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इलाहाबाद हाइकोर्ट ने लखनऊ के डीएम और कमिश्नर से कहा : आरोपियों का पोस्टर हटाओ

allahabad high court's decision on hoardings of anti-CAA protesters. इलाहाबाद हाइकोर्ट ने लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट और आयुक्त को पिछले वर्ष दिसंबर में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के विरोध के दौरान निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों के पोस्टर वहां की सड़कों से हटाने का सोमवार (9 मार्च, 2020) को निर्देश दिया.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाइकोर्ट ने लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट और आयुक्त को पिछले वर्ष दिसंबर में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के विरोध के दौरान निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों के पोस्टर वहां की सड़कों से हटाने का सोमवार (9 मार्च, 2020) को निर्देश दिया.

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने लखनऊ के डीएम और आयुक्त को 16 मार्च तक इसकी रिपोर्ट सौंपने को कहा. खंडपीठ ने रविवार (8 मार्च, 2020) को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

दिसंबर, 2019 में CAA के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में जिन लोगों की पहचान हुई थी, सरकार ने मुख्य चौक-चौराहों पर उनके पोस्टर लगा दिये थे. सरकार ने कहा था कि हिंसा के दौरान सरकारी या निजी संपत्ति का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई इनसे की जायेगी.

उन तमाम लोगों के पोस्टर शहर के मुख्य चौक-चौराहों पर लगाये हैं, जिन्होंने प्रदर्शन के दौरान हिंसा की. सरकार के इस फैसले को प्रदर्शनकारियों ने चुनौती दी. इलाहाबाद हाइकोर्ट ने रविवार (8 मार्च, 2020) को इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने फैसला 9 मार्च तक सुरक्षित रख लिया था.

सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने 8 मार्च को कहा था कि 9 मार्च, 2020 को दोपहर 2 बजे आदेश सुनाया जायेगा. उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील दी थी कि अदालत को इस तरह के मामले में जनहित याचिका की तरह हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अदालत को ऐसे कृत्य का स्वतः संज्ञान नहीं लेना चाहिए, जो ऐसे लोगों द्वारा किये गये हैं, जिन्होंने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है. महाधिवक्ता ने कथित CAA प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की राज्य सरकार की कार्रवाई को ‘डराकर रोकने वाला कदम’ बताया, ताकि इस तरह के कृत्य भविष्य में दोहराये न जायें.

इससे पहले, इस अदालत ने 7 मार्च, 2020 को CAA के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा के आरोपियों के पोस्टर लगाये जाने की घटना का स्वतः संज्ञान लिया था. अदालत ने लखनऊ के डीएम और मंडलीय आयुक्त को उस कानून के बारे में बताने को कहा था, जिसके तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर एवं होर्डिंग लगाये गये.

उल्लेखनीय है कि पुलिस ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा में लिप्त आरोपियों की पहचान कर पूरे लखनऊ में उनके कई पोस्टर लगाये हैं. पुलिस ने करीब 50 लोगों की पहचान कथित उपद्रवियों के तौर पर की और उन्हें नोटिस जारी किया.

पोस्टर में जिन लोगों की तस्वीरें हैं, उसमें कांग्रेस नेता सदफ जाफर और पूर्व आइपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी शामिल हैं. उन होर्डिंग्स में आरोपियों के नाम, फोटो और आवासीय पतों का उल्लेख है. इसके परिणामस्वरूप नामजद लोग अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं.

इन सभी आरोपियों को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करने को कहा गया है. कहा गया है कि नुकसान की भरपाई नहीं करने पर जिला प्रशासन उनकी संपत्तियां जब्त करने की कार्रवाई करेगा.

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