सऊदी अरब और रूस के बीच प्राइस वार का असल नजर आने लगा है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल यानि कच्चे तेल की कीमतों में 30 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गयी है. 1991 के बाद कच्चे की तेल की कीमतों में यह सबसे बड़ी गिरावट है. जानकारों की मानें तो कोरोनो वायरस के खौफ की वजह से मांग में कमी के कारण भी कीमत में यह गिरावट हो सकती है. दरअसल तेल की मांग कम हो गयी है लेकिन आपूर्ति पहले जैसा ही बना हुई है. ऐसे में तेल निर्यातक देशों के संगठन OPEC और सहयोगियों के बीच तेल उत्पादन में कटौती को लेकर बातचीत हुई जो बेनतीजा रही.
दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती के लेकर सहमति नहीं बन पाने के बाद सऊदी अरब ने कीमत यु्द्ध (प्राइस वार) छेड़ दिया है, जिसके बाद कच्चे तेल के दामों में सोमवार को लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट हुई. ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 36 डॉलर प्रति बैरल जबकि अमेरिकी डबल्यूटीआई ऑयल के दाम 32 डॉलर प्रति बैरल पर आ गये हैं. ब्लूमबर्ग की खबर के अनुसार ओपेक और उसके सहयोगी देशों के बीच तेल का उत्पादन बंद करने को लेकर कोई करार नहीं होने के बाद सऊदी अरब ने रविवार को तेल के दामों में पिछले 20 साल में सबसे बड़ी कटौती करने का ऐलान किया था.
अनुमान जताया जा रहा था कि मुख्य तेल उत्पादकों की बैठक में उत्पादन में भारी कटौती का फैसला किया जाएगा, लेकिन रूस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. ब्लूमबर्ग के मुताबिक सऊदी अरब ने इसके जवाब में पिछले 20 साल में तेल के दामों में सबसे बड़ी कटौती की है. उसने एशिया के लिए अप्रैल डिलीवरी की कीमत 4-6 डॉलर प्रति बैरल और अमेरिका के लिए सात अरब डॉलर प्रति बैरल घटा दी. अरैमको अपना अरैबियन लाइट तेल 10.25 डॉलर प्रति बैरल की दर से यूरोप को बेच रही है.
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