कई अभिभावक अपने बच्चे को किसी नामी-गिरामी स्कूल में एडमिशन दिला कर निश्चिंत हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि बस, अब उनका बच्चे की लाइफ सेट हो गयी. अब तो वह एक कामयाब इंसान बन जायेगा. अगर आप भी ऐसा सोचती हैं, तो अपनी गलतफहमी दूर कर लीजिए. स्कूल में बच्चा किताबी ज्ञान हासिल करता है. उसे जीवन के व्यावहारिक पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी आपकी है. इन दोनों तरह के सही और समुचित ज्ञान से ही आपका बच्चे के व्यक्तित्व विकास होगा और वह सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ कर अपनी मंजिल हासिल कर पायेगा. इसके लिए आपको कुछ प्रमुख बातों पर ध्यान देना जरूरी है.
बच्चों के मन में होता है जिज्ञासाओं का भंडार
बच्चे स्वभाव से जिज्ञासु प्रवृति होते हैं. हर नयी चीज को देखते ही उनके मन में हजारों तरह के सवाल उठने लगते हैं और वे अपनी उन तमाम जिज्ञासाओं और सवालों का जवाब पाना चाहते हैं. कई पैरेंट्स बच्चों के इस सवालों का कोई संतुष्टिपूर्ण जवाब देने के बजाय उन्हें डांट कर चुप करवा देते हैं. ऐसा करके अनजाने में ही वे अपने बच्चे के बौद्धिक विकास को बाधित करते हैं. बेहतर यह है कि सवाल पूछने की बच्चे की इस प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दें और यथासंभव उनकी जिज्ञासाओं के तर्कपूर्ण उत्तर दें. जिन सवालों के जवाब आपको मालूम नहीं, उनके गलत जवाब देने की बजाय उनसे वक्त लें और गूगल या अन्य स्त्रोत से जानकारी लेकर सरल भाषा में उनकी जिज्ञासा शांत करें.
बच्चों की रुचियों को प्राथमिकता देना भी जरूरी
हर बच्चे को अलग-अलग एक्टीविटीज में आनंद आता है. आपका बच्चे को क्या पसंद है, क्या इस बात पर आपने कभी गौर किया है. अगर नहीं, तो आज से ही इस पर ध्यान देना शुरू कर दें. अगर उसे टीवी देखना पसंद है, तो उससे टीवी वर्ल्ड के बारे में बातचीत करें. अगर उसे स्पोर्ट्स में रुचि है, तो उसे खेल और खिलाड़ियों के बारे में जानकारी दें. इसी तरह अगर उसे ड्राइंग करने या रेखाचित्र बनाने में मजा आता है, तो उसे आकृतियों और कलाकारों के बारें बताएं. इससे वह खुद को स्पेशल फील करेगा. साथ ही, उस संबंधित विषय में उसका परफॉर्मेंस भी बेहतर होगा और काफी हद तक संभव है कि भविष्य में वह उस क्षेत्र में अगर कैरियर बनाये, तो उसमें भी बेस्ट साबित होगा.
सिखाएं धैर्य की कला
जिंदगी में तरह-तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं और इस प्रक्रिया की शुरुआत जन्म लेने के साथ ही शुरू हो जाती हैं. बच्चों को भी तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कभी स्कूल बस से उतरने में उसका नंबर लास्ट हो जाता है, कभी टीचर उस पर नाराज होकर डांट देती है, कभी तमाम कोशिशों के बावजूद उसका होमवर्क कंप्लीट होने का नाम नहीं लेता, कभी घर में कुछ मिल रहा हो और उसकी बारी ही नहीं आती आदि. ऐसे में वह रोने लगता है. घबरा जाता है. अपने बच्चे को शुरू से ही धैर्य रखने की आदत सिखाएं. उसे कूल रहने के फायदों के बारे में बताएं. इससे वह जीवन की मुश्किल-से-मुश्किल परिस्थिति का सामना भी आसानी से करने में समर्थ होगा.
बच्चों को भी चाहिए होता है स्पेस
बच्चे का एक-एक कदम आपके द्वारा निर्धारित नहीं होना चाहिए. उसे किसी पक्षी की तरह आजाद उड़ने दें. अपनी मर्जी की एक्टीविटी करने दें. अपने अनुभवों के आधार पर चलने दें, लड़खड़ाने और गिरने दें. खूब खेलने दें. बस, बीच-बीच में उसे सही है और गलत का फर्क बताते रहें, लेकिन पैरेंटिंग के नाम पर उसका बौद्धिक और शारीरिक विकास होने से न रोकें. बच्चे खिलखिला कर हंसेंगे, खेलेंगे और मस्त रहेंगे तभी उनका सर्वांगीण विकास होगा. अगर आप हर जगह साये की तरह उसके पीछे-पीछे लगे रहेंगे, उसे रोकेंगे या टोकेंगे, तो उसका दम घुटेगा और वह आपकी उपस्थिति से डरने लगेगा. याद रखें कि आपको उसका गाइड बनना है, रिंगमास्टर नहीं.
प्रॉब्लम से घबराएं नहीं, उसे सुलझाना सिखाएं
अगर आपको यह लगता है कि बच्चों की जिंदगी में कोई समस्या ही नहीं होती, तो यह आपकी सबसे बड़ी समस्या है. आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि बच्चे आपसे कहीं ज्यादा गहरायी से किसी भी चीज को विश्लेषित करते हैं और इसी वजह से उनके पास कई तरह की समस्याएं भी होती हैं. बच्चों को अपने गेम्स या टॉयज के चयन में, ड्रेस के चयन में, होमवर्क में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई बार वह इन समस्याओं से परेशान भी हो जाता है. ऐसे में आप उसकी प्रॉब्लम को सॉल्व न करें. उसे अपनी समस्या को समझने, उसका विश्लेषण करने और उसका समाधान सोचने की कला सिखाएं. शुरुआत में उसे समाधान के कुछ विकल्प सुझाएं और उनमें से सर्वोत्तम को चुनने के लिए प्रोत्साहित करें. यह गुण बच्चे के जिंदगी भर काम आयेगा.