कच्चा सूत, हल्दी, मूंग व गेहूं की बालियां को इसमें डाल होलिका दहन होता है.
होलिका में सूखी लकड़ियों का ही करें इस्तेमाल : होलिका दहन को लेकर शहर के कई चौक-चौराहों और मोहल्लों में पुरानी सामग्रियां इकट्ठा की गयी हैं. इनमें टूटी लकड़ियों के साथ ही कांटेदार झाड़ियां व पत्ते आदि शामिल हैं.
कुछ जगहों पर टायर-ट्यूब जैसी सामग्रियां भी होलिका में डाल दी गयी हैं, जिनसे प्रदूषण होता है. प्रशासन ने भी इनसे बचने की अपील की है. ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन में गाय के गोबर से बने कंडे और कुछ चुने हुए पेड़ों की लकड़ियों को ही जलाना चाहिए. क्योंकि धार्मिक दृष्टि से भी पेड़ों पर किसी न किसी देवता का अधिपत्य होता है. उनमें देवी-देवताओं का वास माना जाता है. हिंदी साल की शुरुआत भी होलिका दहन के बाद से ही शुरू होती है.
होलिकादहन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण : इसके कई वैज्ञानिक दृष्टिकोण हैं. ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है. वहीं, खेतों में फसलों की कटाई हो जाती है. इसके बाद खेत-खलिहानों के सूखे पत्तों के ढेर लग जाते हैं. ऐसे में गरमी से राहत पाने के लिए ठंडी हवा व छांवदार जगहों की शरण ले सकें. इसके लिए होलिका दहन पर सूखे पेड़ व पत्तों को जला कर सफाई की जाती है. अग्नि के साथ कई मौसमी कीट-पतंगे भी जल जाते हैं. इससे पूरी तरह से मौसम के अनुकूल हम वातावरण का निर्माण कर पाते हैं.
शुभ मुहूर्त रात 11:26 बजे पर भद्राकाल रविवार की रात्रि 1.40 मिनट से दोपहर 12.32 तक रहेगा.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.