18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पहले फाल्गुन महीना चढ़ते ही बच्चों व बुजुर्गों में उत्साह बढ़ जाता था

पहले फाल्गुन महीना चढ़ने के साथ ही होली के नाम पर बच्चों एवं बुजुर्गों में उत्साह बढ़ जाता था. लेकिन अब होली के ही दिन सिर्फ होली का रौनक रहता है. आज की युवा पीढ़ी के साथ बुजुर्गों ने भी आधुनिकता अपना लिया है.

जारी/पालकोट : पहले फाल्गुन महीना चढ़ने के साथ ही होली के नाम पर बच्चों एवं बुजुर्गों में उत्साह बढ़ जाता था. लेकिन अब होली के ही दिन सिर्फ होली का रौनक रहता है. आज की युवा पीढ़ी के साथ बुजुर्गों ने भी आधुनिकता अपना लिया है. होली पहले और अब कैसे मनाते थे, इस संबंध में पालकोट प्रखंड के अलख नारायण सिंह ने कहा कि समय के साथ पर्व त्योहार का महत्व घट व बढ़ रहा है.

अगर होली की बात करें, तो 15 साल पहले होली के नाम पर ही खुमारी छा जाती थी. बच्चे हो या बूढ़े, सभी उमंग व उत्साह से होली के 15 दिन पहले से रंग खेलना शुरू कर देते थे, परंतु अब समय बदल गया. होली का पर्व भी सीमित हो गया है. पहले घरेलू रंग व बांस की पिचकारी से होली खेलते थे. उत्साह में कीचड़ से भी होली खेल लेते थे. घर से किसी काम के लिए निकलते थे, तो पुराने कपड़े पहनते थे, जिससे रंग में नया कपड़ा बर्बाद न हो जाये.

होली पर बचपन की यादों को किया ताजा : जारी प्रखंड के सिकरी निवासी 75 वर्षीय नारायण खेरवार ने बताया कि पहले की होली और अभी की होली में बहुत अंतर है. पहले जब फाल्गुन का महीना शुरू होता था, तो होली की चहल पहल देखने को मिलती थी, लेकिन अभी तो सिर्फ होली के दिन ही केवल रौनक देखी जाती है. उन्होंने कहा कि पहले नजदीक में न तो बाजार लगता था और न ही आज कल की तरह गांव-गांव में दुकान रहती थी. इस कारण हमें रंग भी नहीं मिल पाता था और रुपये की भी कमी थी. लेकिन होली खेलने का जुनून था. इस कारण हमलोग रंग की व्यवस्था कर लेते थे.

रंग की व्यवस्था करने के संबंध में उन्होंने बताया कि हमलोग पारसा के पौधे के पत्ते को पानी में भांप देते थे, तो पूरा पानी रंग में तब्दील हो जाता था और उसी रंग से हमलोग होली खेलते थे. पहले होली के दिन नशापान कम था. आज होली पर्व के नाम पर युवाओं द्वारा नशापान कर हुड़दंग किया जाता है. डुंबरटोली निवासी 68 वर्षीय मदन सिंह ने कहा कि पहले बांस की पिचकारी स्वयं बना कर होली खेलने के लिए प्रयोग करते थे. आज तो सभी कोई बाजार में उपलब्ध पिचकारी का प्रयोग करते हैं. गरीबी के कारण हमें रंग का नसीब नहीं होता था. इस कारण तरह तरह के पौधों की पत्तियों से रंग बना लेते थे. रंग की व्यवस्था नहीं हो पाती थी, तो कीचड़ से भी होली का आनंद लेते थे. उन्होंने कहा कि अब धीरे-धीरे होली का महत्व घटता जा रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें