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DMK नेता के अनबझगन का निधन, दक्षिण भारत की राजनीति में ‘प्रोफेसर’ के नाम से थे मशहूर

दक्षिण राजनीति के प्रोफेसर के अनबझगन का शनिवार शाम निधन हो गया. वे 93 वर्ष के थे और तामिलनाड्डू की पार्टी डीएमके से जुड़े हुए थे. नौ बार के विधायक रहे अनबझगन 43 वर्षों तक पार्टी के महासचिव रहे. बीमारी के कारण वह कुछ समय से सक्रिय राजनीति से दूर थे.

चेन्नई : दक्षिण राजनीति के प्रोफेसर के अनबझगन का शनिवार शाम निधन हो गया. वे 93 वर्ष के थे और तामिलनाड्डू की पार्टी डीएमके से जुड़े हुए थे. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) प्रमुख एमके स्टालिन ने कहा कि पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता और दिवंगत नेता एम करुणानिधि के करीबी मित्र अनबझगन उम्र संबंधी बीमारियों के कारण पिछले कुछ वक्त से ठीक नहीं थे और उनकी तबीयत बिगड़ने पर 24 फरवरी को उन्हें अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया.

नौ बार के विधायक रहे अनबझगन 43 वर्षों तक पार्टी के महासचिव रहे. बीमारी के कारण वह कुछ समय से सक्रिय राजनीति से दूर थे. स्टालिन ने एक बयान में कहा कि अनबझगन के निधन के कारण पार्टी का झंडा सात दिनों तक आधा झुका रहेगा. उन्होंने बताया कि द्रमुक के सभी कार्यक्रमों को एक हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया गया। द्रमुक में ‘प्रोफेसर’ के तौर पर पहचाने जाने वाले अनबझगन तमिलनाडु के वित्त मंत्री और लोक कल्याण मंत्री रहे.

अनबझगन के पार्थिव शरीर को शहर में स्थित उनके आवास पर ले जाया गया है, जहां से उन्हें अंतिम संस्कार के लिये ले जाया जायेगा.

1977 में पहली बार महासचिव बने- अनबझगन 1977 में पहली बार पार्टी के महासचिव बने थे, जिसके बाद वे अपने राजनीतिक जीवन में इसी पद पर रहे. पार्टी के भीतर करूणानीधि के बाद उनको दूसरे नंबर का नेता माना जाता था.

राजनीति में आने से पहले थे प्रोफेसर– अनबझगन राजनीति में आने से पहले चेन्नई के एक कॉलेज में प्रोफेसर थे. वहां उन्होंने 13 सालों तक पढ़ाया. इसी कारण डीएमके के कार्यकर्ता उन्हें प्रोफेसर ही कहते थे.

स्टालिन को अध्यक्ष बनाने निभाई थी भूमिका– जब करुणानिधि के घर में राजनीतिक झगड़ा शुरू हुआ तो, अनबझगन ने सुलह कराने में बड़ी भूमिका निभाई. इतना ही नहीं करुणानिधि के बड़े बेटे अलागिरी को पार्टी से निकालने की घोषणा में भी अनबझगन ने ही किया था.

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