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पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है उज्जैन के सिंहपुरी की होली

हजारों वर्षों से लोग निभा रहे हैं परंपरा, People have been following tradition for thousands of years

देश भर में अलग-अलग अंदाज से मनाये जानेवाली होली उज्जैन के सिंहपुरी में बहुत महत्वपूर्ण संकल्पों को ध्यान में रख कर मनायी जाती है. महाकाल की नगरी उज्जैन, जहां सिंहपुरी क्षेत्र की होली पूरे देश दुनिया में अलग संदेश देती रही है.

कहा जाता है कि यह परंपरा लगभग 3000 साल पुरानी है. इसे आज भी यहां के लोग निभा रहे हैं. परंपरा के मुताबिक, वहां का गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज तीन हजार सालों से कंडे से बनी होलिका को जलाने का आयोजन करते रहे हैं. यहां होलिका दहन में किसी भी प्रकार की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. पर्यावरण को सुरक्षित रखने का संदेश देते हुए यहां करीब पांच हजार कंडों से होलिका बनायी जाती है.

यजुर्वेद के मंत्रोच्चारण के साथ गोबर के कंडे ब्राह्मण तैयार करते हैं. गोबर के कंडे को तैयार करने में काफी समय लगता है. इसकी तैयारी एक महीने पहले ही शुरू हो जाती है. माना जाता है कि हजारों साल पहले से ही गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज ने पर्यावरण संरक्षण का ख्याल रखा और इस परंपरा की शुरुआत की. इसे आज भी निभाया जाता है. उज्जैन के पंडितों का कहना है कि कंडे की होलिका जलाने से घर और वातावरण के तमाम नकारात्मक दोषों का नाश होता है और गोबर से पंचतत्व की शुद्धि भी होती है.

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